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मानहानि के मुकदमे में सैन्य अधिकारियों ने मंजूरी नहीं लेने की दलील दी

नयी दिल्ली : दिल्ली की एक अदालत मानहानि के मामले में पूर्व सेना प्रमुख जनरल वीके सिंह के साथ आरोपित चार अन्य सैन्य अधिकारियों पर मुकदमा चलाने के लिये सरकार से आवश्यक मंजूरी नहीं लिये जाने की दलील पद नौ दिसंबर को अपना फैसला सुनायेगी. मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट जय थरेजा ने आपराधिक दंड संहिता की धारा […]

नयी दिल्ली : दिल्ली की एक अदालत मानहानि के मामले में पूर्व सेना प्रमुख जनरल वीके सिंह के साथ आरोपित चार अन्य सैन्य अधिकारियों पर मुकदमा चलाने के लिये सरकार से आवश्यक मंजूरी नहीं लिये जाने की दलील पद नौ दिसंबर को अपना फैसला सुनायेगी. मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट जय थरेजा ने आपराधिक दंड संहिता की धारा 197 (2)के तहत दायर इन सैन्य अधिकारियों की याचिकाओं पर आज सुनवाई पूरी कर ली. इस धारा में प्रावधान है कि सरकार की पूर्व मंजूरी के बगैर अदालत को किसी कथित अपराध के लिए संज्ञान नहीं लेना चाहिए.

मजिस्ट्रेट ने कहा, ‘‘9 दिसंबर को आदेश के लिए पेश किया जाये.’’अदालत ने पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल तेजिन्दर सिंह की ओर से दायर आपराधिक मानहानि शिकायत पर वीके सिंह के साथ चार आरोपितों-तत्कालीन सैन्य उप प्रमुख एसके सिंह, अवकाशप्राप्त लेफ्टिनेंट जनरल बीएस ठाकुर(तत्कालीन सैन्य खुफिया महानिदेशक), मेजर जनरल एसएल नरसिम्हन(लोकसूचना के एडीजी) और कर्नल हितेन साहनी को तलब किया था.

तेजिन्दर सिंह ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया था कि पिछले साल 5 मार्च को जारी अपनी प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से सेना उन्हें बदनाम कर रही है. इस प्रेस विज्ञप्ति में तेजिन्दर सिंह पर 600 ट्रकों के सौदे को मंजूरी देने के एवज में तत्कालीन सेना प्रमुख को 14 करोड़ रुपये की रिश्वत देने का आरोप लगाया गया था. तेजिन्दर सिंह ने इन आरोपों का खंडन किया था. अदालत में आज सुनवाई के दौरान चार आरोपितों की तरफ से पेश वकील ने कहा कि आपराधिक दंड संहिता की धारा 197 इस मामले पर लागू है. वीके सिंह की ओर से पेश वकील ने सेना मीडिया नीति 2005 का हवाला दिया जिसमें कहा गया है कि पिछले साल 5 मार्च को जारी प्रेस विज्ञप्ति पूर्व सेना प्रमुख की आधिकारिक ड्यूटी का एक हिस्सा था.

उन्होंने सेना अधिनियम के प्रावधानों का भी जिक्र किया और दलील दी कि प्रेस विज्ञप्ति जारी करने का प्राधिकार ‘‘2005 की सेना मीडिया नीति में सरकार की नीति से खुद ही उत्पन्न होता है.’’इससे पहले, चार आरोपितों ने दलील दी थी कि उनकी आधिकारिक ड्यूटी के किसी भी हिस्से की व्याख्या अपराध के रुप में नहीं की जा सकती है. उन्होंने जो कुछ भी किया वह उनकी आधिकारिक ड्यूटी का एक हिस्सा था.

उनके वकील ने दलील दी कि आधिकारिक क्षमता में किए गए किसी कृत्य के लिए कोई सरकारी सेवक राज्य के प्रति जवाबदेह है और अगर उससे किसी आपराधिक मामले में जवाब देने के लिए कहा जाता है तो इसके लिये केंद्र की मंजूरी जरुरी है.

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