नई दिल्ली: साल 2010 में रोहतक जिले के एक गांव में वर्चस्व वाले समुदाय द्वारा एक दलित व्यक्ति और उसकी नि:शक्त बेटी को मारे जाने की घटना को हत्या मानने से इंकार करने पर उच्चतम न्यायालय ने आज हरियाणा सरकार को आड़े हाथ लिया.
इस घटना को ‘’समाज पर धब्बा’’ करार देते हुए उच्चतम न्यायालय ने उस वक्त रोष व्यक्त किया जब हरियाणा सरकार ने कहा कि आग लगने के बाद 70 वर्षीय व्यक्ति और उसकी नि:शक्त बेटी घर में ‘’फंस’’ गए थे.राज्य सरकार ने यह दलील भी दी कि निचली अदालत ने भी उनकी मौत को हत्या नहीं माना है. न्यायमूर्ति जी एस सिंघवी और न्यायमूर्ति सी नागप्पन ने कहा, ‘’कितनी दुखद बात है कि आग के हवाले कर दिए गए अपने घर में एक नि:शक्त लड़की फंस कर दम तोड़ देती है और सरकार उसे बचा नहीं पाती. कितनी बड़ी त्रसदी है. उस वक्त राज्य सरकार के अधिकारी आखिर कर क्या रहे थे ?’’ पीठ ने कहा, ‘’जाति विशेष को कानून अपने हाथ में लेने और लोगों को मारने की पूरी छूट है.’’
न्यायालय ने हरियाणा सरकार के इस जवाब को भी काफी गंभीरता से लिया कि पीड़ितों का पुनर्वास मिर्चपुर के अलावा और किसी भी गांव में नहीं किया जा सकता.जब राज्य सरकार के वकील ने बार–बार कहा कि पीड़ितों का पुनर्वास मिर्चपुर के अलावा और किसी भी गांव में नहीं किया जा सकता तो इस पर पीठ ने कहा, ‘’वे (दलित पीड़ित) आतंक के माहौल में वहां नहीं जा सकते.’’