अहमदाबाद : गुजरात उच्च न्यायालय ने पटेलों के लिए आरक्षण आंदोलन चलाने वाले हार्दिक पटेल के अपहरण के उनके दावे पर संदेह जताते हुए आज उनकी कड़ी खिंचाई की. अदालत ने हार्दिक और उनके वकील को अदालत की अवमानना के लिए कार्रवाई की चेतावनी दी और कहा कि उन्होंने अदालत की कार्यवाही का ‘‘दुरुपयोग” किया है.
न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति के जे ठाकेर की खंडपीठ ने हार्दिक के एक सहयोगी की ओर से दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवायी करते हुए कहा ‘‘उन्हें अवैध रुप से बंधक बनाने के बारे में कोई राय नहीं बनायी जा सकती” क्योंकि प्रथम दृष्टया अदालत आरोपों को लेकर संतुष्ट नहीं है.
अदालत ने कहा, ‘‘प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि (हार्दिक के लिए) यह जरुरी है कि (हार्दिक द्वारा) लगाये गए आरोपों (कि उनका अपहरण हो गया था) को सिद्ध करना जरुरी है. प्रथम दृष्टया हम आरोपों (अपहरण के) से संतुष्ट नहीं हैं.” अदालत ने कहा, ‘‘यदि कोई भी अदालत की कार्यवाही को भ्रमित करने का प्रयास करता है, इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है या इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती.
कोई भी अदालत की कार्यवाही को भ्रमित नहीं कर सकता. मामले की गंभीरता को देखते हुए, इसकी सुनवायी 29 सितम्बर तक स्थगित की जाती है.” अदालत ने एक आदेश में कहा, ‘‘‘हम वर्तमान में इस बारे में कोई भी राय नहीं व्यक्त करते कि बंदी (हार्दिक) पुलिस की अवैध हिरासत में था या नहीं. यदि किसी कार्रवाई :हार्दिक के खिलाफ: की जरुरत है, पुलिस कानून के तहत कार्रवाई कर सकती है.”
पटेल समुदाय को ओबीसी कोटे में आरक्षण की मांग को लेकर हार्दिक आंदोलन चला रहे हैं. वह मंगलवार की रात रहस्यमय तरीके से लापता होने के बाद कल अचानक सामने आये. उन्होंने दावा किया है कि उनका ‘‘पुलिस जैसे दिख रहे एक व्यक्ति” ने अपहरण कर लिया था.
इससे पहले, उनके दो सहयोगियों दिनेश पटेल और केतन पटेल ने अपने वकील बी एम मंगुकिया के माध्यम से उच्च न्यायालय में यह आरोप लगाते हुए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की कि पटेल नेता को पुलिस ने अवैध रुप से बंधक बना लिया है. उच्च न्यायालय ने मामले की सुनवायी करने के बाद राज्य सरकार से हार्दिक का पता लगाने का निर्देश दिया था. जब हार्दिक सामने आये मंगुकिया ने उन्हें न्यायालय में पेश किया.
मामले की सुनवायी के दौरान आज उच्च न्यायालय ने कहा कि पटेल नेता और उनके वकील ने अदालत की कार्यवाही का ‘‘दुरुपयोग” किया है और उन्हें अदालत की अवमानना की कार्यवाही की चेतावनी दी.अदालत ने मंगुकिया से कहा, ‘‘बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर करने से पहले आप मीडिया के पास गए, आपके खिलाफ अदालत की अवमानना का स्वत: संज्ञान क्यों नहीं लिया जाए.” पीठ ने कहा, ‘‘आपने राज्य की पूरी मशीनरी और अदालत को एक व्यक्ति के लिए दांव पर लगा दिया. याचिकाकर्ताओं की साख को लेकर हमारे अपने संदेह हैं.”