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राजसत्ता (स्टेट पावर) की विदाई के दृश्य

– हरिवंश – अंगरेजी में इस लेख का सटीक शीर्षक होता, ‘द स्टेट बिगिंस टू डिसइंटीग्रेट’. अगर भारत की मौजूदा स्थिति के बारे में एक पंक्ति में बयान देना होता, तो कोई समझदार व्यक्ति यही कहता. जैसे झारखंड की सेहत पर एक लाइन में कोई जवाब मांगे, तो एक संवेदनशील दर्शक क्या कहेगा? ‘द स्टेट […]

– हरिवंश –
अंगरेजी में इस लेख का सटीक शीर्षक होता, ‘द स्टेट बिगिंस टू डिसइंटीग्रेट’. अगर भारत की मौजूदा स्थिति के बारे में एक पंक्ति में बयान देना होता, तो कोई समझदार व्यक्ति यही कहता. जैसे झारखंड की सेहत पर एक लाइन में कोई जवाब मांगे, तो एक संवेदनशील दर्शक क्या कहेगा? ‘द स्टेट इज नो मोर’. पर पहले देश की कुछ महत्वपूर्ण खबरों पर एक नजर.
– भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एमके नारायणन ने 16 मई को भारत सरकार के मंत्रिमंडल को आतंकवाद की डरावनी स्थिति का ब्योरा दिया. कहा, नौकरशाही के आलस्य, कामचोरी और काम में एकाउंटबिलिटी के अभाव ने मनहूस स्थिति पैदा कर दी है.
– भारत के गृह मंत्री कह रहे हैं कि अफजल मामले में सरकार इसलिए कार्रवाई नहीं कर रही है, ताकि पाकिस्तान से चल रही शांति वार्ता में गतिरोध पैदा न हो.
– प्रधानमंत्री कार्यालय को सप्रमाण खबरें दी गयीं कि यातायात और परिवहन मंत्री टीआर बालू ने अपने पद का इस्तेमाल उस कंपनी को काम दिलाने के लिए किया, जिसके मालिक उनके दो बेटे हैं.
श्री बालू ने डीएमके सुप्रीमो करुणानिधि के परिवार के सदस्यों की कंपनियों को भी मदद पहुंचायी है. झारखंड की भाषा में कहें, तो जैसे मंत्री एनोस एक्का अपनी पत्नी की कंपनी को अपने ही विभाग से काम देते हैं. वैसी ही स्थिति. इस प्रकरण के बाद लोग कह सकते हैं कि देश झारखंड बन रहा है.
– एक अन्य मंत्री हैं, रामदौस. स्वास्थ्य विभाग के मुखिया. उन्होंने एक निदेशक (एम्स) को हटवाने के लिए ही कानून बनवा दिया. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इस कदम को गैरकानूनी बता दिया. पर फिलहाल वह चर्चा में हैं कि सार्वजनिक क्षेत्र की तीन इकाइयों में टीके बनाने के काम को रुकवा दिया. और निजी कंपनियों को ये काम दिये गये.
– हाल ही में खबर आयी कि राष्ट्रपति की हाल की लैटिन अमेरिकी देशों की यात्रा में उनके पुत्र भी साथ गये. वह बिजनेस टूर पर राष्ट्रपति की सरकारी यात्रा में गये. उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री के विशेष सरकारी विमान में सरकारी कामकाज से ही यात्रा होती है. आमतौर पर परिवार के सदस्य यात्रा नहीं करते.
– अभी दो दिनों पहले की खबर है. जर्मनी सरकार ने भारत को ऑफर (प्रस्ताव) दिया है कि भारत के जिन लोगों ने लिचेस्टेंसटीन के एलटीजी बैंक में कालाधन रखा है, उनकी सूची भारत चाहे, तो जर्मनी दे सकता है. दुनिया के अन्य देश अपनी पहल पर अपने देश के ऐसे लोगों की सूची पहले ही जर्मनी से ले चुके हैं. भारत मौन है.
ये छह खबरें बताती हैं कि भारत में संविधान, कानून, मर्यादा, बड़े पदों पर बैठे लोगों के कामकाज की क्या स्थिति है? राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार केंद्रीय मंत्रिमंडल के सामने अशासन, कुशासन और अराजक स्थिति के कारण बताये और देश खामोश होकर सुने और भूल जाये?
बेंगलुरु, काशी, हैदराबाद, मुंबई, जयपुर वगैरह में आतंकवाद का रूप देखने के बाद भी भारत की सुरक्षा एजेंसियां, आतंकवादियों का कोई सूत्र नहीं जानतीं. आज तक एक आतंकवादी न पकड़ा गया, न सजा हुई. आतंकवादी ही विस्फोट के बाद जो सूचना देते हैं, उन पर ही हमारी खुफिया एजेंसियां काम करती हैं. यह है, हमारी खुफिया एजेंसियों की ‘इफीशियंसी और कैपेबिलिटी’ (कौशल और सामर्थ्य)? इनके भरोसे है यह देश? इस खुफिया व्यवस्था पर न जाने कितने अरब खर्च हो रहे हैं.
भारत के गृह मंत्री की मानें, तो पाकिस्तान के मूड के अनुसार हमें देश को चलाना चाहिए. एक नैतिक और साहसी सरकार अफजल इश्यू पर साफ स्टैंड लेती. अगर फांसी की सजा नहीं देनी है, तो उसके सैद्धांतिक आधार को साफ-साफ देश को बताती. पर शायद अब तक के इतिहास में शायद ही किसी गृह मंत्री ने ऐसा कहा हो? जिसका अर्थ निकले कि पड़ोसी देश की इच्छानुसार हमारे फैसले होंगे?
भारत सरकार के मंत्री, अपनी ही कंपनियों को काम दें, यह अब तक अनसुना-अनजाना था. एक दूसरे मंत्री सार्वजनिक उपक्रमों में टीकों का काम बंद करा कर निजी कंपनी को देते हैं. इस मंत्री के एक काम (एक निदेशक को हटाने के लिए कानून) से पूरी सरकार की पहले ही जगहंसाई हो चुकी है.
फिर भी इन मंत्रियों के खिलाफ प्रधानमंत्री कुछ नहीं कर पाते? क्या प्रधानमंत्री की निजी ईमानदारी ही पर्याप्त है? या उनके सहयोगियों को जो अधिकार, मर्यादा और बंधन की सीमा, संविधान से मिली है, वे इस सीमा के बाहर रहेंगे? निरंकुश और उन्मुक्त?
राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री देश की सर्वोच्च सत्ता हैं. लोकतंत्र के सबसे ताकतवर पद. ‘भारत संघ’ की ताकत के प्रतीक. पर इन पदों में मर्यादा और नैतिक आभा से ही लोक आस्था बनती है. राष्ट्रपति के ‘स्टेट टूर’ (सरकारी दौरे) में उनके बेटे बिजनेस टूर पर जायें, तो क्या संकेत मिलेंगे? नीचे के लोग क्या अनुकरण करेंगे?
इसी तरह भ्रष्टाचार पर सरकारों का दोहरा चेहरा देखिए? सत्ता के बाहर, नेता कहते हैं कि विदेश में जमा कालाधन वापस लाओ. अब एक देश की सरकार प्रस्ताव दे रही है कि जिन भारतीयों के कालाधान (विदेशी मुद्रा में) लिचेस्टेंसटीन में जमा है, उनकी सूची मेरे (जर्मनी) पास है, ले जाइए.
पर भारत का शासक वर्ग यह सूची नहीं चाहता. नौ मई को दिल्ली में दुनिया के जानेमाने प्रबंधन गुरु सीके प्रह्लाद ने दिल्ली में एक व्याख्यान दिया . कहा, भारत सिर्फ अपना भ्रष्टाचार कम कर ले, महज अमेरिका के बराबर, तब भी भारत का जीडीपी सन 2020 तक बढ़ कर 28.2 ट्रिलियन हो जायेगा.
ऐसे ‘चैलेंजिंग इश्यूज’ (चुनौतीपूर्ण मामले) पर नेतृत्व या राजनीति या सरकारें प्रभावी कदम न उठायें, तो स्टेट पावर (राजसत्ता) की विदाई की आशंका साफ दिखाई देती हैं.
नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री प्रो गुन्नार मिर्डल के मुहावरे में कहें, तो ‘फंक्शनल एनार्की’ (अराजकता) की स्थिति. भारत फिलहाल इसी दौर से गुजर रहा है. नेता या राजकाज चलानेवाले अपनी ही दुनिया में मुग्ध हैं और जनता आत्मकेंद्रित. भला ऐसे समाज और देश कैसा भविष्य गढ़ेंगे?
दिनांक : 25-05-08

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