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घृणा और नफरत तो करिए ही पर सोचिए और क्या कर सकते हैं…

– हरिवंश – चार दिनों पहले की सूचना है. हालांकि खबर छोटी थी, पर भारतीय चरित्र का प्रतिनिधि नमूना. खासतौर से राजनीतिज्ञों, भारत के शासक वर्ग, बिचौलियों और मध्यवर्ग के चरित्र, चाल-चलन का सांकेतिक उदाहरण है, यह खबर. लोकतंत्र के मंदिर ‘संसद’ से जुड़ा समाचार है, यह. सोनिया गांधी, संसद के रेलवे कैंटीन में बैठी […]

– हरिवंश –
चार दिनों पहले की सूचना है. हालांकि खबर छोटी थी, पर भारतीय चरित्र का प्रतिनिधि नमूना. खासतौर से राजनीतिज्ञों, भारत के शासक वर्ग, बिचौलियों और मध्यवर्ग के चरित्र, चाल-चलन का सांकेतिक उदाहरण है, यह खबर.
लोकतंत्र के मंदिर ‘संसद’ से जुड़ा समाचार है, यह. सोनिया गांधी, संसद के रेलवे कैंटीन में बैठी थीं. कांग्रेस सांसद मारग्रेट अल्वा ने पूछा, क्या वह डोसा खाना पसंद करेंगी? उनकी सहमति मिलते ही हरियाणा और तमिलनाडु की दो महिला सांसद (कांग्रेस) डोसा लाने दौड़ीं. डोसा आया. उसका मामूली टुकड़ा, सोनिया जी ने लिया और प्लेट सरका दिया. इस बीच पानी का ग्लास लुढ़क गया.
दोनों महिला सांसद टेबल की सफाई करने लगीं. इस बीच मीडिया के लोग वहां पहुं च गये. सोनिया जी ने करीब आधा दर्जन बार कहा कि इसे शूट न किया जाये, तब तक कई कैमरों में यह दृश्य कैद हो चुका था.
भारतीय संस्कृति अतिथि को ‘देवता’ मानता है. घर पर आये अतिथि के साथ शिष्टता-मर्यादा अलग प्रकरण है. पर संसद की कैंटीन में दो सांसदों का यह आचरण! शर्मनाक शब्द भी इस खबर के संबंध में अधूरा है. ऐसी चाटुकारिता क्यों? लोकलाज छोड़ कर संसद की कैंटीन में यह चारणभाव! क्या मंत्री बनने के लिए? भविष्य की सांसदी के लिए? समाज में महत्वपूर्ण बने रहने के लिए? लेकिन किस कीमत पर? मनुष्य होने का गौरव, गरिमा और आत्मविश्वास बेच कर. जिन सांसदों में अपने नेता की जूठन साफ करने के लिए होड़ हो, वे संसद में देशहित की बात करेंगे या ‘नेता हित’ की? ऐसे सांसदों के लिए देश बड़ा है या नेता?
बहुत वर्ष नहीं बीते. 1975 के दौर में कांग्रेस अध्यक्ष देवकांत बरुआ ने कहा, ‘इंडिया इज इंदिरा, एंड इंदिरा इज इंडिया’ (भारत, इंदिरा है और इंदिरा, भारत है). यह चाटुकारिता कहां ले गयी? कांग्रेस जैसी तपी-तपायी महान संस्था खत्म होने लगी. विवेक संपन्न, आदर्श चरित्र और तप-त्यागवाले नेताओं की जगह चापलूस, अपराधी, देश के सौदागरों, दलालों और फिक्सरों की भारतीय राजनीति में उन्हीं दिनों से बाढ़ आनी शुरू हुई.
आज भी लोग याद करते हैं, कैसे उत्तरप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने इमरजेंसी में लखनऊ की आमसभा में संजय गांधी के चप्पल उठाये थे. कैसे बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ जगन्नाथ मिश्र ने संजय परिवार की परिक्रमा और पूजन किया था? इस चारण संस्कृति ने महान कांग्रेस की जड़ों में मिट्टी डाल दिया और कांग्रेस आज तक उबर न सकी. पर कांग्रेस वह चारण संस्कृति नहीं छोड़ सकी है.
अतीत और इतिहास में अनंत घटनाएं हैं, जो साबित करती हैं कि जो इंसान अपना स्वाभिमान नहीं बचा सकता, अपने मनुष्य होने की गरिमा की रक्षा नहीं कर सकता, वह देश का स्वाभिमान, मान और सम्मान कैसे बचा पायेगा? जो पद, प्रतिष्ठा और लोक सुख के लिए सार्वजनिक रूप से अपनी गरिमा बेच सकता है, वह देश-समाज की सौदेबाजी कर सकता है.
वह सार्वजनिक हितों को गिरवी रख कर निजी लाभ को प्राथमिकता देता है. ऐसे राजनीतिज्ञों के लिए समाज, देश, बाद में आता है. पहली प्राथमिकता होती है, अपना हित, अपने परिवार का हित और अपने कट्टर समर्थकों का हित! आज की राजनीति का कुल गणित यही है, पहले अपना स्वार्थ, फिर अपने परिवार का स्वार्थ, तब अपने रिश्तेदार!
अगर आप अपना स्वार्थ भी देखते हैं, तो एक सक्षम, शालीन और गर्व करनेवाली व्यवस्था और माहौल की जरूरत आपको भी है. कम से कम अपनी भावी पीढ़ी के लिए सोचिए. कैसे राजनेताओं और सांसदों को हम रहनुमाई के लिए चुन रहे हैं?
कुछ ही दिनों पूर्व रांची में एक जश्न मना था. जश्न मनानेवाले थे, युवा कांग्रेसी. विश्वकप फुटबाल में इटली की जीत हुई. बधाइयां सोनिया जी को दी गयीं. उनकी जय जयकार हुई. क्योंकि वह इटली में जन्मी है.
हमारे सार्वजनिक जीवन में अगर ऐसे चारण, भाट, दरबारी आगे आते रहें, तो भविष्य का अंदाज सहज ढंग से लगाया जा सकता है. इसलिए सार्वजनिक जीवन में छा और पसर रहे ऐसे लोगों से महज घृणा और नफरत ही पर्याप्त नहीं है. इन्हें रोकने की भरपूर अहिंसक कोशिश होनी चाहिए. गांधीवादी तौर तरीके और रास्ते से.
दिनांक : 09-08-06

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