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– हरिवंश – मतदान पेटियों से ही तय होगा कि भारत सुपरपावर बनेगा या अशासित राज्य? आधी रात को मिली आजादी (1947) ने पंडित नेहरू के शब्दों में नियति से मुठभेड़ (ए ट्रिस्ट विथ डेस्टिनी) करायी. उस पीढ़ी ने नया सपना देखा. पर पहली बार 1991 के उदारीकरण के गर्भ से निकली युवा पीढ़ी (लगभग […]

– हरिवंश –
मतदान पेटियों से ही तय होगा कि भारत सुपरपावर बनेगा या अशासित राज्य? आधी रात को मिली आजादी (1947) ने पंडित नेहरू के शब्दों में नियति से मुठभेड़ (ए ट्रिस्ट विथ डेस्टिनी) करायी. उस पीढ़ी ने नया सपना देखा. पर पहली बार 1991 के उदारीकरण के गर्भ से निकली युवा पीढ़ी (लगभग दो करोड़) इस बार वोट डालेगी.
यह पीढ़ी, जो चाहती है कि हमारा कल, हमारे आज से बेहतर हो. इस चुनाव में लगभग 71.4 करोड़ मतदाता एक नयी सरकार चुनेंगे. 543 लोकसभा क्षेत्रों में. आठ लाख 28 हजार मतदान केंद्रों पर. 10.36 लाख इलेक्ट्रॉनिक वोट मशीनों से. 60 लाख अधिकारियों और सुरक्षा जवानों की पहरेदारी में.
इस चुनाव से भविष्य के भारत की स्थिति स्पष्ट होगी. आज भारत चुनौतियों से घिरा है. महंगाई, आतंकवाद, भ्रष्टाचार, विदेशों में जमा भारतीय धन, आंतरिक सुरक्षा को चुनौती, आर्थिक मंदी, नौकरियों में कटौती, अनैतिक होता सार्वजनिक जीवन, अयोग्य और अक्षम नेताओं की बढ़ती तादाद व अन्य.
पर मुसीबतों में ही नायक का जन्म होता है. नायक, जो देश को महाशक्ति में बदल दें, इसी प्रक्रिया से निकलेंगे. वे नेता, जो भारत की नयी नियति लिखेंगे और नयी दिशा देंगे, इसी चुनाव प्रणाली से सार्वजनिक मंच पर पहुंचेंगे.
इतिहास भूल जाइए. हाल की दो घटनाओं पर गौर करें. चीन को देंग शियाओ पेंग ने दुनिया के स्टेज पर पहुंचा दिया, एक बड़ी ताकत के रूप में. सांस्कृतिक क्रांति (1966-76) के बाद जो देश पस्त, बिखरा और अंदरूनी रूप से कमजोर था, वह आज दुनिया की बड़ी महाशक्ति है. इसी तरह रूस, जो 1990 के दशक में बदहाल देश (बास्केट केस) बन गया था, उसे राष्ट्रपति पुतिन ने अपने असाधारण नेतृत्व और क्षमता से विश्व की बड़ी ताकत बना दिया.
गांधीजी कहते थे, महान लक्ष्य के लिए साधन, साध्य में एकता जरूरी है. पवित्र साधन हों, तो बड़े लक्ष्य साकार होंगे. इसलिए जो दल या प्रत्याशी संकीर्ण हैं, धर्म की बात करते हैं, जाति का राग अलापते हैं, क्षेत्रीयता की बात करते हैं, ऐसे तत्वों को नकारने से ही बड़े नायक मिलेंगे. आज भारत के युवाओं में एक नयी ताकत है. वे बेचैन हैं. अधीर हैं. अपना भविष्य गढ़ने के लिए. देश को बेहतर बनाने के लिए.
पर यह कैसे होगा? ड्राइंग रूमों में बैठने से नहीं. घरों से निकलिए. वोट डालिए. चेंज इंडिया के सपनों को साकार करिए. एक-एक व्यक्ति, औरत या मर्द, बच्चे या बूढ़े, सब वोट डालें. अपनी सुरक्षा के लिए.
विकास के लिए. बेहतर कानून -व्यवस्था के लिए. एक स्थिर सरकार के लिए. अपने देश के लिए. साफ-सुथरे सांसदों के लिए, जो सवाल पूछने के लिए पैसे न लें. जो सरकार बनाने-बिगाड़ने के खेल में बिके नहीं. जो भ्रष्ट या दागदार न हों. जो अपराध की दुनिया से दूर हों. जो लोकसभा में असंसदीय भाषा न बोलें. जो भारत की चुनौतियों को समझें. जो अमर्यादित आचरण न करें.
अगर हम बेहतर लोग चुनेंगे, बेहतर हाथों में सत्ता सौंपेंगे, तो हम आनेवाले पांच वर्षों में चैन की नींद सोयेंगे. अपने लिए सुंदर माहौल बनायेंगे. बच्चों के लिए बेहतर भविष्य छोड़ कर जायेंगे. सुरक्षित और समृद्ध. लोकतंत्र में हम मतदाताओं के पास एक ही हथियार है.
मतदान का. वह भी पांच वर्षों में एक बार. इस अवसर पर चूके, तो भविष्य दावं पर. इसलिए नये भारत को गढ़ने के क्रम में एक-एक मत निर्णायक हैं. इसका उपयोग करिए.
दिनांक : 16-04-09

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