– हरिवंश –
सूचना के अनुसार, वर्ष 2003 के अंत में और 2004 के शुरू में चीन के बड़े नेताओं ने शासन और राजकाज चलाने का काम बिल्कुल छोड़ दिया. कुछेक दिन दुनिया के उभरते सुपरपावर के अध्ययन-मनन में अपने आपको लगा दिया. एक जगह. एक साथ. एकांत में. इसके ठीक पलट भारत के हालात क्या हैं? क्या भारत की राजनीति में चुपचाप अलग-थलग बैठ कर भारत के राजनेताओं ने चीन पर सोचा-समझा? अपनी हालत के बारे में सोचा? हम कहां खड़े हैं? आनेवाले दिनों में कहां जाना चाहते हैं? उसका ब्लूप्रिंट या रणनीति क्या होगी?
हां, यह आरोप (देश से दगाबाजी) है, देश के नेतृत्व वर्ग (रूलिंग इलीट) पर. शासक वर्ग पर. इस प्रभु वर्ग या शासक वर्ग में सबसे पहले दोषी सरकार है. फिर इस व्यवस्था के अन्य संचालक-साझीदार या स्टेकहोल्डर. मसलन विपक्ष, राजनीतिक दल, बौद्धिक वर्ग, बड़े नेता व नौकरशाह.
भारत, भारी मुसीबत से घिर चुका है. घिर रहा है. हर दिन. पर देश में इस पर जरूरी चर्चा-चिंता नहीं है. इस सड़ी या सड़ती व्यवस्था के बदबू देते घोटालों से देश का माहौल दुर्गंधमय है. हम, एक दूसरे पर कीचड़ उछालने में इस कदर डूबे हैं कि बाहरी चुनौती की आहट तक नहीं. चीन, भारत के लिए बड़ा खतरा बन कर उभरा है. दबी जुबान, देश में चर्चा हो रही है, पर यह खतरा मामूली नहीं है. हाल की इन खबरों पर गौर पर करें.
देश के रक्षा मंत्री एके एंटनी (जो अत्यंत ईमानदार हैं. राजनीति में दुर्लभ. कम बोलने वाले) ने कहा है (28 सितंबर, टाइम्स आफ इंडिया) कि चीन, भारत की सीमा पर आक्रामक रूप से किलेबंदी (टेकबंदी) कर रहा है. अपनी क्षमता का विस्तार कर रहा है. रक्षा मंत्री ने माना कि पहले भारत पूर्वोत्तर सीमा पर लापरवाह था. रक्षा मंत्री ने यह भी माना कि कुछ महीनों पहले चीनी सेना ने हमारी सीमा में घुसपैठ की थी.
इसी महीने खबर (टाइम्स आफ इंडिया, 15.9.11) थी कि चीनी सेना ने लेह में भारतीय बंकरों को नष्ट किया. भारतीय सीमा में घुस कर. चीनी हेलीकॉप्टर भी भारतीय आकाश में उड़े. सीमा में ड़ेढ़ किमी अंदर आये. भारतीय सेना और आइटीबीपी के टेंट वगैरह भी नष्ट कर डाला.
यह खबर भी इसी माह (5 सितंबर, टाइम्स आफ इंडिया) की है. विकीलीक्स केबल के अनुसार, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 2009 में अमेरिकी सेक्रेटरी आफ स्टेट यानी विदेश मंत्री से चीन के आक्रामक तेवर को लेकर अपनी चिंता जाहिर की.
16 सितंबर को खबर आयी (हिंदुस्तान टाइम्स) कि तेल के सवाल पर चीन से विवाद. चीन ने भारत को दक्षिणी चीन सागर से दूर रहने को कहा.
ये चारों खबरें अखबारों में अत्यंत प्रमुखता (प्रथम पेज) से छपीं. इनके अलावा लगातार सूचनाएं आती रही हैं कि पाकिस्तान के कराची से लेकर अधिकृत कश्मीर तक, चीन पाकिस्तान के सहयोग से रेललाइन बनाने से लेकर गिलगिट (सबसे ऊंची चोटी) सीमा पर तैयारी में लगा है. तिब्बत में दूर तक मार करनेवाली मिसाइलें लगा रखी हैं. अरुणाचल पर उसका दावा है.
नेपाल, बर्मा में उसकी ताकत है. बांग्लादेश से लेकर हिंद महासागर, श्रीलंका तक वह अपना जाल फैला चुका है. एक तरह से भारत को घेर चुका है. दरअसल चीन अत्यंत ताकतवर हो गया है. यह दुनिया की हकीकत है. स्वामीनाथन अंकेलश्वरैया अय्यर (28 सितंबर, इकानामिक टाइम्स) कहते हैं कि आर्थिक ताकत या प्रभुत्व अंतत: सैनिक ताकत में तब्दील होता है. हाल में एक नयी किताब आयी है. अरविंद सुब्रहमनियन की. चीन के बारे में. पुस्तक का नाम है- इकलिप्स: लिविंग इन द शैडो आफ चाइनाज इकानामिक डोमिनेंस.
वह मानते हैं कि चीन सबसे बड़ी ताकत बन चुका है. अमेरिका के आर्थिक वर्चस्व का दौर तेजी से खत्म हो रहा है. उन्होंने नये तरीके से सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का आकलन किया है.
उनके अनुसार, चीन की जीडीपी 2010 में 14.8 ट्रिलियन डॉलर था. अमेरिका का 14.6 ट्रिलियन डॉलर. उनके अनुसार, जीडीपी, व्यापार की ताकत (ट्रेड स्ट्रेंथ) और बाहरी वित्तीय ताकत (एक्सटर्नल फाइनेंसियल स्ट्रेंथ), इन तीन चीजों के बल पर ब्रिटेन ने 19 वीं सदी में दुनिया पर राज किया. अमेरिका ने 20 वीं सदी पर इन्हीं तीन औजारों से अपना प्रभुत्व बनाये रखा. श्री अरविंद का निष्कर्ष है कि चीन 2010 में नंबर एक बन चुका है. 2020 तक और आगे निकल जायेगा. 2030 तक वह निर्विवाद रूप से दुनिया का सुपरपावर रहेगा.
इस बढ़ती आर्थिक ताकत की झलक चीन की विदेश नीति में दिखायी देती है. दुनिया में जो समुद्र के कानून (ला ऑफ सी) हैं, दक्षिण चीनी सागर में चीन उन्हें नहीं मानता. वियतनाम और फिलीपिंस के हक को भी नहीं मानता. पानी के बंटवारे में जो भी अंतरराष्ट्रीय मर्यादाएं, परंपराएं हैं, उन्हें भी चीन नहीं मानता. न नदियों का पानी बांटना चाहता है.
ब्रह्मपुत्र पर भी वह अपने मन से काम कर रहा है. तिब्बत के अंदर वह ब्रह्मपुत्र को बांध रहा है. पहले तो भारत के प्रधानमंत्री ने कहा कि इससे भारत को खतरा नहीं है. हालांकि अन्य जल विशेषज्ञों ने पहले ही लिखा कि ब्रह्मपुत्र पर चीनी चाल से खतरा है. बांग्लादेश और भारत के लिए इससे मुश्किलें हैं.
अब भारत सरकार भी मान रही है. दुनिया की मशहूर पत्रिका द इकानामिस्ट (10 सितंबर 2011) में भी खबर है कि ब्रिटेन की 1870 के दशक की अर्थव्यवस्था के बराबर 2030 तक चीन की अर्थव्यवस्था हो जायेगी. साथ ही अमेरिका की अर्थव्यवस्था 1970 में जैसी थी, उसके समकक्ष चीन की अर्थव्यवस्था हो जायेगी. सुब्रहमनियन के अनुसार, 2030 तक दुनिया की अर्थव्यवस्था पर जी वन (चीन) का आधिपत्य होगा. संसार एक ध्रुवीय होगा. जी वन की वास्तविक शक्ति चीन के पास होगी. द इकोनॉमिस्ट ने वर्ष 2010 के अंत में चीन पर दो अंक निकाले, नवंबर-दिसंबर में. पहला (13 से 19 नवंबर). दूसरा (4 से 10 दिसंबर).
एक अंक में ‘द डेंजर्स ऑफ राइजिंग चीन'(उभरते चीन के खतरे) पर चर्चा थी. उसमें एक जगह उल्लेख है. बिल अमाउट (द इकानामिस्ट के पूर्व संपादक) की पुस्तक ‘द राइवल्स’ का. उन्होंने भारतीय विदेश सेवा के एक बड़े अफसर से बात की. भारत-चीन संबंधों पर. उन्होंने कहा कि हम या चीन दोनों समझते हैं कि भविष्य हमारा है. पर यथार्थ यह है कि हम दोनों एकसाथ सही नहीं हो सकते. किसी एक का ही भविष्य होगा. स्पष्ट है आज की तारीख में वह भविष्य चीन के साथ है. चीन सुपरपावर बनने की तैयारी बड़े धैर्य से करता रहा है.
30-40 वर्षों से चुपचाप. बिना ढोल पीटे. वाशिंगटन के एक प्रोफेसर डेविड लैमटन से एक चीनी विद्वान ने कहा, हम अपनी बढ़ती ताकत को छुपाते थे, सार्वजनिक नहीं करते थे. पर जैसे-जैसे ताकत बढ़ती गयी, गोपनीय रखना असंभव होता गया. अब वह मानते हैं कि ‘पावर चेंजेज नेशंस’ (सत्ता देशों को बदल देती है). इससे देश के अंदर इच्छाएं बढ़ती हैं. भोग की आकांक्षा पैदा होती है. वर्चस्व का भाव बढ़ता है. आदर, सम्मान और श्रद्धा पाने की भूख बढ़ती है. इससे महत्वाकांक्षा पैदा होती है. अड़चनों या कठिनाइयों के प्रति अधैर्य पैदा होता है.
किसी सवाल का जवाब वे ना में नहीं सुनना चाहते. चीन लगभग इसी रास्ते पर है. इसी मानस के तहत चीन ने हाल में भारत को धमकी दी कि वह वियतनाम के समुद्री इलाके में तेल खुदाई का काम न करे. याद रखिए भारत, वहां वियतनाम के आग्रह पर गया है. तब यह धौंस. चीन के आधुनिक निर्माता देंग सियाओ पेंग का नारा था, ‘बाइड एंड हाइड’ (प्रतीक्षा करो और छुपे रहो). साफ है कि चीन शुरू से एक बड़ी तैयारी के साथ दुनिया के शिखर पर पहुंचने के काम में लगा है.
सूचना के अनुसार, वर्ष 2003 के अंत में और 2004 के शुरू में चीन के बड़े नेताओं ने शासन और राजकाज चलाने का काम बिल्कुल छोड़ दिया. कुछेक दिन दुनिया के उभरते सुपरपावर के अध्ययन-मनन में अपने आपको लगा दिया. एक जगह. एक साथ. एकांत में. इसके ठीक पलट भारत के हालात क्या हैं?
क्या भारत की राजनीति में चुपचाप अलग-थलग बैठ कर भारत के राजनेताओं ने चीन पर सोचा-समझा? अपनी हालत के बारे में सोचा? हम कहां खड़े हैं? आनेवाले दिनों में कहां जाना चाहते हैं? उसका ब्लूप्रिंट या रणनीति क्या होगी? उधर चीन 1978 से चुपचाप सुपरपावर बनने में लगा है.
अब वह मंजिल के पास है. दुनिया की महाशक्ति के रूप में चीन, भारत के लिए बड़ा खतरा है. सिर्फ सितंबर में भारत से जुड़ी चीन की हरकतों को पढ़ कर इसकी पुष्टि हो सकती है. फिर रास्ता क्या है? युद्ध? बिल्कुल नहीं. ताकतवर भारत का उदय ही एकमात्र विकल्प है. मैत्री समान ताकत वालों में होती है. नहीं तो दासता का रिश्ता विकसित होता है.
हाल के दिनों में चीन ने बड़े पैमाने पर अपनी पार्टी में भी फेरबदल किया है. वे युवा लोगों को और आगे ला रहे हैं. दोबारा माओ के गीत गाये जा रहे हैं. चीन में नयी पीढ़ी के युवा नेता महत्वपूर्ण पदों पर बैठा दिये गये हैं. वे प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं. सबल चीन बनाने के लिए, श्रेष्ठ शासक होने के लिए. गवर्नेंस को सर्वश्रेष्ठ बनाने के लिए. क्या भारत में भी कहीं ऐसा होता दिख रहा है? मीडिया में नेताओं के रोज के कामकाज और बयान पढ़िए. देश को चाहने वाले लोगों के मन में क्षोभ और निराशा ही होगी.
1956 में रूसियों ने बड़ी नम्रता और मर्यादा से पश्चिमी ताकतों-लोगों से कहा था ‘हिस्ट्री इज आन आवर साइड. वी विल बरी यू ‘(इतिहास हमारी ओर है, हम आपको दफना देंगे). रूस अपने सपने को साकार नहीं कर पाया, पर लगता है, इतिहास आज चीन के पक्ष में और पश्चिम के खिलाफ है.
दिनांक : 02.10.2011