नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय के फैसले से भारतीय नागरिकों को नकारात्मक मतदान का अधिकार मिलने के बाद अब राइट टू रिकॉल (निर्वाचित प्रतिनिधियों को वापस बुलाने का अधिकार) की मांग तेज होने के बीच कानूनविदों एवं विशेषज्ञों ने भारत में लोकसभा क्षेत्रों के लिए मतदाताओं की संख्या अधिक होने, प्रक्रियागत जटिलताओं आदि के कारण इसे अव्यवहारिक बताया है.
राइट टू रिकॉल का प्रावधान अमेरिका के लास एंजिल्स, मिशिगन, ओरेगन जैसे कुछ प्रांतों में लागू है. लॉस एंजिल्स में यह 1903 में और मिशिगन एवं ओरेगन में 1908 में लागू किया गया था. कनाडा में इसे 1995 में लागू किया गया था.
स्विट्जरलैंड की संघीय व्यवस्था में बर्न, सालोथार्न, थर्गउ, उड़ी प्रांत में यह व्यवस्था लागू है जबकि बेनेजुएला में अनुच्छेद 72 के तहत किसी सदस्य का आधा कार्यकाल पूरा होने के बाद उन्हें वापस बुलाने की प्रक्रिया शुरु की जा सकती है और इसके लिए 25 प्रतिशत पंजीकृत मतदाओं का मत जरुरी होता है. आस्ट्रेलिया में भी यह व्यवस्था अमल में है.
लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष कश्यप ने कहा, भारत जैसे बड़े देश में यह व्यवस्था स्थानीय निकाय के स्तर पर तो ठीक है लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर यह व्यवहारिक नहीं है. अमेरिका में भी राइट टू रिकॉल कुछ राज्यों में ही लागू है.
उन्होंने कहा, भारत में एक लोकसभा सीट में मतदाताओं की संख्या 8 से 15 लाख तक होती है. अभी जिन देशों में राइट टू रिकॉल का जो प्रावधान है, उसके तहत प्रक्रिया शुरु करने के लिए कहीं 50 प्रतिशत और कहीं 10 प्रतिशत पंजीकृत मतदाताओं के हस्ताक्षर की जरुरत होती है. इतने हस्ताक्षर जुटाना बड़ी समस्या है.