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वाजपेयी सरकार मेरे नहीं बल्कि सैफुद्दीन सोज की क्रॉस वोटिंग से गिरी थी : गमांग

भुवनेश्वर : वर्ष 1999 में एक वोट से अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के गिर जाने के लिए जिम्मेदार समझे जाने वाले व्यक्तियों में एक माने जाने वाले ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री गिरिधर गमांग ने आज दावा किया कि उनके वोट से नहीं, बल्कि नेशनल कांफ्रेंस के तत्कालीन सदस्य सैफुद्दीन सोज की क्रॉस वोटिंग के चलते […]

भुवनेश्वर : वर्ष 1999 में एक वोट से अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के गिर जाने के लिए जिम्मेदार समझे जाने वाले व्यक्तियों में एक माने जाने वाले ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री गिरिधर गमांग ने आज दावा किया कि उनके वोट से नहीं, बल्कि नेशनल कांफ्रेंस के तत्कालीन सदस्य सैफुद्दीन सोज की क्रॉस वोटिंग के चलते तत्कालीन सरकार गिरी थी.
उन्होंने यहां संवाददाताओं से कहा, यह मेरा वोट नहीं बल्कि प्रो. सैफुद्दीन सोज की क्रॉस वोटिंग थी, जिसने वाजपेयी सरकार की बाजी पलट दी. वाजपेयी सरकार प्रो. सोज की क्रॉस वोटिंग के चलते एक वोट से विश्वास प्रस्ताव हार गयी. सोज ने अपनी पार्टी के व्हिप का उल्लंघन किया था और प्रस्ताव के विरुद्ध मतदान किया था.
कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से आज इस्तीफे की घोषणा करने वाले गमांग ने कहा कि इस गलतफहमी के चलते उन्हें खराब तत्व समझा जाता था कि उनके वोट के चलते ही वाजपेयी सरकार (विश्वास मत) हार गयी.
उन्होंने कहा, 17 अप्रैल, 1999 को प्रधानमंत्री वाजपेयी द्वारा लाए गए विश्वास प्रस्ताव पर मत विभाजन हो रहा था. मुझे संसद में कांग्रेस पार्टी के सचेतक ने दलबदल विरोधी कानून के तहत मत-विभाजन में भाग लेने के लिए सदन में आने को कहा था. विश्वास प्रस्ताव पराजित हो गया. उसके पक्ष में 269 और विपक्ष में 270 वोट पडे थे.
गमांग ने पिछली बातें याद करते हुए कहा, सरकार के गिरने की पृष्ठभूमि बहुजन समाज पार्टी के रुख में बदलाव से बनी. लोकसभा में बसपा के पांच सदस्य थे. बसपा ने पहले घोषणा की थी कि वह मत-विभाजन के दौरान अनुपस्थित रहेगी लेकिन उसने विश्वास प्रस्ताव के विरुद्ध वोट डाला. सोज ने भी पार्टी के व्हिप के विरुद्ध वोट डाला.
हालांकि, छह सदस्यों और एआईआरजेपी के एकमात्र आनंद मोहन जो तबतक विपक्ष के साथ थे, ने वाजपेयी सरकार के पक्ष में वोट डाला. उन्होंने कहा, मैं कोरापुट से लोकसभा सदस्य था लेकिन मैं ओडिशा का मुख्यमंत्री भी था, पर ओडिशा विधानसभा का सदस्य नहीं था. अतएव मैंने राज्य के मुख्यमंत्री के रुप में नहीं बल्कि एक संसद सदस्य के रुप में वोट डालने के संवैधानिक अधिकार के तौर पर मतविभाजन में हिस्सा लिया. गमांग ने कहा, चुनाव अभियान के दौरान भाजपा के पास यह कहने के सिवा कोई एजेंडा नहीं था कि गमांग के एक वोट से सरकार गिर गयी. भाजपा अपने सहयोगियों के साथ चुनाव जीती और उसने उनके साथ मिलकर राजग सरकार बनायी.
उन्होंने कहा, तब से लेकर आज तक मुझे अपमानित किया गया और मुझे काफी कुछ सहना पडा, मेरा आत्मसम्मान चला गया, बाद के हर चुनाव में मैं कांग्रेस के कारण लोगों के बीच बहस और चर्चा का विषय बना क्योंकि कांग्रेस ने 1999 में लोकसभा में विश्वास प्रस्ताव पर हुए मतविभाजन की सच्चाई कभी उजागर नहीं की. गमांग ने कांग्रेस प्रमुख को भेजे त्यागपत्र में लिखा है, पार्टी ने मुझे जनआलोचनाओं से भी नहीं बचाया जो मेरे लिए पीडादायक था क्योंकि मैं पार्टी के निर्देश पर लोकसभा में गया था और वोट डाला था.

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