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बच्चों की परवरिश के लिये कॅरियर छोड रही हैं माताएं : सर्वे

लखनउ: हिन्दुस्तान के शहरी इलाकों में अपने बच्चों की अच्छी परवरिश के लिये पेशेवर जिंदगी और कॅरियर को छोडने वाली उच्च शिक्षा प्राप्त माताओं की खासी तादाद है. उद्योग मण्डल ‘एसोचैम’ द्वारा ‘मदर्स डे’ से ऐन पहले कराये गये सर्वेक्षण में यह तथ्य सामने आया है. एसोचैम के सोशल डेवलपमेंट फाउंडेशन द्वारा कराये गये सर्वे […]

लखनउ: हिन्दुस्तान के शहरी इलाकों में अपने बच्चों की अच्छी परवरिश के लिये पेशेवर जिंदगी और कॅरियर को छोडने वाली उच्च शिक्षा प्राप्त माताओं की खासी तादाद है. उद्योग मण्डल ‘एसोचैम’ द्वारा ‘मदर्स डे’ से ऐन पहले कराये गये सर्वेक्षण में यह तथ्य सामने आया है.

एसोचैम के सोशल डेवलपमेंट फाउंडेशन द्वारा कराये गये सर्वे में लखनउ, अहमदाबाद, बेंगलूर, चेन्नई, दिल्ली, हैदराबाद, इंदौर, जयपुर, कोलकाता तथा मुम्बई समेत 10 शहरों की 25 से 30 वर्ष आयु वर्ग की करीब 400 ऐसी महिलाओं को शामिल किया गया, जो हाल ही में मां बनी हैं.

इन महिलाओं से पूछा गया था कि मां बनने के बाद वे अपनी पेशेवर जिंदगी के बारे में क्या निर्णय लेंगी. सर्वेक्षण के मुताबिक हाल में ही अपने पहले बच्चे को जन्म देने वाली करीब 30 प्रतिशत माताओं ने कहा कि उन्होंने अपने शिशु की देखभाल के लिये नौकरी छोड दी है, जबकि करीब 20 प्रतिशत ने अपने बच्चों के लिये कॅरियर को पूरी तरह छोडने का फैसला किया है. हालांकि ज्यादातर मांओं ने कहा कि बच्चे के स्कूल जाना शुरु करने पर वे दोबारा कॅरियर पर ध्यान देने की योजना बना रही हैं.

सर्वे के मुताबिक बच्चे के बडे होने पर फिर से अपनी पेशेवर जिंदगी शुरु करने का इरादा रखने वाली माताएं ‘भेदभाव’ के डर से दोबारा पुरानी नौकरी पर नहीं लौटना चाहतीं.

एसोचैम के सर्वेक्षण के दायरे में ली गयी ज्यादातर महिलाएं उच्च शिक्षा प्राप्त हैं और उनमें से कई के पास विभिन्न क्षेत्रों की परास्नातक डिग्री भी हैं लेकिन प्राथमिकताओं का टकराव होने की मुख्य वजह से वे नौकरी छोड रही हैं.

एसोचैम के महासचिव डी. एस. रावत ने सर्वेक्षण के बारे में कहा कि एकल परिवारों में महिलाओं के लिये बच्चों की परवरिश तथा कॅरियर के बीच संतुलन बनाना काफी मुश्किल होता है. जिंदगी से जुडे तनाव और भावनात्मक पसोपेश के साथ-साथ पारिवारिक और सामाजिक प्रतिबद्धताएं बच्चों की देखभाल के काम को और मुश्किल बनाती हैं, नतीजतन माताओं को अपनी कॅरियर सम्बन्धी महत्वाकांक्षाओं को छोडना पडता है.

सर्वे में शामिल बहुत सी माताओं ने कहा कि वे अपने बच्चे के बडे होने के दौरान आने वाले तमाम यादगार लम्हों के अनुभव से महरुम नहीं होना चाहतीं, इसलिये उन्होंने घर में ही काम शुरु किया है. उन्हें महसूस होता है कि इससे वह काम और बच्चे, दोनों के ही साथ न्याय कर सकेंगी.

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