नयी दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने 1984 के सिख विरोधी दंगों के दौरान पांच सिखों की हत्या के मामले में सज्जन कुमार को बरी करने के अदालत के फैसले के खिलाफ सीबीआई की याचिका आज विचारार्थ स्वीकार कर ली.
न्यायमूर्ति जी एस सिस्तानी और न्यायमूर्ति जी पी मित्तल की पीठ ने सज्जन कुमार को दो सितंबर को उच्च न्यायालय के महापंजीयक के समक्ष उपस्थित होकर मामले में जमानत मुचलका देने का निर्देश दिया है. दंगा पीडि़तों के परिजनों ने भी 29 वर्ष पुराने इस मामले में कुमार को दोषमुक्त करार देने के निचली अदालत के 30 मई को दिये निर्णय के खिलाफ इसी प्रकार की याचिकाएं दायर की थीं.
अदालत ने पीडि़तों के परिजनों से अपनी याचिकाएं वापस लेने और अपनी दलीलों को सीबीआई की याचिका में शामिल करने के लिए कहा है.अदालत ने अपने आदेश में कहा, पीडि़तों की याचिकाओं में जो आधार दिये गये हैं उन्हें सीबीआई की याचिका के अतिरिक्त आधार के तौर पर लिया जा रहा है और पीडि़तों को वहां दलीलें पेश करने का अधिकार है. इस मामले की सुनवाई के लिए 31 अक्टूबर की तारीख तय की गयी है.
जांच एजेंसी ने उच्च न्यायालय में दायर याचिका में कहा है कि निचली अदालत ने सज्जन कुमार को बरी करके भूल की है क्योंकि उन्होंने ही 31 अक्तूबर, 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भड़के दंगों के दौरान भीड़ को उकसाया था. एक विशेष अदालत ने 30 मई को कुमार को दोषमुक्त करार देते हुए कहा था कि वह संदेह का लाभ पाने के हकदार हैं क्योंकि अहम गवाह जगदीश कौर ने 1985 में न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा आयोग को दिए अपने बयान में आरोपी के तौर पर उनका नाम नहीं लिया था जबकि अन्य आरोपियों के नाम लिए गए थे.
अदालत ने हालांकि मामले में अन्य पांच आरोपियों को दोषी करार देते हुए सजा सुनाई थी.सीबीआई ने पूर्व विधायक महेंद्र यादव और किशन खोकर को उनके खिलाफ हत्या, लूटपाट और संपत्ति को जलाने समेत कुछ आपराधिक आरोपों से बरी किए जाने के फैसले को भी चुनौती दी है. इन दोनों को तीन वर्ष कारावास की सजा दी गई थी जबकि शेष तीन अपराधियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी.