दिल्ली में भाजपा की मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार किरण बेदी जब से राजनीति में आयी हैं पार्टी के अंदर और बाहर दोनों तरफ तूफान मचा है. जब वह भाजपा की दिल्ली मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार घोषित की गयी तो पार्टी के अंदर ही काफी हलचल मची. सांसद मनोज तिवारी, जगदीश मुखी जैसे भाजपा नेताओं ने पार्टी के इस फैसले पर नाराजगी जतायी. हालांकि बाद में पार्टी नेतृत्व के हस्तक्षेप के बाद मामला ठीक-ठाक हो गया.
लेकिन इसके बाद किरण बेदी पर पार्टी के बाहर से हमला हुआ. पहले तक तो विपक्षी पार्टियां उनपर मौखिक हमला करती रही. आप पार्टी ने उन्हें अवसरवादी बताया. कांग्रेस की आलोचना का भी शिकार हुई. लेकिन हद तब हो गयी जब सोमवार को वकीलों ने उसके दफ्तर पर हमला बोल दिया. इस हमले में उनके कई कार्यकर्ता घायल भी हुए. और आज किरण बेदी ने ट्वीट कर कहा है कि उनके दफ्तर को बम से उडाने की धमकी दी जा रही है. ऐसे में सवाल है कि आखिर किरण बेदी को क्यों परेशान किया जा रहा है?इसके लिए सिर्फ मौजूदा राजनीतिक कारण जिम्मेदार हैं या फिर कुछ और ?
वकीलों ने क्यों किया हमला
जनवरी 1988 में दिल्ली पुलिस ने एक व्यक्ति को पकडा जिस पर दिल्ली के संत स्टेफन्स कॉलेज की एक छात्रा की पर्स से चोरी का आरोप था. इस घटना के कुछ सप्ताह के बाद उसे फिर गिरफ्तार किया गया. इस वक्त उस पर महिला टॉयलेट में घुसने और उस दीवार पर अश्लील बातें लिखने का आरोप लगा. जब उन्हें कोर्ट में पेश किया गया तो उसकी पहचान राजेश अग्निहोत्री के रुप में की गयी. यह शख्स एक वकील था और तिस हजारी कोर्ट में प्रैक्टिस करता था. दिल्ली पुलिस के एक अधिकारी ने उस आदमी को गिरफ्तार कर उसे हथकडी लगा दी थी.
इस घटना को लेकर वकीलों ने काफी विरोध प्रदर्शन किया. उन्होंने कहा कि उन्हें झूठे केस में फंसाया गया है. वकीलों का तर्क था कि अगर पुलिस के पास गिरफ्तार करने के सबूत भी हो तो उन्हें हथकडी नहीं लगायी जा सकती है. बावजूद इसके बेदी ने इस कार्य के लिए अपने अधिकारियों का बचाव किया था. वकीलों ने उस वक्त डीसीपी (उत्तरी) ऑफिस के समक्ष प्रदर्शन भी किया था. इसमें पुलिस और वकीलों के बीच झडपें भी हुई थी. लोग बेदी को बर्खास्त करने की मांग भी कर रहे थे. बाद में बेदी को उस क्षेत्र से ट्रांसफर कर दिया गया था.
हो न हो वकीलों का वही पुराना गुस्सा कल बेदी के ऊपर फिर से उतर आया और उन्होंने दफ्तर में हमला कर दिया.