नयी दिल्ली : देश की पहली महिला आइपीएस अधिकारी किरण बेदी पिछले सप्ताह भाजपा में शामिल हो गयी. किरण बेदी के भाजपा में शामिल होने के बाद से दिल्ली चुनाव की तस्वीर बदली-बदली दिख रही है. अन्य पार्टियों के लिए तो यह सुर्खी है ही लेकिन किरण के आने से खुद भाजपा के अंदर भी एक हलचल सी मच गयी है.
इसको लेकर भाजपा के अंदर कुछ नेता नाराज दिखे तो कुछ ने खुले तौर पर कहा कि उन्हें सीएम पद का उम्मीदवार नहीं बनाया जाना चाहिए. हांलांकि मनोज तिवारी ने बाद में इस बात से पलटते हुए कहा कि हमने बेदी के सीएम पद के रुप में प्रोजेक्ट किये जाने के बारे में विरोध नहीं किया है. भाजपा में बेदी के आते ही दिल्ली में उन्हें सीएम पद की दौड़ में सबसे आगे माना जा रहा है.
जब किरण बेदी भाजपा में शामिल हुई तो उन्होंने यह कहा था कि वह दिल्ली की मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहती है. हालांकि उनका यह वक्तव्य उनका अपना निजी विचार होगा लेकिन जिस तरह से चर्चाएं हैं अगर उन्हें भाजपा सीएम के लिए आगे करती है तो वह उसे स्वीकार नहीं करेगी इसकी कम संभावना है.
इसके पीछे तर्क यह है कि जब किरण बेदी अन्ना आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभा रही थी उस वक्त वह राजनीति से भी परहेज करती थी और जब केजरीवाल राजनीति में कूद पडे तो उसने केजरीवाल से यह कहकर किनारा कर लिया था कि वह केजरीवाल के राजनीति में जाने से खुश नहीं है.
ऐसे में उनका स्वयं राजनीति में आना भाजपा के लिए जहां सुखद है वहीं आप सहित अन्य पार्टियों के लिए आश्चर्यजनक. केजरीवाल ने तो उन्हें पैराशुट से उतरा हुआ बता दिया.
किरण बेदी अपनी बेबाक टिप्पणी और कड़े फैसले के लिए जानी जाती है. इनमें स्वाभिमान की झलक दिखती है जिसका उदाहरण है कि एक जूनियर अधिकारी को प्रमोशन दिये जाने के मामले में उसने अपनी नौकरी छोड दी थी. लेकिन राजनीति में आने के बाद वह कितनी कड़क और क्षमतावान साबित होगी, उनमें इन सब प्रतिभाओं का कितना झलक दिखेगा यह दिल्ली विधानसभा चुनाव के बाद ही पूरी तरह से स्पष्ट हो पाएगा.