नयी दिल्लीःयोजना आयोग की गरीबी की परिभाषा पर अब खुद सरकार के अंदर से सवाल उठने लगे हैं. शहर और गांव में रहने वाले गरीबों का जो पैमाना योजना आयोग ने तय किया है उसे केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने खारिज कर दिया है. सिब्बल के मुताबिक 5000 रुपए में पांच सदस्यों के परिवार का गुजारा नहीं हो सकता.
योजना आयोग कहता है कि गांव में रहने वाला 5 सदस्यों के परिवार की आय हर महीने 4080 रुपये और शहर में रहने वाले 5 सदस्यों के परिवार की आय अगर 5000 रुपये है तो वो गरीबी की रेखा के ऊपर है. योजना आयोग की गरीबी की इस परिभाषा पर खुद सरकार के एक खास मंत्री ने सवाल उठा दिए हैं. केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल योजना आयोग की गरीबी की परिभाषा को मानने को तैयार नहीं है. उनके मुताबिक गरीबी की ऐसी परिभाषा गलत है.
योजना आयोग ने दावा किया कि यूपीए सरकार के दौरान गरीबी में 15 फीसदी की कमी आई है. आयोग का मानना है कि शहरों में 33 रुपये और गांवों में 27 रुपये प्रति दिन खर्च करने वाले गरीब नहीं हैं. लेकिन योजना आयोग की गरीबी की परिभाषा पर खुद कांग्रेसियों में एक राय नहीं है. एक तरफ कपिल सिब्बल योजना आयोग से सहमत नहीं हैं तो दूसरी तरफ एक और केंद्रीय मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल योजना आयोग पर सवाल उठाने को गलत मानते हैं.
योजना आयोग की नई गरीबी की परिभाषा पर सरकार की काफी किरकिरी हो रही है. ऊपर से कांग्रेस के प्रवक्ता राज बब्बर और कांग्रेस नेता रशीद मसूद ने ये कहकर कि मुंबई और दिल्ली में 12 रुपये और 5 रुपये में खाने की थाली मिल जाती है आग में घी का काम किया. अब सरकार के सहयोगी भी योजना आयोग की गरीबी की परिभाषा को बदलने की मांग कर रहे हैं.