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राज्यों को संसाधनों के अंतरण के लिए नये तंत्र की आवश्यकता

नयी दिल्ली: विकास की राह में सभी राज्यों के गरीबी और आधारभूत संरचना के अभाव की चुनौतियों का सामना करने पर गौर करते हुए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आज केंद्र से राज्यों को संसाधनों के अंतरण के लिए ज्यादा कारगर तंत्र लागू करने की वकालत की. उन्होंने कहा, विकास योजना का बुनियादी उद्देश्य इन (चुनौतियों) […]

नयी दिल्ली: विकास की राह में सभी राज्यों के गरीबी और आधारभूत संरचना के अभाव की चुनौतियों का सामना करने पर गौर करते हुए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आज केंद्र से राज्यों को संसाधनों के अंतरण के लिए ज्यादा कारगर तंत्र लागू करने की वकालत की.

उन्होंने कहा, विकास योजना का बुनियादी उद्देश्य इन (चुनौतियों) के खिलाफ लड़ना है. उन्होंने विभिन्न राज्यों के समक्ष गरीबी, पिछड़ेपन, आधारभूत संरचना के अभाव और बीमारियों जैसी साझा समस्याओं को गिनाते हुए यह बात कही. मुखर्जी ने कहा कि देश में सभी राज्यों की अलगअलग विशेषताएं हैं लेकिन वे समान चुनौतियों का सामना कर रहे हैं.

राष्ट्रपति यहां पुस्तक न्यू बिहाररिकाइंडलिंग गवर्नेंस एंड डेवलपमेंट की प्रति हासिल करने के बाद बोल रहे थे. इस पुस्तक का नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने विमोचन किया. राष्ट्रपति ने वैधानिक रास्ते से इतर राज्य सरकारों को संसाधनों के अंतरण के लिए तंत्र पर नए सिरे से गौर करने का भी सुझाव दिया.

उन्होंने कहा, अब अगर आप ऐसा करना चाहते हैं, तो इसपर नए सिरे से गौर करें. शायद समय गया है जब हमें इसपर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और सभी पक्षकारों को एक साथ दिमाग लगाकर पता लगाना चाहिए कि क्या कोई अधिक उचित तंत्र हो सकता है जिसके जरिए संसाधन (राज्यों को) अंतरित किए जा सकते हैं. मुखर्जी केंद्र द्वारा राज्यों को धनों के आवंटन का उल्लेख कर रहे थे.

राज्यों की उच्च संसाधन जरुरतों के सापेक्ष उनकी संसाधन जुटाने की शक्तियों को मान्यता देते हुए संविधान कहता है कि राज्य सरकारों को धन का अंतरण केंद्र सरकार द्वारा वसूले गए करों को वैधानिक अंतरण के जरिए किया जाना चाहिए.

इसके अतिरिक्त राज्यों को केंद्र प्रायोजित योजनाओं और राज्य योजनाओं को केंद्रीय सहायता के जरिए धन मिलता है.

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