नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने मध्यप्रदेश के उच्च न्यायालय को आदेश दिया है कि वह अपने उस सहयोगी को सभी प्राशासनिक और निरीक्षणात्मक दायित्व से वंचित करें जिसपर एक पूर्व महिला अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश के कथित यौन उत्पीडन का आरोप है.
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मप्र उच्च न्यायालय के न्यायधीश को प्रशासनिक जिम्मेदारी से वंचित किया जाएः सुप्रीम कोर्ट
नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने मध्यप्रदेश के उच्च न्यायालय को आदेश दिया है कि वह अपने उस सहयोगी को सभी प्राशासनिक और निरीक्षणात्मक दायित्व से वंचित करें जिसपर एक पूर्व महिला अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश के कथित यौन उत्पीडन का आरोप है. न्यायमूर्ति जे एस खेहर की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह भी कहा […]
न्यायमूर्ति जे एस खेहर की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह भी कहा कि मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने अधीनस्थ महिला न्यायाधीश की ओर से लगाए गए आरोपों पर जांच के लिए अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर दो न्यायाधीशों की समिति बनाई.
उन्होंने कहा, ‘‘वर्तमान मामले में मध्यप्रदेश के मुख्य न्यायाधीश अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर गए.दो न्यायाधीशों की समिति जांच के दूसरे चरण में बनायी जानी चाहिए थी.’’पीठ ने यह भी कहा कि आंतरिक जांच कार्यवाही का दूसरा चरण शुरु करने का आदेश भारत के प्रधान न्यायाधीश देते हैं.
पीठ ने कहा कि ‘पारदर्शी और निष्पक्ष जांच के लिए यह बेहद जरुरी है कि प्रतिवादी संख्या तीन (संबंधित न्यायाधीश) को प्रशासनिक और निरीक्षणात्मक दायित्वों से वंचित किया जाए.
शीर्ष अदालत ने कहा कि प्रधान न्यायाधीश आंतरिक जांच प्रक्रिया फिर शुरु कर सकते हैं अथवा किसी अन्य उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों से ऐसा करने के लिए कह सकते हैं. इससे पहले न्यायालय ने मामले में कार्यवाही कवर करने से मीडिया को रोक दिया. हालांकि, यह कहा कि फैसले की खबर दी जाएगी.
उच्चतम न्यायालय ने 29 अगस्त को पूर्व महिला न्यायाधीश की ओर से लगाए गए आरोपों की जांच के लिए एक न्यायिक समिति बनाने के मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के आठ अगस्त के आदेश पर रोक लगा दी थी.
उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के खिलाफ यौन उत्पीडन का आरोप लगाते हुए इस्तीफा देने वाली ग्वालियर की पूर्व न्यायाधीश ने अपनी शिकायत को लेकर न्यायिक समिति पर सवाल उठाते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया.
अपनी याचिका में उन्होंने कहा था कि न्यायिक समिति बनाने का उच्च न्यायालय का आठ अगस्त का आदेश रद्द किया जाना चाहिए क्योंकि उन्हें लगता है कि उन्हें इंसाफ नहीं मिलेगा. इससे पहले उन्होंने अपनी शिकायत पर समिति में मध्यप्रदेश के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को शामिल किये जाने पर भी अपनी आपत्ति जतायी थी.
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