देहरादून: ‘केदारनाथ में पानी का कहर इस कदर टूटा कि मूसलाधार बारिश के बाद पहाड़ों से उतरी प्रलय अपने रास्ते में आने वाली हर चीज को बहा ले गई.
सिर्फ मंदिर बचा रहा और मैं पहाड़ी से निकली एक चट्टान पर बरसते पानी में 12 घंटे तक मदद का इंतजार करता रहा.’ यह कहना है उत्तराखंड में बाढ़ और बारिश की त्रासदी में जीवित बचे एक श्रद्धालु का. केदारनाथ में हुए इस हादसे से भारतीय वायुसेना के हेलीकॉप्टर द्वारा बचाए गए महाराष्ट्र के गोंडिया निवासी सीताराम सुखतिया ने सहस्त्रधारा हेलीपैड पहुंचने के बाद अपनी आपबीती सुनाई.
बमुश्किल खड़े हो पा रहे सुखतिया ने कहा कि उन्होंने अपने 63 वर्ष के जीवन में ऐसी तबाही नहीं देखी. उन्होंने कहा, ‘‘केदारनाथ में मंदिर के अलावा कुछ नहीं बचा है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘लोगों की चहल-पहल से भरी उस जगह को कुछ ही क्षणों के भीतर मौत और बरबादी के मंजर में बदलते देखना बड़ा ही भयावह था.’’ सुखतिया ने कहा कि जिस रात यह हादसा हुआ वहां करीब आठ हजार लोग मौजूद थे.
श्रद्धालुओं को लाने ले जाने के लिए वहां करीब चार हजार टट्टू वाले मौजूद थे लेकिन अब वहां सिर्फ पानी और गिरे हुए ढांचों के मलबे से घिरा मंदिर खड़ा है. हादसे से बचने के लिए पैदल धराली तक पहुंचे सुखतिया का कहना है कि सभी होटल, दुकानें, घर सब कुछ मलबे में बदल गया.
सुखतिया अपना जीवित बचने का सारा श्रेय सेना को देते हैं साथ ही सरकार पर आरोप लगाते हैं कि उसने प्रभावित लोगों के लिए पीने के पानी तक का इंतजाम नहीं किया.
महाराष्ट्र से 49 श्रद्धालुओं के साथ केदारनाथ की यात्रा पर निकले दंपति साक्षी और सुमित बंसल अपनी आपबीती सुनाते हुए रो पड़े. 15 जून को गंगोत्री में अचानक जलस्तर बढ़ने के बाद वे अपने बच्चे के साथ धराली स्थित अपने होटल वापस आ गए.
उन्होंने बताया, ‘‘तेज बारिश ने बाढ़ की स्थिति को और खराब कर दिया और हमारा होटल कीचड़ के मलबे में बदलने लगा. घबराहट में हम अपने आठ माह के बच्चे के साथ आश्रय पाने के लिए पड़ोस के होटल में भागे लेकिन उसमें भी दरारें पड़ रही थीं.’’ सुमित ने बताया, ‘‘चारों ओर सिर्फ पानी था. हमारे पास खाने के लिए सिर्फ बिस्कुट था. हमारे पास पीने का पानी भी कम था.
गोद में आठ माह का बच्चा, खाने-पीने के लिए कुछ नहीं और सर छिपाने की जगह नहीं होना, यह हमारे लिए किसी दुस्वप्न जैसा था. हम इसे अपने जीवन में नहीं भूल पाएंगे.’’ उन्होंने बताया कि वह अपने बचने की आस छोड़ चुके थे, लेकिन अंतिम समय में उनकी सहायता के लिए वायुसेना का हेलीकॉप्टर वहां पहुंचा.
करीब दो दर्जन परिवार लापता
उत्तराखंड में आई भारी बाढ से केदारनाथ मंदिर और उसके आस पास औदयोगिक शहर कानपुर के भी करीब दो दर्जन से अधिक लोग फंसे हुए हैं और इनके बारे में अब तक कुछ पता नहीं चल पाया है. ऐसे में इन लोगों के परेशान परिजन आज देहरादून जा रहे हैं जहां वे अपने रिश्तेदारों को ढूंढने की कोशिश करेंगे.कानपुर के चार्टेड एकाउंटेट मुकेश श्रीवास्तव और व्यवसायी संजीव गुप्ता के परिवार के 16 लोग केदारनाथ की यात्र पर 13 जून को कानपुर से गये थे. इन 16 लोगों में चार महिलाये और सात बच्चे शामिल हैं. इन बच्चों की उम्र चार साल से 16 साल के बीच है.
श्रीवास्तव ने बताया कि उनकी अपने साले हेमंत सिन्हा से 17 जून की सुबह करीब सात बजे फोन पर बात हुई थी जिसमें हेमंत ने उन्हें बताया था कि यहां बहुत तेज बारिश हो रही है और हम सभी परिवार के लोग सुरक्षित है. उसके बाद से इन लोगो का कोई पता नही चला और न ही फोन पर कोई संपर्क हो पा रहा है.
श्रीवास्तव ने कानपुर के टेलीफोन आफिस से जब हेमंत के मोबाइल फोन की लोकेशन निकलवाई गयी तो पता चला कि उनकी आखिरी लोकेशन केदारनाथ की सुबह सात बजे की है उसके बाद उनका कोई अता पता नही है. श्रीवास्तव ने बताया कि इसके बाद से हम लोगो ने देहरादून में बने सभी कंट्रोल रुम को फोन किया लेकिन हमारे रिश्तेदारो की कोई भी लोकेशन का पता नहीं चला है. उन्होंने कहा कि कंट्रोल रुम के फोन नंबरो से कोई भी संतोषजनक जानकारी नही मिल रही है इसलिये वे सब बहुत परेशान हैं और अपने आज अपने मित्रों राजीव गुप्ता तथा अन्य के साथ देहरादून जा रहे हैं.
उन्होंने बताया कि लापता परिवार में परिवार के मुखिया हेमंत सिन्हा से लेकर चार साल की शालू भी है इसके अलावा कई महिलायें भी है. सिन्हा परिवार के अलावा कानपुर के कई अन्य परिवार भी उत्तराखंड की आपदा में फंसे है जिसमें बर्रा दो मोहल्ले के निवासी राम लखन भटट का बेटा सौरभ और पोता कार्तिकेय (8) तो बुरी तरह से घायल होकर वहां के अस्पताल में भर्ती है लेकिन इनकी बहू रश्मि और पोती आस्था (9) केदारनाथ मंदिर के पास लहरों में समा गयी.
कानपुर में रहने वाले राम लखन के अनुसार कि उनका बेटा सौरभ 10 जून को अपनी कार से परिवार के साथ केदारनाथ की यात्रा पर निकला था और अब यह दुखद खबर उन्हें केदारनाथ के गुप्त काशी अस्पताल से मिली है जिसमें उनकी बहू और पोती लापता हो गयी है. इसी तरह शहर के यमुनानगर में रहने वाली अमलावती की बेटी बीनू शुक्ला भी वहां गयी थी लेकिन उनका भी कोई अता पता नही है.
कानपुर की कई सामाजिक संस्थायें उत्तराखंड में आई आपदा से लोगों को बचाने के लिये यज्ञ कर भगवान से दुआ मांग रही हैं. कई स्वंय सेवी संस्थाये लोगो से जरुरत का सामान एकत्र कर उन्हें राहत शिविरों में भेजने का प्रयास कर रही हैं. उत्तराखंड हादसे में मारे गये लोगो के लिये श्रध्दांजलि सभा का भी आयोजन किया जा रहा है.