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क्या सेलिब्रेटी को राज्यसभा में मनोनीत किया जाना चाहिए ?

राज्यसभा में आज महान क्रिकेटर और सांसद सचिन तेंदूलकर और अभिनेत्री वा सांसद रेखा जैसे हस्तियों के सदन में अनुपस्थित रहने को लेकर हंगामा हुआ. उनलोगों के बारे में कहा गया कि वे सदन की बैठक में काफी कम उपस्थित रहें हैं. आज सदन में यह मुद्दा काफी गरमाया रहा. इसको लेकर अब सचिन और […]

राज्यसभा में आज महान क्रिकेटर और सांसद सचिन तेंदूलकर और अभिनेत्री वा सांसद रेखा जैसे हस्तियों के सदन में अनुपस्थित रहने को लेकर हंगामा हुआ. उनलोगों के बारे में कहा गया कि वे सदन की बैठक में काफी कम उपस्थित रहें हैं. आज सदन में यह मुद्दा काफी गरमाया रहा. इसको लेकर अब सचिन और रेखा पर तो सवाल उठे ही साथ ही यह भी सवाल उठने लगे हैं कि क्या इस तरह के सेलिब्रेटी को राष्ट्रपति के द्वारा मनोनीत किया जाना चाहिए.

क्या है संवैधानिक व्यवस्था

संविधान की धारा 80 के तहत राष्ट्रपति को ये अधिकार है कि वह साहित्य, कला, शिक्षा आदि से जुड़े 12 हस्तियों को राज्यसभा में मनोनीत कर सकते हैं. इसी संवैधानिक व्यवस्था के तहत भारत में इन हस्तियों को राज्यसभा में मनोनीत किया जाता रहा है. वर्ष 2012 में सचिन तेंदूलकर व अभिनेत्री रेखा को भी राज्यसभा में मनोनीत किया गया.

संसद बनने के बाद तेंदूलकर व रेखा की सदन में उपस्थिति

राज्यसभा में आज बताया गया कि 2012 में मनोनयन के बाद से तेंदूलकर अभी तक केवल तीन बैठकों में शामिल रहें हैं. और इस वर्ष तो वे एक दिन भी राज्यसभा की कार्यवाही में उपस्थित नहीं हुए. तेंदुलकर ने अंतिम बार 13 दिसंबर 2013 को उच्च सदन की बैठक में भाग लिया था. अभिनेत्री रेखा का भी कुछ यही हाल है.

हालांकि इनकी उपस्थिति तेंदूलकर से कुछ अधिक रही है. रेखा को भी अप्रैल 2012 में उच्च सदन में मनोनीत किया गया था. रेखा ने अभी तक उच्च सदन की 7 बैठकों में हिस्सा लिया है. रेखा ने अंतिम बार 19 फरवरी 2014 को सदन की बैठक में भाग लिया था. और सबसे बडा सवाल यह है कि जितने दिन भी वे बैठक में मौजूद रहे सदन में उनकी कोई ऐसी उपलब्धि नहीं रही जिसकी चर्चा किया जा सके.

अनुपस्थिति पर क्या है प्रावधान

संविधान के अनुच्छेद 104 के तहत यदि कोई सदस्य बिना अनुमति के 60 बैठकों तक सदन में नहीं आता है तो उसकी सीट को रिक्त मान लिया जाता है. आज राज्यसभा में चर्चा के दौरान उपसभापति ने भी कहा कि तेंदूलकर अभी केवल 40 बैठकों में नहीं आए हैं जबकि रेखा के मामलों में तो यह संख्या और भी कम है लिहाजा इन दोनों पर उक्त नियम लागू नहीं होता.

तेंदुलकर की अनुपस्थिति पर किसने क्या कहा

इन्हें सांसद चुना जाता है, ताकि ये लोग संसद में उपस्थित रहें और समाज में कुछ बदलाव पैदा कर सकें, लेकिन मैंने उन्हें कभी ससंद में नहीं देखा.

– नरेश अग्रवाल, राज्यसभा सदस्य, सपा

सचिन जैसे लोगों को सांसद बनाना ही नहीं चाहिए. संसद में इन लोगों का प्रदर्शन खुद ही सारी कहानी बयां कर देता है. यह संसद का अपमान है.

– डीपी त्रिपाठी, सांसद, राकांपा

यदि सचिन को संसद में आना ही नहीं था तो उन्हें चुनने का फायदा ही क्या है. मैंने सचिन से गत सप्ताह बात की थी और उन्होंने मुझसे वादा किया था कि वे संसद में आएंगे.

राजीव शुक्ला, नेता, कांग्रेस

सरकार की भूमिका क्या हो

यह विदित है कि मनोनयन सरकार की अनुशंसा पर की जाती है. मनोनयन के पूर्व सरकार को यह पता होना चाहिए कि अमुक व्यक्ति इस जिम्मेदारी के लिए कितने सक्षम हैं. क्योंकि एक सेलिब्रेटी का काम

ऐसे में सवाल है कि क्या सांसदों का कर्तव्य बस इतना ही है कि किसी तरह उनकी सदस्यता बची रही. सरकार सांसदों का मनोनयन इसलिए करती है ताकि वे मनोनीत सदस्य अपने विचारों व अनुभवों से सदन को अवगत करायें, अपने विचार दें, अपने सुझाव दे जिससे देश की जनता को उनके विचारों से कुछ लाभ हो. लेकिन यहां स्थिति है कि वे बैठक में मौजूद ही नहीं होते हैं. अपवाद को छोड दिया जाये, तो जो भी इस तरह के सेलिब्रेटी मनोनीत होते हैं वे बस आदर और प्रतिष्ठा का प्रतीक ही बन कर रह जाते हैं.

अपने निजी जीवन में तो वे प्रतिष्ठित व आदरणीय होते ही हैं तो फिर उन्हें सदन में मनोनीत करने की क्या आवश्यकता. जाहिर है कि संविधान में काफी विचार के बाद इस तरह का उपबंध किया गया होगा कि इससे देश लाभांवित होगा. उनके जीवन की उपलब्धियों और उनके विचारों से लोग कुछ सीखकर उसको देश के हित में लागू करने के लिए प्रयत्न करेंगे लेकिन ऐसा कुछ कहां दिखता है.

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