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सरकारी तंत्र करा रहा सीएम की फजीहत

लखनऊ: सूबे का सरकारी तंत्र बेमिसाल है. मुख्यमंत्री के वायदे और मुख्यसचिव के निर्देशों की भी इस तंत्र में परवाह नहीं है. इसके चलते ही राज्य में गेहूं की खरीद तेजी नहीं पकड़ रही,हालांकि सरकार ने इस बार तीस प्रमुख सचिवों सहित कई मंत्रियों की ड्यूटी गेहूं खरीद की प्रक्रिया को तेज करने में लगायी […]

लखनऊ: सूबे का सरकारी तंत्र बेमिसाल है. मुख्यमंत्री के वायदे और मुख्यसचिव के निर्देशों की भी इस तंत्र में परवाह नहीं है. इसके चलते ही राज्य में गेहूं की खरीद तेजी नहीं पकड़ रही,हालांकि सरकार ने इस बार तीस प्रमुख सचिवों सहित कई मंत्रियों की ड्यूटी गेहूं खरीद की प्रक्रिया को तेज करने में लगायी थी. गेहूं खरीद में ढिलाई होने पर जिलाधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की चेतावनी भी मुख्यसचिव ने दी थी, इसके बाद भी सूबे में बीते एक अप्रैल से अब तक करीब सात लाख मीट्रिक टन गेहूं ही खरीदा जा सका है. गेहूं खरीद की इस सुस्त गति को लेकर विपक्षी दलों ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पर किसान विरोधी होने का आरोप लगाया है. सूबे के गेहूं उत्पादक किसान भी सरकार से खफा हैं.

गेहूं खरीद को लेकर सरकारी तंत्र के चलते सरकार की हो रही फजीहत से बचने के लिए अब मुख्यमंत्री बिचौलियों (आढ़तियों) के जरिए गेहूं खरीदने के प्रस्ताव पर विचार करने लगे हैं. अगले हफ्ते मुख्यमंत्री इस बारे में निर्णय लेंगे. ताकि तीन जून तक सूबे में 58 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदने के तय हुए लक्ष्य को पूरा किया जा सके. पहले सरकार ने बिचौलियों के जरिए किसानों से गेहूं न खरीदने का निर्णय लिया था और गेहूं खरीद के लक्ष्य को पूरा करने की जिम्मेदारी मुख्यसचिव जावेद उस्मानी सौंपी थी. जिसे पूरा करने के लिए मुख्य सचिव खुद गेहूं खरीद की समीक्षा कर रहे थे. उनकी ही देखरेख में बीते साल राज्य में 55 लाख मीट्रिक टन गेहूं की ‍खरीद हुई थी, जो एक रिकार्ड है.

इस वर्ष भी राज्य में गेहूं की रिकार्ड खरीद हो इसके लिए उन्होंने जिलों के प्रभारी मंत्रियों तथा प्रमुख सचिव स्तर के 30 अफसरों को लगा रखा था. इसके बावजूद यह लोग गेहूं खरीद को रफ्तार देने में फेल हो गए. इस असफलता पर अफसरों ने मुख्यमंत्री और मुख्यसचिव को बताया कि गेहूं खरीद के तय मूल्य 1350 रुपये को गेहूं उत्पादक किसानों ने कम माना और इस मूल्य पर किसान सरकार को गेहूं बेचने को तैयार नहीं हैं. किसानों का कहना है कि सरकार 200 रुपये प्रति क्विंटल बोनस मूल्य दे. किसानों की इस मांग पर सूबे की सरकार ने ध्यान नहीं दिया और अपने स्तर पर किसानों का गेहूं खरीदने का प्रयास किया, जो अब पूरी तरह फेल हो गया है. जिसके चलते ही अब तक सूबे में निर्धारित लक्ष्य के मुकाबले करीब 12 फीसदी गेहूं ही खरीदा जा सका है. मौजूदा तरीके से निर्धारित लक्ष्य के अनुसार गेहूं खरीद ना पाने की हालात में अधिकारियों ने बिचौलियों के जरिए गेहूं खरीद करने संबंधी प्रस्ताव तैयार किया.

इस प्रस्ताव को लेकर तर्क दिया जा रहा है कि 20 जून के बाद राज्य में बारिश शुरू हो जाएगी और किसानों को अपना अनाज क्रय केंद्रों तक लाने में दिक्कतें होगी. बिचौलियों को गेहूं खरीद की छूट मिलने पर वह किसानों का गेहूं उनके घरों से खरीदकर क्रय केंद्रों तक दे सकेंगे. अभी बिचौलिये किसानों से गेहूं इसलिए नहीं खरीदते, क्योंकि क्रय केंद्रों पर उनसे गेहूं नहीं खरीदा जाता. बिचौलियों के जरिए गेहूं खरीदने के दिए जा रहे इस तर्क की विपक्षी दलों ने आलोचना की है और कांग्रेस, भाजपा और बसपा ने सूबे की प्रदेश सरकार को किसान विरोधी बताया.

बसपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने सरकार की गेहूँ खरीद नीति पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि जब ढाई माह में करीब सात लाख मीट्रिक गेहूं ही खरीदा जा सका है तो अब 25 दिनों में सरकार गेहूं खरीद का लक्ष्य कैसे पूरा करेगी. भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक कहते कि सपा सरकार की कथनी और करनी के अंतर का खामियाजा उत्तर प्रदेश का किसान भुगत रहा है. गेहूँ खरीद को लेकर सरकारी दावे खोखले साबित हो गए. जबकि मुख्यमंत्री ने कहा था कि इस बार गेहूँ खरीद उनकी शीर्ष प्राथमिकता में है. पर स्थिति यह है कि मुख्यमंत्री की प्राथमिकता प्राथमिकता ही रह गई.

विपक्षी दलों के सरकार पर निशाना साधने का संज्ञान लेते हुए मुख्यमंत्री ने अब बिचौलियों के जरिए गेहूं खरीद करने संबंधी प्रस्ताव प्रमुख सचिव खाद्य एवं रसद दीपक त्रिवेदी से मंगवाया है. ताकि उसे मंजूरी प्रदान कर बीते वर्ष की तरह ही राज्य में सुस्त गेहूं खरीद की गति को तेज कर लक्ष्य के अनुसार गेहूं की खरीद कर सरकारी तंत्र द्वारा इस मामले में कराई गई फजीहत की भरपाई की जा सके.
।।राजेन्द्र कुमार।।

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