नयी दिल्ली: सूचना का अधिकार कानून के तहत किये गये एक आवेदन के जवाब में प्रधानमंत्री कार्यालय ने वही जानकारी दी जो पिछले पिछले प्रधानमंत्री के कार्यकाल में दी गयी थी.
गौरतलब है पिछले साल अप्रैल में सेवानिवृत्त कोमोडोर लोकेश बत्रा को उनके आरटीआई आवेदन के जवाब में प्रधानमंत्री कार्यालय ने मांगी गई सूचना आरटीआई कानून का हवाला देते हुए देने से मना कर दिया था.
तब गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री कार्यालय पर कटाक्ष करते हुए कहा कि संप्रग एक ओर जहां आरटीआई का श्रेय ले रही है वहीं दूसरी शीर्ष कार्यालय सूचना देने से इंकार कर रहा है.
तीन सप्ताह बाद ही नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बन गए. इस साल जून में प्रधानमंत्री कार्यालय ने कोमोडोर बत्र को इसी आधार पर सूचना देने से फिर इंकार कर दिया.सीपीआईओ एस ई रिजवी ने तब सूचना का अधिकार कानून के कार्यान्वयन से संबंधित फाइलों की सूची के बारे में आवेदक को ब्यौरा दिए जाने की उपयोगिता पर सवाल किया.
उन्होंने यह कहते हुए सूचना देने से मना कर दिया कि सवाल इस श्रेणी में आएगा कि आवेदक ने यह नहीं बताया कि सूचना उसके लिए निजी तौर पर, सामाजिक तौर पर या राष्ट्रीय तौर पर कितनी उपयोगी है.
यहां यह बताना जरूरी है कि सूचना का अधिकार कानून के तहत, आरटीआई आवेदक के लिए यह बताना जरुरी नहीं है कि वह सूचना क्यों मांग रहा है.कानून के अनुसार, सूचना से इंकार तब ही किया जा सकता है जब यह पारदर्शिता कानून के छूट वाले उपबंधों के दायरे में हो.
बत्रा ने 19 मई को एक ही सवाल प्रधानमंत्री कार्यालय से पूछा कि आरटीआई के कार्यान्वयन संबंधी कौन कौन सी फाइलें वह देखता है. लेकिन उन्हें रिजवी ने वही जवाब दिया जो उन्होंने उन्हें पिछले साल दिया था.
कोमोडोर बत्रा ने अफसोस जाहिर करते हुए कहा कि सरकार बदल गई लेकिन लगता है, प्रधानमंत्री कार्यालय में कुछ नहीं बदला. उन्होंने कहा कि केंद्र में 26 मई 2014 को सरकार बदलने के बाद पीएमओ की वेबसाइट पर क्वेस्ट फॉर ट्रान्सपेरेन्सी शीर्षक से एक संदेश डाला गया था. लेकिन लगता है कि कुछ नहीं बदला.