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क्या आम आदमी पार्टी को दोबारा मिलेगा जनाधार

नयी दिल्लीः आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल अपने बिखरते जनाधार को एक बार फिर समेटने में लगे हैं. आप ने अरविंद केजरीवाल का एक रिकार्ड किया हुआ संदेश जारी किया है. इसमें केजरीवाल भाजपा पर खरीदफरोख्त का आरोप लगा रहे हैं. इस संदेश के जरिये उन्होंने दिल्ली के आम लोगों तक पहुंचने की […]

नयी दिल्लीः आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल अपने बिखरते जनाधार को एक बार फिर समेटने में लगे हैं. आप ने अरविंद केजरीवाल का एक रिकार्ड किया हुआ संदेश जारी किया है. इसमें केजरीवाल भाजपा पर खरीदफरोख्त का आरोप लगा रहे हैं. इस संदेश के जरिये उन्होंने दिल्ली के आम लोगों तक पहुंचने की कोशिश की है. उन्होंने कहा, भाजपा कई विधायकों को 20-20 करोड़ रुपये का लालच देकर खरीदने की कोशिश कर रही है. सिर्फ आप के नहीं कांग्रेस विधायकों को भी खरीदने की कोशिश कर रही है.

घटिया और अनैतिक तरीकों से सरकार गठन की कोशिश कर रही है.

क्या यह लोकतंत्र है? यह पूरी तरह गलत है.भाजपा इस तरह अनैतिक तरीकों से करोड़ों रुपये खर्च कर सरकार बनाती है, तो इस तरह की बेईमान सरकार आपके बिजली के बिल ही बढ़ाएगी, भ्रष्टाचार में लिप्त होगी और मूल्य वृद्धि करेगी. क्या इस तरह की सरकार महिलाओं की रक्षा कर पायेगी. केजरीवाल का यह संदेश लोगों के मोबाइल तक पहुंच रहा है. हालांकि यह कहना मुश्किल है कि इस संदेश का आम जनता पर कितना असर हो रहा है. लेकिन आप के इन प्रयासों से इतना जरुर कहा जा सकता है कि अपने बिखरे जनधार को एक बार फिर समेटने में लगी है और दिल्ली में वापसी की पूरी कोशिश कर रही है. क्या संभव है कि केजरीवाल दिल्ली में एक बार फिर वापसी कर सकें.

भारी पड़ा लोकसभा चुनाव

आम आदमी पार्टी भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर लोकसभा चुनाव में उतरी.पार्टी के दिग्गज नेताओं ने वीआईपी सीट से चुनाव लड़ा लेकिन पंजाब को छोड़कर इन्हें कहीं सफलता हाथ नहीं लगी. पार्टी के नेता योगेंद्र यादव ने माना कि दिल्ली समेत पूरे देश में आम आदमी पार्टी का ग्राफ लोकसभा चुनावों के दौरान काफी गिरा है. आम आदमी पार्टी को दिल्ली की जनता से बहुत उम्मीदें थी लेकिन भाजपा के खाते में सात की सातों सीट देकर दिल्ली की जनता ने आप से नाराजगी जाहिर कर दी. सबसे अधिक लोकसभा सीटों पर लड़ने वाली आम आदमी पार्टी को चार सीटें मिली.हालांकि आप ने इसे भी सकारात्मक तौर पर लेने का दावा किया पार्टी ने कहा इस हार से भी हमें एक फायदा हुआ जो लोग हमारे साथ सत्ता की लालच में जुड़े थे हमसे दूर हो गये.

पार्टी में फूट

आम आदमी पार्टी के जनाधार कम होने का एक बड़ा कारण पार्टी नेताओं में आपसी फूट और असहमति को भी एक बड़ा कारण माना जाता है. आप में बगावत के सुर लोकसभा चुनाव के टिकट को लेकर शुरु होने लगे थे. पार्टी के कई नेताओं ने अपनी दावेदारी पेश की लेकिन कई काबिल और अच्छे कार्यकर्ताओं को दरकिनार करके फेमस चेहरों को टिकट दिया गया. कनॉट प्लेस स्थित आप दफ्तर के बाहर धरने पर बैठे कार्यकर्ताओं ने खुलकर पार्टी की नीतियों का विरोध किया. कार्यकर्ताओं ने पार्टी को याद दिलाया की उन्होंने कहा था कि किसी बाहरी शख्स को लोकसभा का टिकट नहीं दिया जाएगा लेकिन आशुतोष, मेधा पाटकर जैसे कई बड़े नामों को टिकट दिया गया. इसके अलावा विधायकों के चुनाव ना लड़ने के मुद्दे पर भी पार्टी घिरती नजर आयी. इतना ही नहीं लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद इसकी जिम्मेदारी कोई लेने को तैयार नहीं था. आप की हरियाणा इकाई भी बगावती सुर से नहीं बच सकी लोकसभा चुनाव में दसों सीटों पर जमानत जब्त होने के बाद टिकट बंटवारे में पुराने आंदोलनकारियों की अनदेखी और अपने चेहतों को आगे लाने जैसे आरोप भी पार्टी नेतृत्व पर लगे. इसके अलावा कई राज्यों में भी टिकट बटवारे को लेकर असंतोष देखा गया. कई जगहों पर कार्यकर्तों ने टोपी जलाकर तो कहीं उम्मीदवार का बहिष्कार करके विरोध किया गया. इसी फूट के कारण संस्थापक सदस्यों में एक शाजिया इल्मी ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया.

खिसकता जनाधार

दिल्ली की सत्ता पर अर्द्धशतक भी पूरा नहीं कर सकी आम आदमी पार्टी की सरकार की आलोचना दिल्ली की जनता भी करती रही है. 49 दिनों तक कांग्रेस के समर्थन से चली सरकार ने लोकपाल बिल के मुद्दे पर इस्तीफा दे दिया. हालांकि दिल्ली की जनता के लिए आप ने कई फैसले लिए लेकिन सरकार के जाने के बाद इन फैसलों की हकीकत जनता की समझ में आयी. 49 दिनों की सरकार में भी पार्टी विवादों से दूर नहीं रह सकी. सोमनाथ भारती पर विदेशी महिला से बदसलूकी का आरोप लगा. इसके अलावा मुख्यमंत्री अपनी मांगों को लेकर धरने पर बैठ गये.

फैसला लेने में अपरिपक्वता

आम आदमी पार्टी के अंदर ही इस बात की सुगबुगाहट है कि पार्टी कई मामलों पर फैसला लेने में कमजोर रही. दिल्ली की जनता से जनमत संग्रह के बाद बनी सरकार ने नफा नुकसान की परवाह किये बगैर इस्तीफा दे दिया. अरविंद केजरीवाल ने भी बाद में अपने इस फैसले को गलत माना. आम जनता भी उनकी राजनीति के तरीकों पर सवाल खड़ा करती रही है.

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