नयी दिल्ली : यह मोदी सरकार का पहला बजट है. इस बजट में सभी भारतीय की जरूरतों और उनकी परेशानियों को दूर करने का प्रयास किया गया है. यह एक संतुलित बजट है और समाज के सभी वर्गो की चिंताओं, जिसमें मध्यवर्ग भी शामिल है को दूर करने की कोशिश हुई है. इसके अलावा विकास दर को बढ़ाने के लिए कई सकारात्मक कदम उठाने की घोषणा की गयी है.
विकासपरक, प्रगतिशील और भविष्य की रुपरेखा तय करने वाला बजट पेश करने के लिए वित्त मंत्री अरुण जेटली बधाई के पात्र है. पहली बार बजट में 125 करोड़ भारतीयों के हितों का ख्याल रखा गया है. भारत के आर्थिक उन्नति के लिए बजट में रोडमैप पेश किया गया है. यही नहीं, भाजपा के घोषणापत्र के वादों को भी बजट में शामिल कर लोगों की उम्मीदों को पूरा करने की कोशिश हुई है. बजट से हमारी सोच सबका साथ, सबका विकास पूरा होता दिख रहा है.
यूपीए सरकार से हमारी सरकार को खाली खजाना मिला. साथ ही यूपीए सरकार की नीतियों के कारण बेतहाशा महंगाई, सुस्त अर्थव्यवस्था, लगातार कम होता विकास दर, बढ़ा हुआ राजस्व और चालू बचत घाटे वाली अर्थव्यवस्था से लोगों में निराशा का भाव जागृत हो गया था. यूपीए सरकार आम आदमी की कीमत पर केवल कुछ लोगों को फायदा पहुंचाने की नीति पर चली. इसके कारण करोड़ों भारतीय कांग्रेस के कुशासन के कारण गुस्से में थे और उन्होंने बदलाव के पक्ष में मतदान करने का फैसला लिया. लोगों के इस उम्मीद को धयान में रखते हुए वित्त मंत्री ने भारतीय अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए व्यापक कार्य योजना पेश की है. इस बजट में भारतीय अर्थव्यवस्था में भी उम्मीद जगी है.
यह हमारे सपने एक भारत श्रेष्ठ भारत की मजबूत नींव रखने में कारगर होगा. बजट में पारदर्शिता, मिनिमम गवर्नेंट, मैक्सिमम गवर्नेंस के सिद्धांतों के सहारे भारत के पुनर्निमाण की नींव रखने की कोशिश की गयी है. साथ ही समाज के कमजोर तबकों को वित्तीय तौर पर सशक्त बनाने के सरकार की कोशिश को गति मिलेगी. बजट में सभी लोगों को मूलभूत सुविधा मुहैया कराने, सामाजिक और आर्थिक इंफ्रास्ट्रक्चर को सशक्त, गांवों में लोगों को गुणवत्तापूर्ण जीवन मुहैया कराने, कृषि को मजबूत करने, मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र को पटरी पर लाने और युवाओं के लिए करोड़ों रोजगार के अवसर मुहैया कराने की कार्ययोजना पेश की गयी है.
निवेशकों का भरोसा बहाल करने और उद्यमशीलता को बहाल करने के लिए कई पहल की घोषणा भी है. ऐसा होने से विकास दर बढ़ेगा. आयकर छूट की सीमा बढ़ाने से आम लोगों को काफी फायदा होगा. यही नहीं वरिष्ठ नागरिकों के लिए भी छूट की सीमा बढ़ायी गयी है. इससे इन वरिष्ठ नागरिकों के परिवारों को स्वास्थ्य सेवाओं और बच्चों की शिक्षा पर अधिक खर्च करने का मौका मिलेगा. कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए उठाये गये कदमों से ग्रामीण क्षेत्र में विकास की रफ्तार तेज होगी. करों में छूट से मध्यवर्ग को काफी फायदा होगा और इससे उनकी बचत बढेगी और वे अधिक खर्च कर पायेंगे.
तम्बाकू उत्पाद, गुटका और पेय पदार्थो पर करों बढ़ाना स्वास्थ्य के लिहाज से स्वागतयोग्य कदम है. युद्ध स्मारक का निर्माण, वन रैंक वन पेंशन लागू करने और कश्मीर के विस्थापित लोगों को पुर्नस्थानप के लिए की गयी घोषणा स्वागतयोग्य कदम है. बजट की घोषणाएं से निवेशकों में भरोसा पैदा होगा और इससे बचत निवेश की प्रक्रिया मजबूत होगा और विकास दर अगले दो वर्षों में मौजूदा 5.5-5.9 फीसदी से कहीं अधिक हो पायेगा.
कृषि विकास और कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए कई अहम बातें बजट में शामिल है. गांवों में सड़क संपर्क को बेहतर बनाने और आधुनिक तकनीक के प्रयोग से कृषि से होने वाली आय बढ़ेगी. इंफ्रास्ट्रक्चर को खास तवज्जो दिया गया है और निवेशकों का भरोसा बहाल करने में सकारात्मक भूमिका अदा करेगी. पहली बार बजट में इतनी स्पष्टता के साथ सभी लोगों की भलाई की बात सामने रखी गयी है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस बजट को लंबे समय तक सकारात्मक और विकासपरक बजट के तौर पर याद किया जायेगा.
* दिशाहीन, लक्ष्य विहिन बजट
।। आनंद शर्मा ।।
(नेता, कांग्रेस)
अपनी बातों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने वाली भाजपा को जब देश की बागडोर मिली और बजट पेश करने का मौका मिला, तो बजट में न कोई विजन है और न ही कोई रोडमेप है. इस बजट को बिल्कुल ही निराशाजनक कहा जा सकता है. आखिर सरकार देश को कहां ले जाना चाहती है, इस बजट से यह बात बिल्कुल स्पष्ट नहीं हुई है. इतना ही नहीं, विडंबना देखिए कि सरकार में आने के पहले ये लोग एफडीआइ का विरोध कर रहे थे, जबकि सरकार में आने के बाद वे आज इसके नियम को आसान कर रहे हैं. वित्त मंत्री मल्टी ब्रांड रिटेल के क्षेत्र में विशेष रूप से कृषि उत्पादों के लिए सप्लाई चेन की प्रभाविता को बढ़ाने और विकसित करने पर चुप्पी साध रखी है. इस बिंदु पर सरकार को अपनी नीतियों को स्पष्ट करने की जरूरत है, ताकि वैसे निवेशक जो इस क्षेत्र में निवेश करना चाहते हैं, आगे आ सकें.
गहराई से देखा जाये, तो विजन रहित इस बजट के बाद आम आदमी का भार और बढ़ेगा. चुनावी मैदान में इस सरकार के मुखिया और अन्य भाजपा नेता बार-बार हमारे द्वारा शुरू की गयी योजनाओं और कार्यक्रमों पर कटाक्ष करते थे, उसे विफल बताने और आलोचना करने का कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने दे रहे थे. लेकिन आज जब वित्त मंत्री ने एनडीए सरकार का बजट पेश किया और जो घोषणाएं की गयी हैं, उससे यह साफ है कि यूपीए की सरकार सही दिशा में काम कर रही थी, क्योंकि उनकी घोषणाओं में हमारी सरकार द्वारा किये गये अधिकांश कामों और योजनाओं को ही दोहराया गया है. नयी सरकार ने न तो कोई नयी घोषणा की, बल्कि हमारे आइडिया को ही दोहराया है.
बजट में इस बात की चर्चा तो की गयी कि उनकी प्राथमिकता मंहगाई कम करना, रोजगार के अवसरों को बढ़ाना, संस्थागत ढांचे और मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र का विकास करना है, लेकिन जब इस दिशा में बढ़ने के लिए बजटीय घोषणाओं पर जब हम गौर करते हैं, तो यही लगता है कि इन्होंने सिर्फ यूपीए सरकार के कार्यकाल में चलायी जा रही योजनाओं को रिपैकेजिंग के जरिये पेश किया है. 16 नये औद्योगिक टाउनशिप विकसित करने की दिशा में पहले ही काम शुरू किया जा चुका है. चार औद्योगिक कॉरीडोर बनाने की दिशा में यूपीए सरकार के दौरान ही पहल शुरू की गयी थी. प्रधानमंत्री ने 100 स्मार्ट शहर बनाने की बात कही थी और इस काम के लिए वित्त मंत्री ने 7,060 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था, जो कि एक भी शहर के निर्माण और विकास के लिए अपर्याप्त लगता है.वैसे भी आम लोगों के मन में इस सरकार के प्रति धारणा थी कि यह सरकार उद्योगपतियों का हित पोषित करने वाली सरकार है.
बजट में गहराई से गौर करें तो इसमें कुछ बातें ऐसी हैं, जिससे पता चलता है कि उद्योगपतियों को फायदा पहुंचेगा. बड़े औद्योगिक घरानों को कर में बड़ी राहत दी गयी है. एक तरफ उन्होंने कहा है कि वे पूर्ववर्ती सरकार द्वारा निर्धारित कर संग्रह को जारी रखेंगे. वहीं दूसरी तरफ सरकार ने दबाव में बड़े औद्योगिक घरानों को छूट भी दी है. इनके बजट से न तो आम आदमी को राहत मिला और न ही करदाताओं को कोई बड़ी कर राहत दी गयी. यह ऐसा बजट है, जिससे आम आदमी भी निराश है और गरीब भी.
मात्र 50 हजार का कर राहत न के बराबर ही है. वित्त मंत्री मनरेगा, स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में आवंटन पर चुप हैं. ऐसा लगता है कि शहर में रह रही आबादी को प्राथमिकता देना है, जबकि आज भी अधिकांश आबादी गांवों में रहती है. हमारी अपेक्षा थी कि सरकार प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, शिक्षा और ग्रामीण रोजगार के विकास पर ध्यान देगी. सरकार यदि निजी उद्यम के विकास और शहरीकरण को बढ़ावा देना चाहती है, तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन एक कल्याणकारी राज्य के रूप जवाबदेही के तहत सामाजिक प्रक्षेत्रों का विकास सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए, और इसकी कीमत पर ऐसा कतई नहीं किया जाना चाहिए. विकास दर का लक्ष्य बेहद कम है. इस बजट से निराशा तो हुई ही है, इसे औसत बजट ही माना जायेगा. हमें यह उम्मीद दी थी कि पूर्व के दिनों में आये मंदी के हालात से देश को उबारने के लिए यह सरकार कुछ करेगी, लेकिन ऐसा लगता है कि सुधार के उपायों को वित्त मंत्री ने पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया है.
* उम्मीदों के अनुरूप नहीं रहा बजट
।। केसी त्यागी ।।
(राष्ट्रीय प्रवक्ता व सांसद जदयू)
मनमोहन सिंह की जो अर्थनीति है, उसका यह बजट मोदीकरण है. जिस तरह से उदारीकरण शुरू किया गया, जो सुधार शुरू किये गये थे, उसे जस के तस बनाकर रखा गया है. गुजरात में स्थापित होने वाले सरदार पटेल के स्मारक के लिए 200 करोड़ रुपये और देशभर में शहीदों की प्रतिमा के लिए कई करोड़ रुपयों का प्रावधान किया गया है. गांवों में सिंचाई के लिए हजार करोड़ रुपये हैं. कुछ जगहों पर आइएएम आदि की स्थापना की बात कही है, उसका हमलोग स्वागत करते हैं. सूखा और ईराक में गृहयुद्ध सरकार के सपनों को और अधिक तोड़ने का काम करेगा. साथ ही अर्थव्यवस्था की हालत भी खराब होगी.
बजट के बाद यह साफ तौर पर और अधिक स्पष्ट हो गया है कि वित्त मंत्री अरुण जेटली पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम की फोटो कॉपी हैं. उनका बजट भी वही है. वही भाषा, वही शैली, वही शहरी तौर-तरीके हैं. खासकर के जो किसान है, आदिवासी है, गरीब है उन्हें ऊपर उठाने के लिए किसी तरह की योजना नहीं है. कोई ठोस या समय निर्धारित बात बजट में नहीं की गयी है.
स्मार्ट शहर बनाने के लिए जितने पैसे का आवंटन किया गया है, उसमें तो जमीन का अधिग्रहण भी नहीं हो सकता है. बीच में फिर दाम बढ़ेंगे. इसीलिए मोदी सरकार के इस बजट से आम आदमी का भला नहीं हो सकता है. यह गरीबों का बजट नहीं है. सिगरेट, तंबाकू पर जो टैक्स लगाया गया है, उसका हमलोग विरोध नहीं करते हैं, लेकिन उसके अलावा बजट में ऐसा कोई क्रांतिकारी काम नहीं दिख रहा है, जिस पर चरचा की जा सके.
हजार करोड़ में देश की बंजर भूमि को कैसे सिंचित किया जा सकता है. जैसे नेशनल हाइवे बनाया जा रहा है, उसी तरह से सिंचाई के लिए भी एक योजना बनाकर नेशनल सिंचाई परियोजना आदि बनायी जा सकती थी. लेकिन सरकार ऐसा सोचने में विफल रही है. सरकार की कथनी और करनी में अंतर साफ दिख रहा है. यदि स्थिति ऐसी ही रही, तो देश की आम जनता को और अधिक महंगाई का सामना करना पड़ेगा.
अच्छे दिन कब आयेंगे, यह तो पता नहीं है, लेकिन आम जनता के लिए खराब दिन जरूर आ गये हैं. अमेरिका, जापान आदि देशों में जिस तरह से गांव को शहर बनाया जा रहा है, उस तरह का प्रयोग भारत में नहीं हो सकता है. सरकार को कॉरपोरेट के बनिस्पत आम जनता के हित में फैसला करना होगा, तभी देश की जनता को इस सरकार में किसी तरह की उम्मीद दिखेगी. कुल मिलाकर यह निराशाजनक बजट है.
* कॉरपोरेट के फायदे का बजट
।। मोहम्मद सलीम ।।
(सांसद, माकपा)
मोदी सरकार का आम बजट देश के लिए अच्छा नहीं है. इस बजट में पूंजीपतियों और कॉरपोरेट के हितों का पूरा ख्याल रखा गया है. भाजपा के चुनाव अभियान में जिन लोगों ने पैसा लगाया था, उनके हितों को पूरा करने की कोशिश इस बजट में है. एक ओर आम जनता महंगाई से परेशान है तो वहीं दूसरी ओर सरकार ने मनरेगा और कृषि पर आवंटन को कम कर दिया गया है.
सामाजिक योजनाओं के मद में कमी का असर आम लोगों पर पड़ेगा. गरीबों, किसानों और मजदूरों के हितों की पूरी तरह अनदेखी की गयी है. सरकार ने विभिन्न क्षेत्रों में एफडीआइ की सीमा बढ़ाने की घोषणा की है. रक्षा और बीमा क्षेत्र में एफडीआइ की सीमा 49 फीसदी करने काफी खतरनाक है. इससे घरेलू कंपनियों को नुकसान होगा. बंदरगाहों के विकास के लिए पीपीपी मॉडल लागू करने से सिर्फ कॉरपोरेट को फायदा होगा. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के शेयर बेचने से घरेलू वित्तीय कमजोर होगा और भारतीय अर्थव्यवस्था विदेशी वित्तीय संस्थाओं पर निर्भर हो जायेगी. विदेशी पूंजी से ही देश का विकास नहीं हो सकता है. सरकार सोचती है कि बड़ी कंपनियों ही जनसेवा का काम करेंगी.
बजट के प्रावधानों में शिक्षा, स्वास्थ्य को लेकर कोई बड़ी घोषणा नहीं की गयी है. आज भी अधिकांश लोग मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं, सरकार को प्राथमिकता के आधार पर इसे पूरा करने की कोशिश करनी चाहिए. आज कृषि के सामने सबसे बड़ा संकट है. किसानों की स्थिति दिन ब दिन खराब होती जा रही है. साथ ही मॉनसून की कमी के कारण खेती पर प्रतिकूल असर पड़ा है.
उम्मीद थी कि कृषि क्षेत्र के विकास के लिए बजट में कोई ठोस प्रावधान किया जायेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ है. इस बजट से केवल कुछ वर्ग को फायदा होगा. छोटे और मझोले उद्योगों के विकास के लिए बजट में दिखावे के प्रावधान किये गये हैं. सामाजिक क्षेत्र और सामाजिक सुरक्षा के लिए कुछ नहीं है. भाजपा ने चुनाव के दौरान जो लोगों को अच्छे दिन के सपने दिखाये थे, वे इन बजट प्रावधानों से मुमकिन नहीं है. पहले ही पेट्रोल, डीजल और रेल भाड़े में बढ़ोत्तरी से आम लोग परेशान हैं.
ऊपर से बढ़ती महंगाई ने लोगों का जीना मुश्किल कर दिया है. महंगाई को नियंत्रित करने का कोई ठोस पहल इस बजट में नहीं दिखायी देती है. ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के लिए कोई एजेंडा बजट में नहीं दिखा. ग्रामीण अर्थव्यवस्था एफडीआइ से मजबूत नहीं होगी. यह बजट एफडीआइ और पीपीपी मॉडल मॉडल पर केंद्रित है.