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Friday, March 29, 2024

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पूर्वोत्तर में भाजपा ने लगाया बड़ा दांव, आठ राज्यों की 25 लोकसभा सीटें पहली बार राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में

भाजपा का फोकस : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर शाह तक कर चुके हैं कई दौरे कांग्रेस को भरोसा : पुराने गढ़ में अच्छे नतीजों की, चुनाव बाद नये साथी मिलने की गुवाहाटी : पूर्वोत्तर भारत की लोकसभा सीटों की राष्ट्रीय राजनीति में कोई निर्णायक भूमिका नहीं रही है. अमूमन पिछड़े कहे जाने वाले इस […]

भाजपा का फोकस : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर शाह तक कर चुके हैं कई दौरे
कांग्रेस को भरोसा : पुराने गढ़ में अच्छे नतीजों की, चुनाव बाद नये साथी मिलने की
गुवाहाटी : पूर्वोत्तर भारत की लोकसभा सीटों की राष्ट्रीय राजनीति में कोई निर्णायक भूमिका नहीं रही है. अमूमन पिछड़े कहे जाने वाले इस इलाके के आठ राज्यों (सिक्किम समेत) की लोकसभा की 25 सीटें इस बार राष्ट्रीय राजनीति में काफी अहम बन गयी हैं.
पांच साल पहले तक कांग्रेस का गढ़ रहा यह इलाका अब भाजपा की चुनावी रणनीति में अहम स्थान बना चुका है. यही वजह है कि अपने क्षेत्रीय सहयोगियों के साथ 25 में से 21 सीटें जीतने के लक्ष्य के साथ पार्टी ने पूरी ताकत झोंक दी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीन-तीन रैलियां कर चुके हैं. उनके अलावा भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की भी रैलियां यहां हो चुकी है.
पूर्वोत्तर का प्रवेशद्वार कहा जाने वाला असम 14 सीटों के साथ सबसे अहम है. बीते चुनावों में भाजपा ने यहां 7 सीटें जीती थीं. इस बार वह असम गण परिषद (अगप) और बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) संग 12 सीटों के लक्ष्य के साथ मैदान में है. पार्टी के वरिष्ठ नेता व असम के वित्त मंत्री हिमंत विस्व शर्मा कहते हैं कि हमारा लक्ष्य सहयोगियों के साथ 25 में से 21 सीटें जीतना है. पहले की सरकारों ने पूर्वोत्तर के विकास पर विशेष ध्यान नहीं दिया.
नतीजतन इलाके में सड़कों, पुलों और अन्य आधारभूत ढांचे का अभाव है. इस क्षेत्र में पहले कांग्रेस की तूती बोलती थी, लेकिन वर्ष 2014 में केंद्र में काबिज होने के बाद भाजपा ने यहां कई विकास परियोजनाएं शुरू कीं. धीरे-धीरे यहां विकास के सपने दिखा कर भाजपा एक के बाद एक राज्यों की सत्ता हासिल करती रही. अब असम समेत चार राज्यों में उसकी सरकारें हैं और नगालैंड के अलावा बाकी जगहों पर वह सत्ताधारी मोर्चे में साझीदार है. पांच साल में कांग्रेस यहां हाशिये पर पहुंच गयी.
लुक ईस्ट की जगह अब एक्ट ईस्ट
पांच साल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और दूसरे केंद्रीय नेताओं ने इलाके का जितना दौरा किया है, वह एक रिकॉर्ड है. पीएम मोदी ने पहले की लुक ईस्ट की जगह एक्ट ईस्ट का नया नारा गढ़ते हुए आठ राज्यों में 10 हजार किमी से ज्यादा लंबी सड़कों के निर्माण के लिए 1.66 लाख करोड़ रुपये मंजूर किये हैं.
इसके अलावा साढ़े आठ सौ किमी लंबे हाइवे के निर्माण के सात हजार करोड़ की अतिरिक्त रकम मंजूर की गयी है. भाजपा ने विकास के अलावा नागरिकता (संशोधन) विधेयक और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस (एनआरसी) को अपना प्रमुख मुद्दा बनाया है.
असम में पार्टी ने पांच निवर्तमान सांसदों के टिकट भी काट दिये हैं. लेकिन, प्रदेश अध्यक्ष रंजीत दास का दावा है कि इससे पार्टी की चुनावी संभावनाओं पर कोई असर नहीं होगा. दास कहते हैं, आजादी के बाद से ही राज्य और केंद्र की सत्ता में रही कांग्रेस ने असम के विकास के लिए कुछ नहीं किया है, विकास के मुद्दे पर लोग भाजपा के साथ हैं.
भाजपा के वादे हवाई : कांग्रेस
कांग्रेस का दावा है कि लोग भाजपा के हवाई वादों से आजिज आ चुके हैं. असम के पूर्व सीएम तरुण गोगोई कहते हैं कि भाजपा के पास दिखाने के लिए कुछ नहीं है. इसलिए उसने पुराने चेहरों को हटाकर नये लोगों को उतारा है. इस बीच कांग्रेस को उम्मीद है कि वह अपने पुराने गढ़ में अच्छा प्रदर्शन करेगी.
अल्पसंख्यकों में अजमल की पैठ
असम में पिछली बार सात सीटों पर लड़ने वाले इत्र कारोबारी बदरुद्दीन अजमल के नेतृत्व वाला ऑल इंडिया माइनाॅरिटी डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआइयूडीएफ) इस बार पिछली बार जीती गयी तीन सीटों पर ही चुनाव लड़ रहा है.
अरुणाचल : निवासी प्रमाण पत्र का सवाल
असम के अलावा मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा और अरुणाचल प्रदेश में दो-दो सीटें हैं, जबकि नगालैंड और मिजोरम में एक-एक सीट. असम, मणिपुर, त्रिपुरा औऱ अरुणाचल प्रदेश में भाजपा सत्ता में है.
मेघालय और नागालैंड में भी वह सत्तारुढ़ मोर्चे में शामिल है. अरुणाचल पश्चिम संसदीय सीट पर लड़ रहे केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू कहते हैं- स्थायी निवासी प्रमाणपत्र (पीआरसी) का मुद्दा खत्म हो चुका है. राज्य के लोग विकास के मुद्दे पर पार्टी को ही वोट देंगे. राज्य में विधानसभा के लिए भी मतदान होना है.
नेडा से जुड़े कुछ दल भाजपा के खिलाफ
वर्ष 2016 में असम विधानसभा चुनावों में जीत के बाद भाजपा ने क्षेत्रीय दलों को लेकर नार्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक एलायंस (नेडा) का गठन किया था. उसमें शामिल कुछ क्षेत्रीय दल अबकी बार अलग से भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं. इनमें त्रिपुरा की इंडीजीनस पीपुल्स फ्रंट आफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) और मेघालय में सत्तारुढ़ नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) प्रमुख हैं.
प्रमुख मुद्दा
बेरोजगारी, उग्रवाद, पिछड़ापन नहीं… इस बार विकास ही प्रमुख मुद्दा
पूर्वोत्तर में वैसे तो हर चुनावों में बेरोजगारी, उग्रवाद और पिछड़ेपन जैसे कई पारंपरिक मुद्दे रहे हैं. लेकिन, इस बार विकास ही सबसे अहम मुद्दे के तौर पर उभरा है. गुवाहाटी विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर अखिल रंजन दत्त कहते हैं कि शुरुआती दौर में नागरिकता विधेयक विरोध जितना मुखर था अब वैसा कुछ नजर नहीं आ रहा है.
इस मुद्दे पर भाजपा से नाता तोड़ने वाली असम गण परिषद भी दोबारा भाजपा के साथ आ गयी है. दत्त कहते हैं कि कांग्रेस इस विधेयक के खिलाफ आंदोलन का सियासी फायदा नहीं उठा सकी है. उनका कहना है कि नये चेहरों को मैदान में उतारने की वजह से अबकी भाजपा की चुनावी संभावनाएं बेहतर हो गयी हैं. विपक्ष के पास इन नये उम्मीदवारों के खिलाफ कोई मुद्दा ही नहीं बचा है.
अवैध घुसपैठ का मुद्दा भुनाने की रणनीति
असम के हिंदू बहुल बराक घाटी इलाके में नागरिकता विधेयक को खासा समर्थन मिला है और भाजपा उसे भुनाने की रणनीति बना रही है. बांग्लादेश से अवैध घुसपैठ असम में दशकों पुरानी समस्या रही है. भाजपा नेता राज्य के लोगों की भावनाओं से जुड़े इस संवेदनशील मुद्दे को लगातार उभार रहे हैं. अमित शाह ने हाल में अपनी चुनावी रैली में कहा था कि भाजपा सत्ता में लौटने के बाद घुसपैठियों को चुन-चुन कर बाहर करेगी.
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