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आजमगढ़ सीट पर हावी रहा जातीय समीकरण, मोदी लहर में भी हारी थी भाजपा, गढ़ दिया नया नारा ‘लाठी, हाथी व 786’

यादव, मुस्लिम और एससी ज्यादा, भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग दांव पर आजमगढ़ : अखिलेश यादव इस बार आजमगढ़ लोकसभा सीट से चुनाव लड़ेंगे. अखिलेश का यह फैसला महज चुनावी रणनीति का हिस्सा नहीं है, बल्कि समाजवादी पार्टी की कमान पूरी तरह अपने हाथ में लेने के बाद आजमगढ़ सीट से चुनाव लड़ने के फैसले के […]

यादव, मुस्लिम और एससी ज्यादा, भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग दांव पर
आजमगढ़ : अखिलेश यादव इस बार आजमगढ़ लोकसभा सीट से चुनाव लड़ेंगे. अखिलेश का यह फैसला महज चुनावी रणनीति का हिस्सा नहीं है, बल्कि समाजवादी पार्टी की कमान पूरी तरह अपने हाथ में लेने के बाद आजमगढ़ सीट से चुनाव लड़ने के फैसले के जरिये पिता मुलायम सिंह यादव की विरासत को संभालने का उनका एक और बड़ा संदेश है.
आजमगढ़ मुलायम सिंह की संसदीय सीट रही है. पूर्वी यूपी में आजमगढ़ एकमात्र सीट है, जहां 2014 में भाजपा हारी थी. पिछले चुनाव में सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव यहां 63 हजार से ज्यादा मतों से विजयी हुए थे. इस बार वह मैनपुरी से चुनाव लड़ेंगे, जो सपा का गढ़ भी है. हालांकि पिछली बार आजमगढ़ से जीतने के बाद मुलायम ने यहां से दूरी बना ली थी, लेकिन क्षेत्र को इसका गिला-शिकवा फिर भी नहीं.
आजमगढ़ की राजनी​ति में जातीय समीकरण हावी रहे हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा लहर थी, तब सपा और बसपा अलग-अलग चुनाव लड़ रहे थे. इसके बावजूद यहां 10 में से नौ विधानसभा सीटें सपा व बसपा ने जीती थीं. पूर्वांचल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की वजह से भाजपा की किलेबंदी मजबूत है, तो प्रियंका गांधी वाड्रा को पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी महासचिव बना कर कांग्रेस ने भी पूरब पर फोकस किया है.
मुलायम की सीट पर अखिलेश का उतरना बड़ा संकेत
1971 के बाद से यहां कांग्रेस मुश्किल में
आजमगढ़ में दो लोस सीटें हैं, लालगंज और आजमगढ़. 1952 से 1971 तक आजमगढ़ में कांग्रेस ही जीती. इसके बाद हुए आम चुनावों में कांग्रेस की राह मुश्किल होती चली गयी. 1978 के उपचुनाव और 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए चुनाव को छोड़ दें, तो कांग्रेस फिर नहीं जीत पायी.
आेबीसी पिछली बार भी भाजपा के साथ थे
आजमगढ़ में जातीय समीकरण ही प्रभावी हैं. गठबंधन ने इसे और मजबूत शक्ल दे दी है. बिंद्रा बाजार के लोग कहते हैं कि आजमगढ़ में यादव, मुस्लिम और अनुसूचित जाति की आबादी ज्यादा है. गैर-यादव ओबीसी पिछले चुनाव में भाजपा के साथ थे. उनके रुझान में खास अंतर नहीं आया.
मुलायम नहीं, अखिलेश की ही सुनी जायेगी
सदर विधानसभा क्षेत्र के सम्मोपुर खालसा गांव कई लोग भाजपा राज में भेदभाव बताते हैं. कहते हैं, तीन हॉर्सपावर के ट्यूबवेल का बिल 335 से बढ़ कर 450 रुपये हो गया है. नहर का पानी मुफ्त था, अब पैसा लग रहा है. यादवों को वजीफा नहीं मिल रहा. मोदी के समर्थन में मुलायम के बयान को तवज्जो नहीं दे रहे. लोग कहते हैं, अब तो अखिलेश नेता हैं.
गढ़ दिया नया नारा ‘लाठी, हाथी व 786’
सामाजिक रूप से जागरूक आजमगढ़ में नये-नये नारे गढ़े जा रहे हैं. स्थानीय निवासी मानते हैं कि यहां लाठी-हाथी और 786 चलेगा. इशारा यादव, एससी व मुस्लिमों की तरफ है. बाटला हाउस एनकाउंटर से चर्चा में आए संजरपुर गांव के मसीहुद्दीन मानते हैं कि गठबंधन से यूपी की राजनीति में बड़े जातीय समूह साथ आ गए हैं, जिले की दोनों सीट गठबंधन जीतेगा.
कोई ध्रुवीकरण देख रहा, तो कोई कड़ा संघर्ष
रेलवे स्टेशन के निकट एक सामाजिक कार्यकर्ता बताते हैं, सपा-बसपा गठबंधन की प्रतिक्रिया में वोटों का ध्रुवीकरण होगा. इससे भाजपा से सीधे मुकाबले की स्थिति बनेगी. हालांकि यहां के राजनीतिक जानकार मानते हैं कि जिले में संगठन, कार्यकर्ता और पार्टी का चेहरा न होने से कांग्रेस को प्रियंका का लाभ नहीं मिलेगा.
विद्वानों, शायरों और कवियों की धरती रहा है आजमगढ़
राहुल सांकृत्यायन, अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध जैसे साहित्यकार, शिबली नोमानी जैसे इस्लामिक विद्वान, कैफी आजमी जैसे अजीम शायर और शबाना आजमी जैसी अदाकारा का जिला आजमगढ़ अलग तासीर रखता है.
डीएवी कॉलेज के राजनीति विज्ञान विभाग के प्राध्यापक डॉ सुजीत कुमार सपा-बसपा गठबंधन का व्यापक असर देख रहे हैं. सोशल एक्टिविस्ट राकेश गांधी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अलग छवि के चलते गठबंधन व भाजपा में कड़े मुकाबले की उम्मीद है.
पूर्वांचल के इस सबसे बड़े जिले में सपा-बसपा गठबंधन को कोई नजरअंदाज नहीं कर रहा. प्रियंका के सक्रिय राजनीति में आने से उन्हें खास फर्क नजर नहीं आ रहा. दिल्ली विवि के जाकिर हुसैन कॉलेज में प्राध्यापक डॉ लक्ष्मणसिंह यादव यहां के सुधारी गांव के हैं. कहते हैं, यह गठबंधन 25 साल से चली आ रही पिछड़ा बनाम दलित राजनीति पर विराम लगायेगा, गठबंधन आजमगढ़ में भारी पड़ेगा. एससी व पिछड़ों की तरह अल्पसंख्यकों की स्थिति खराब है. प्रियंका से कांग्रेस को फायदा नहीं मिलेगा.

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