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हम चीन से भी ज्यादा ताकतवर

हम चीन से भी ज्यादा ताकतवर किसी भी देश की फौजी ताकत में नौसैनिक बेड़े की अहम भूमिका होती है. ऐसे में भारत के पास आइएनएस विक्रमादित्य जैसे युद्ध पोत होने से हमारी नौसेना का हौसला और बढ़ गया. करीब 500 किमी की कोई भी गतिविधि इस युद्ध पोत की नजरों से नहीं बच पायेगी. […]

हम चीन से भी ज्यादा ताकतवर किसी भी देश की फौजी ताकत में नौसैनिक बेड़े की अहम भूमिका होती है. ऐसे में भारत के पास आइएनएस विक्रमादित्य जैसे युद्ध पोत होने से हमारी नौसेना का हौसला और बढ़ गया. करीब 500 किमी की कोई भी गतिविधि इस युद्ध पोत की नजरों से नहीं बच पायेगी. यदि हम अन्य देशों से तुलना करें, तो अब हम युद्ध पोत के मामले में सिर्फ अमेरिका से पीछे हैं और पड़ोसी देश चीन से आगे. इस वक्त अमेरिका के पास 11 ऑपरेशनल एयरक्राफ्ट कैरियर हैं. विक्रमादित्य के आने से भारत इटली के बराबर होगा, जिसके पास दो ऑपरेशनल एयरक्राफ्ट कैरियर हैं. चीन, इंग्लैंड, फ्रांस, रूस, स्पेन, ब्राजील और थाईलैंड के पास एक-एक ऑपरेशनल एयर क्राफ्ट कैरियर हैं.

-16 नवंबर, 2013 को भारतीय नौसेना के बेड़े में किया गया शामिल

-युद्धपोत में क्या है

खास 15,000 करोड़ रुपये में रूस में बने इस युद्धपोत को खरीदा गया

44,570 टन वजनवाले आइएनएस विक्र मादित्य की ऊंचाई

60 मीटर यानी 20 मंजिली इमारत जितनी है

22 डेकवाले इस युद्धपोत पर 1600 से 1800 नौसैनिकों की तैनाती रहेगी

30 नॉट यानी करीब 54 किमी/घंटा की रफ्तार से समुद्र की लहरों पर आइएनएस विक्रमादित्य कर सकता है सफर

284 मीटर लंबे इस पोत पर 24 मिग-29 और 10 हेलीकॉप्टर तैनात किये जायेंगे

500 किमी के दायरे में आनेवाले दुश्मनों का पता लगा लगा लेता है यह पोत

माइक्रोवेव लैंडिग सिस्टम की वजह से लड़ाकू जहाजों की लैंडिंड किसी भी हालात में मुमकिन होगा

मॉडर्न कम्यूनिकेशन सिस्टम से लैस आइएनएस विक्रमादित्य मिग-29 के साथ बेहद मजूबत किलेबंदी कर सकता है

-इसके पहले बाकू के नाम से यह इस पोत का 1987 में जलावतरण हुआ था. 1991 में सोवियत संघ के पतन के बाद इसका नाम बदल कर एडमिरल गोर्शकोव रखा गया.

-शीतयुद्ध के खत्म होने और 1994 में इसके ब्यॉलर रूम में आग लगने के बाद रूस को इसका बजट अखरने लगा. लिहाजा, 1996 इसको सेवामुक्त करते हुए बेचने का फैसला किया.

कैसे हुआ सौदा

वर्षो की बातचीत के बाद 20 जनवरी, 2004 को दोनों पक्षों के बीच समझौता हुआ. इसके तहत पोत मुफ्त मिलना था. उन्नत स्तर और वर्तमान जरूरतों के हिसाब से इसका जीर्णोद्धार करने के लिए 4881.67 (987 मिलियन डॉलर) का भुगतान करना पड़ा. 2004 में इसकी मरम्मत का काम शुरू हुआ. प्रोजेक्ट को 52 महीनों में पूरा कर 2008 में भारत को डिलीवरी मिलनी थी, लेकिन 2007 में रूस कहने लगा कि कीमत का सही ढंग से मूल्यांकन नहीं किया गया और ढेर सारा काम करने के लिए कीमतों में संशोधन की जरूरत है. दो वर्षो की बातचीत के बाद दोनों पक्ष 2.3 अरब डॉलर पर सहमत हुए डिलीवरी की तारीख नंवबर 2012 रखी गयी, लेकिन परीक्षण के दौरान गड़बड़ पाने पर समय सीमा को एक बार फिर बढ़ाया गया. अंतत: 16 नवंबर, 2013 को यह युद्ध पोत भारत को मिल गया.

देश-विमानवाहक पोत

अमेरिका -11

भारत-02

इटली-02

चीन, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, स्पेन, ब्राजील और थाइलैंड-01

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