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कूटनीतिक सख्ती की जरूरत

कालाधन तो पैदा देश के भीतर ही होता है, इसलिए उसे रोकने के उपाय भी देश में ही करने होंगे. विडंबना यह है कि हमारे देश में कर चोरी करने के खिलाफ कड़ी सजा का कोई प्रावधान नहीं है. इस संबंध में सबसे बड़ी जिम्मेवारी आयकर विभाग, इंफोर्समेंट डायरेक्टोरेट जैसी संस्थाओं को है, जिन्हें ऐसे […]

कालाधन तो पैदा देश के भीतर ही होता है, इसलिए उसे रोकने के उपाय भी देश में ही करने होंगे. विडंबना यह है कि हमारे देश में कर चोरी करने के खिलाफ कड़ी सजा का कोई प्रावधान नहीं है.

इस संबंध में सबसे बड़ी जिम्मेवारी आयकर विभाग, इंफोर्समेंट डायरेक्टोरेट जैसी संस्थाओं को है, जिन्हें ऐसे लोगों को रोकना चाहिए जो अवैध धन जमा करते हैं. इस क्षेत्र में न्यायिक प्रक्रिया को भी मजबूत करने की जरूरत है ताकि कर चोरों तथा गैर कानूनी तरीके से धन जमा करने के मामलों में तेजी से सुनवाई हो सके और दोषियों को सजा हो सके. यह सब करने से कालाधन पैदा करने की प्रवृत्ति पर प्रभावी ढंग से रोक लगायी जा सकती है.

यह भी वास्तविकता है कि बड़ी मात्र में देश का धन अलग-अलग तरीकों से विदेशों में है जिसे वापस लाने के लिए गंभीर प्रयासों की आवश्यकता है. अमेरिका और यूरोप के देशों ने दुनिया भर के कालेधन की जमाखोरी के लिए कुख्यात तथाकथित ‘टैक्स हेवेन’ कहे जानेवाले देशों और बहुराष्ट्रीय बैंकों पर कड़ाई से शिकंजा कसने की कोशिशें की हैं. यूबीएस बैंक को अमेरिका के खाताधारकों की सूची वहां की सरकार को सौंपना पड़ा है. ऐसे में यह सवाल जरूरी हो जाता है कि भारत इन देशों और बैंकों के ऊपर दबाव क्यों नहीं बना पा रहा है. विकिलीक्स के जूलियन असांज ने दावा किया था कि उसे स्विटजरलैंड में कालाधन जमा करनेवालों के नाम मिले हैं, जिनमें बड़ी संख्या में भारतीय भी शामिल हैं. भारत सरकार असांज को भी ये नाम बताने का निवेदन कर सकती है. सरकार द्वारा स्विटजरलैंड, केमन आइलैंड, ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड आदि देशों के सहयोग से कालेधन के प्रवाह की जांच करना कोई बहुत मुश्किल काम नहीं है.

इंटरनेशनल कॉन्सोर्टियम ऑफ इंवेस्टिगेटिंग जर्नलिस्ट्स खोजी पत्रकारों की एक वैश्विक संस्था है जो लगातार कालेधन के जमाखोरों के बारे में सूचनाएं सार्वजनिक कर रही है. इस संस्था ने चीन के ऐसे लोगों के बारे में व्यापक खोजबीन करके रिपोर्ट साझा किया था, जो उनकी वेबसाइट पर भी उपलब्ध है. इस रिपोर्ट में चीन के बड़े ओहदेदारों और उनके रिश्तेदारों द्वारा ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड में फर्जी कंपनियों की आड़ में रखे गये कालेधन का खुलासा है.

अब यह कोई छुपी बात नहीं है कि इसी तरह से भारत से भी धन का दोहन कर और देश की संपत्ति लूट कर ऐसे द्वीप-देशों में जमा किया गया है. सरकार को इन देशों से सूचनाएं मांगनी चाहिए और अगर कोई देश इसमें सहयोग करने में आनाकानी करता है तो फिर इसका असर कूटनीतिक संबंधों पर पड़ना चाहिए. अगर जरूरत पड़े तो इन देशों के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए. सरकार अपने मित्र देशों के सहयोग से इस मामले को संयुक्त राष्ट्र में भी उठा सकती है और आर्थिक प्रतिबंध की मांग कर सकती है. आखिरकार, कालेधन की समस्या किसी एक देश या कुछ देशों की समस्या तो है नहीं, यह तो एक विश्वस्तरीय समस्या है और हर देश को इससे नुकसान उठाना पड़ रहा है. इस दिशा में किसी ठोस परिणाम के लिए भारत सरकार को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत सक्रियता का प्रदर्शन करना होगा.

कालेधन के मामले में एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इस धन का एक बड़ा हिस्सा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के नाम पर वापस देश में आ जाता है और बड़ी चालाकी से वैध धन की श्रेणी में गिना जाने लगता है. इस प्रक्रिया को आम तौर पर ‘मॉरीशस रूट’ की संज्ञा दी जाती है. फर्जी कंपनियों के नाम पर ऐसे धन की आमद पर तत्काल प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता है. पहले इस संबंध में कुछ कोशिशें हुई हैं, लेकिन उनका कोई खास असर नहीं हुआ है. मॉरीशस के साथ भारत का डबल टैक्स अवॉइडैंस ट्रीटी है. इस समझौते को रद्द कर इसकी जगह पर नया प्रभावकारी समझौता किया जाना चाहिए. इस समझौते में यह व्यवस्था है कि किसी एक देश में अगर आमदनी पर कर चुका दिया गया है तो फिर दूसरे देश में कर देने की जरूरत नहीं है. लेकिन सच्चाई यह है कि कैपिटल गेंस पर न तो भारत में कोई टैक्स है और न ही मॉरीशस में कोई टैक्स है. ऐसे में पूंजी लाने वाले लोगों को न तो यहां कोई कर देना पड़ता है और न ही मॉरीशस में. भारत सरकार को मजबूती के साथ निवेशकों को यह संकेत देना पड़ेगा कि अगर इस देश में उन्हें व्यापार करना है और मुनाफा कमाना है तो कर चुकाना पड़ेगा. इसके लिए ऐसे चालाकी भरे समझौतों को फिर से नये शर्तों और नियमों के साथ लागू करने की जरूरत है.

बातचीत पर आधारित

डॉ प्रसेनजित बोस अर्थशास्त्री

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