लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद वामपंथियों के अस्तित्व को लेकर सवालिया निशान लगने शुरू हो गये हैं. पहले पश्चिम बंगाल में 34 वर्षो से चल रही सरकार का पतन और अब लोकसभा चुनाव में वामपंथी प्रत्याशियों की करारी हार. माकपा सांसदों की स्थिति और बिगड़ी है तथा उनकी संख्या एकल अंक में सिमट कर नौ हो गयी है. सबसे बुरा हाल पश्चिम बंगाल का रहा. पश्चिम बंगाल में फिर से उभरने की कोशिश कर रही वामपंथी पार्टियों की सीटों की संख्या 15 से घट कर दो हो गयी है. वहीं, सत्तारूढ़ दल तृणमूल की सीटों की संख्या 19 से बढ़ कर 34 हो गयी है. जले में नमक का काम भाजपा का बढ़ता प्रभाव ने किया है.
चुनाव में वामपंथी वोटों में भाजपा ने सेंध लगायी है. इससे वामपंथी और भी तिलमिलाये हुए हैं. हालांकि वामपंथी पार्टियों ने हार के कारणों की समीक्षा व पार्टी को मजबूत बनाने की कवायद शुरू कर दी है, लेकिन कोई भी व्यक्तिगत जिम्मेदारी लेने से कतरा रहा है. पश्चिम बंगाल में हार की वजह चुनाव में तृणमूल कांग्रेस की धांधली को बताकर अपना पल्ला झाड़ रहे हैं. माकपा नेता वंृदा करात का मानना है कि बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की नेतृत्व वाली तृणमूल सरकार को 34 सीटों पर जीत बैलेट से नहीं, बल्कि वायलेंस (धांधली) की बदौलत मिली. रही पूरे देश की बात तो हार के कारणों पर चर्चा हो रही है और सामूहिक चर्चा के बाद ही तय होगी जिम्मेदारी. लोकसभा चुनाव में माकपा का प्रदर्शन, वर्तमान स्थिति समेत कई मुद्दों को लेकर माकपा पोलित ब्यूरो की सदस्य वंृदा करात से प्रभात खबर के संवाददाता अमित शर्मा से विशेष बातचीत हुई. आइये जानते हैं उनसे बातचीत के प्रमुख अंश :
पूरे देश में माकपा महज नौ सीटों पर सिमट गयी. इतनी बड़ी शिकस्त का क्या कारण मानती हैं?
इस बार लोकसभा चुनाव में माकपा का प्रदर्शन बेहतर नहीं रहा. हार के कारणों की समीक्षा की जा रही है. विगत 18 मई को माकपा पोलित ब्यूरो की बैठक में प्राथमिक रूप से चर्चा की गयी. चुनाव के दौरान पार्टी के कार्यो की समीक्षा को लेकर छह जून को माकपा पोलित ब्यूरो की बैठक होगी. सांगठनिक ताकत को बढ़ाने पर विचार विमर्श किया जायेगा. इसके बाद केंद्रीय समिति की बैठक सात व आठ जून को होगी. इसके बाद राज्य इकाइयों की बैठक होगी. माकपा सांगठनिक नियमों के अनुरूप चलती है. किसी की व्यक्तिगत राय से फैसले नहीं लिये जाते हैं. सभी मुद्दों पर सामूहिक चर्चा के बाद ही जिम्मेदारी तय होगी.
विगत लोकसभा चुनाव में बंगाल में माकपा को नौ सीटें मिलीं, लेकिन इस बार महज दो. कहां कमी रह गयी?
मतदान के पहले से ही राज्य में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने हिंसा का वातावरण तैयार किया था. रिगिंग, हिंसा के बीच मतदान हुआ. बंगाल में हार के प्रमुख कारणों में यह सबसे प्रमुख है. यानी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस को जीत बैलेट की बदौलत नहीं वायलेंस से मिली. अन्य कारणों को लेकर राज्य इकाई की होनेवाली बैठक में समीक्षा की जायेगी. इसके बाद ही कुछ कहा जा सकता है.
आप रिगिंग की बात कह रही हैं. मतदान में चुनाव आयोग की भूमिका के विषय में क्या कहेंगी?
मतदान के दौरान माकपा द्वारा हिंसा व अन्य मुद्दों को लेकर चुनाव आयोग के समक्ष 466 से ज्यादा मामले दर्ज कराये गये. यदि आयोग इन शिकायतों पर गौर करता, ठोस कदम उठाये जाते तो बंगाल में निष्पक्ष और शांतिपूर्ण चुनाव हो पाते. मतदान के दौरान मतदाताओं व वामपंथी कार्यकर्ताओं पर हमले हुए. महिलाओं को भी नहीं बख्शा गया. आलम यह रहा कि गर्भवती महिला मतदाता पर हमले हुए. कहा जा सकता है कि मतदान निष्पक्ष और शांतिपूर्ण करा पाने में चुनाव आयोग नाकाम रही और उसकी भूमिका पक्षपातपूर्ण, निराशाजनक और उदासीन रही.
तृणमूल सरकार के कार्यो को 10 में से कितना नंबर देंगी?
सरकार के रूप में कार्य करने की क्षमता तृणमूल कांग्रेस के पास नहीं है. आम जनता को केवल धोखा देने की कोशिश की जा रही है. बंगाल में हिंसा की राजनीति की जा रही है. महिलाओं की सुरक्षा पर संशय की स्थिति बनी हुई है. विपक्षी दलों पर हमले जारी हैं. मौजूदा सरकार की कोई गुणवत्ता नहीं है. विकास मूलक कार्य नहीं हुए हैं. ऐसे में 10 में एक भी अंक नहीं दे सकती.