नयी दिल्ली:नरेंद्र मोदी सरकार जम्मू कश्मीर के लिए अनुच्छेद (आर्टिकल) 370 के गुण दोषों पर चर्चा के लिए तैयार है और प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री जीतेंद्र सिंह के अनुसार राज्य में समाज के हर वर्ग के साथ संपर्क कर उन लोगों को समझाने के प्रयास किये जायेंगे जो ‘असहमत’ हैं. हालांकि बाद में उन्होंने इस मामले पर सफाई देते हुए कहा कि मीडिया में मेरे बयान को तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया है.
पहली बार सांसद बने 57 वर्षीय सिंह ने स्पष्ट किया कि भाजपा अनुच्छेद 370 को हटाने के पक्ष में है जो जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देता है, लेकिन साथ ही पार्टी लोगों को समझाना चाहती है और इस मुद्दे के दीर्घकालिक समाधान के लिए लोकतांत्रिक तरीका अपनायेगी. सिंह ने कहा कि प्रदेश भाजपा अनेक पक्षों से बात कर रही है.
घाटी में भाजपा ने बुलायी बैठक
उन्होंने कहा, ‘हमने कश्मीर घाटी में बैठकें बुलायी हैं और हमने उनमें से कुछ को मनाने में सफलता हासिल की है.’ सिंह को प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री बनाये जाने के मोदी के फैसले से कई लोगों को हैरानी हुई है. सिंह ने कहा कि मोदी ने पिछले साल राज्य में एक रैली में धारा 370 पर चर्चा का मुद्दा उठाया था और इसके गुण दोषों पर राज्य भर में सेमिनार आयोजित करने का सुझाव दिया था. सिंह ने मोदी की उस बात को आगे बढ़ाते हुए मंगलवार को कहा, ‘उनकी (मोदी की) और सरकार की इच्छा है कि हम इस पर चर्चा करें जिससे कि हम धारा 370 से हो रहे नुकसान के बारे में असहमत लोगों को समझा सकें.’
क्या है धारा 370
भारतीय संविधान की आर्टिकल 370 जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा प्रदान करती है. 1947 में विभाजन के समय जम्मू-कश्मीर के राजा हरि सिंह पहले स्वतंत्र रहना चाहते थे, लेकिन उन्होंने बाद में भारत में विलय के लिए सहमति व्यक्त कर दी. 1951 में राज्य को संविधान सभा को अलग से बुलाने की अनुमति दी गयी. नवंबर, 1956 में राज्य के संविधान का कार्य पूरा हुआ.
26 जनवरी, 1957 को राज्य में विशेष संविधान लागू कर दिया गया. धारा 370 के प्रावधानों के अनुसार, संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार है. लेकिन, किसी अन्य विषय से संबंधित कानून को लागू करवाने के लिए केंद्र को राज्य सरकार का अनुमोदन चाहिए. विशेष दर्जे के कारण जम्मू-कश्मीर राज्य पर संविधान की धारा 356 लागू नहीं होती. राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बरखास्त करने का अधिकार नहीं है. 1976 का शहरी भूमि कानून जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता. इसके तहत भारतीय नागरिक को विशेष अधिकार प्राप्त राज्यों के अलावा भारत में कही भी भूमि खरीदने का अधिकार है. यानी भारत के दूसरे राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकते हैं.