24.2 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

सफलता और असफलता की विरासत छोड़कर चले मनमोहन

नयी दिल्ली: नब्बे के दशक में देश में आर्थिक सुधारों की शुरुआत करने में अहम भूमिका निभाने का श्रेय पाने वाले अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह 10 साल बाद अब प्रधानमंत्री पद से हट जाएंगे. वह उपलब्धियों और विफलताओं की मिली जुली विरासत छोडकर जा रहे हैं. संप्रग-2 के समय सामने आये घोटालों ने संभवत: 81 वर्षीय […]

नयी दिल्ली: नब्बे के दशक में देश में आर्थिक सुधारों की शुरुआत करने में अहम भूमिका निभाने का श्रेय पाने वाले अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह 10 साल बाद अब प्रधानमंत्री पद से हट जाएंगे. वह उपलब्धियों और विफलताओं की मिली जुली विरासत छोडकर जा रहे हैं.

संप्रग-2 के समय सामने आये घोटालों ने संभवत: 81 वर्षीय सिंह के अच्छे कामों का रंग बिगाड दिया हो लेकिन देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु के 17 साल के सबसे लंबे कार्यकाल के बाद सिंह को ही लगातार दो बार यानी 10 साल तक प्रधानमंत्री बनने का गौरव हासिल है.

लोकसभा चुनावों के लिए मतगणना कल होने जा रही है और एक्जिट पोल के नतीजे संप्रग की पराजय दर्शा रहे हैं. सिंह अपना इस्तीफा शनिवार को सौंप देंगे. प्रख्यात अर्थशास्त्री सिंह 1991 के आर्थिक संकट के चरम के वक्त राजनीति में आये, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री पी वी नरसिंह राव ने उन्हें वित्त मंत्री के रुप में सरकार में शामिल किया.

दोनों नेताओं ने मिलकर भुगतान संतुलन के संकट से अर्थव्यवस्था को बाहर निकाला और फिर आर्थिक सुधारों की दिशा तय की, जिसे लेकर बाद की किसी भी सरकार ने पीछे मुडकर नहीं देखा. सिंह भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे और दक्षिण-दक्षिण आयोग के महासचिव रहे. अपनी ईमानदारी और सत्यनिष्ठा के लिए सिंह इतने मशहूर हुए कि जब प्रधानमंत्री चुनने का मौका आया तो वह सोनिया गांधी की ‘आटोमेटिक’ पसंद बन गये.

2002 की गोधरा घटना और फिर हुए दंगों और तनावपूर्ण सांप्रदायिक माहौल के बाद 2004 में हुए लोकसभा चुनाव के पश्चात सिंह ने संप्रग की ओर से सत्ता संभाली थी. उनके प्रशासन ने हालात में संतुलन कायम किया.

सहयोगी दलों, विशेषकर वाम दलों के दबाव के बावजूद सिंह ने भारत-अमेरिका परमाणु सौदे को आगे बढाने और भारत के खिलाफ लगे प्रतिबंधों को हटाने में दृढ निश्चय का परिचय दिया हालांकि इसे लेकर उनकी सरकार पर खतरे के बादल भी मंडराये.

प्रख्यात अर्थशास्त्री सिंह की सरकार ने अपने कार्यकाल के अधिकांश समय 8 . 5 प्रतिशत की जीडीपी विकास दर हासिल की लेकिन 2-जी, राष्ट्रमंडल, कोल ब्लाक आवंटन घोटालों और उसके बाद सरकार के कथित ‘नीतिगत पक्षाघात’ ने सिंह के प्रदर्शन में बाधाएं डालीं.

संप्रग-2 सरकार घोटालों की छाया से कभी बाहर नहीं निकल पायी. भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी ने इन घोटालों को लेकर संप्रग सरकार पर जमकर निशाना साधा. विडम्बना ही है कि जिस व्यक्ति की व्यक्तिगत ईमानदारी पर कभी सवाल नहीं उठे, उसने ऐसी सरकार का नेतृत्व किया, जो घोटाले दर घोटाले के आरोपों में उलझती रही. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को मिले अधिकारों के रुप में पार्टी और सरकार में दो शक्तिकेंद्रों को लेकर भी सिंह को आलोचनाओं का शिकार बनना पडा और उनके आलोचकों ने उन्हें देश का ‘‘सबसे कमजोर’’ प्रधानमंत्री करार दिया.

उनके पूर्व मीडिया सलाहकार संजय बारु और कुछ अन्य नौकरशाहों की लिखी पुस्तकों ने ऐसे आरोपों को हवा देने में मदद दी. सिंह का इतनी उंचाई तक जाना दर्शाता है कि एक विनम्र पृष्ठभूमि वाला व्यक्ति भारतीय लोकतंत्र में क्या कुछ हासिल कर सकता है. वह देश के पहले सिख प्रधानमंत्री बने और उन्हें एक मुस्लिम राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम ने शपथ दिलायी.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें