23.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

मोदी लहर का संचार सिद्धांत

भारतीय समाज के लिए संचार का लहर सिद्धांत एक नई परिघटना के रूप में सामने आया हैं. लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी को लेकर यह दोहराया जा रहा है कि मतदाताओं के बीच उनके पक्ष में एक लहर बह रही हैं. इसके लिए कई नमूना सर्वेक्षण भी […]

भारतीय समाज के लिए संचार का लहर सिद्धांत एक नई परिघटना के रूप में सामने आया हैं. लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी को लेकर यह दोहराया जा रहा है कि मतदाताओं के बीच उनके पक्ष में एक लहर बह रही हैं. इसके लिए कई नमूना सर्वेक्षण भी पेश किए गए.

लहर को जानने के लिए तीन तरह के देसी नमूना सर्वेक्षण तीन लोगों ने किए. फिल्म के लिए धुंआधार लेखन करने वाली तिवारी मुबंई से दिल्ली आ रही थीं. उन्होंने हवाई अड्डे पर एक सर्वेक्षण किया. हवाई जहाज पर सवार होने से पहले यात्रियों की भीड़ एक हॉल में आगे बढ़ने के संकेत का इंतजार कर रही थी. बैठने वाली जगह की अगली कतार खाली थी. तिवारी ने सबके बीच खड़े होकर यह ऐलान किया कि जिन लोगों को मोदी जी के साथ बैठना है वे अगली कतार में आ जाएं. कुल पांच लोग लपक कर आगे आए. बाकी लोगों पर जैसे कोई असर नहीं हुआ. तिवारी ने कहा कि इन पांच लोगों के जरिये लहर का प्रतिशत निकाला जा सकता है.

दूसरा नमूना सर्वेक्षण एक संपादक ने हरदोई के रास्ते में किया. वे एक गांव से गुजर रहे थे. वहां एक खाने पीने का ढाबा देखा तो रूक गए. गांव में कुछ घरों की छत पर नीले रंग के झंडे लहरा रहे थे. जिन्स पहना एक व्यक्ति टांग पसारे खाट पर लेटा था और उसके अगल-बगल चार पांच लोग बैठे थे. उक्त संपादक ने पूछा कि भई चुनाव में यहां क्या चल रहा हैं. लेटे हुए व्यक्ति ने कहा कि मोदीमय है और दूसरा कोई नहीं. लेकिन संपादक की आंखें कुछ और देख रही थीं. उन्होंने नतीजे तक पहुंचने के लिए जोर देकर कहा कि आसपास बैठे लोगों के पास तो पíचयां किसी और पार्टी की हैं.

उस पसरे हुए व्यक्ति ने भी जोर देकर कहा कि पर्चियों से क्या होता है? यहां तो केवल मोदीमय है. उसकी उपस्थिति में आसपास बैठे लोग भी गर्दन हिला रहे थे. लेकिन उनके हाथों में पर्चियां जिस अंदाज में जकड़ी हुई थीं वह सर्वेक्षण के लिए समय के इंतजार का मांग कर रही थी. जैसे ही वह व्यक्ति वहां से उठकर गया उन सभी ने इतनी तेजी से मुंह खोला जैसे बहुत देर से अपने भीतर कुछ दबाकर रखा था. उन सबने एक स्वर से कहा कि वे उसे ही वोट देंगे, जिनकी पर्चियां दिख रही हैं. तीसरा सर्वेक्षण रेल में यात्र कर रहे एक पत्रकार का है. उन्होंने टीवी चैनल के लिए बाइट देने वाले एक व्यक्ति से पूछा कि वे मोदी के पक्ष में क्यों बोल रहे हैं? उस व्यक्ति ने पूछा कि यदि टीवी वालों के सामने मोदी के पक्ष में नहीं बोलें, तो क्या करें. उनके कितने सवालों का जवाब देना पड़ेगा. इस झंझट में पड़ने के बजाय उनका समर्थन कर दो.

इन नमूना सर्वेक्षणों के आधार पर मोदी लहर का विश्लेषण किया जाना चाहिए. उससे पहले एक पहलू पर सरसरी तौर पर निगाह डालना चाहिए कि नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में पेश करने की शुरुआत किस तरह की गई. प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनने की सुगबुगाहट से लहर शब्द के जुड़ने की यात्र संचार के सिद्धांतों के अनुरूप हुई है. यहां एक तथ्य की ओर मैं जरूर ध्य़ान दिलाना चाहूंगा. 18 सितंबर 2011 को एक निजी टीवी चैनल में नरेन्द्र मोदी के एक कथित इंटरव्यू को लेकर मैंने एक शिकायत दर्ज करवायी थी और निजी टेलीविजन चैनलों की सामग्री को लेकर शिकायत की जांच करने वाली संस्था ने माना था कि जिस तरह से नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में पेश करने की कोशिश इंटरव्यू करने वाले की तरफ से की गई है, वह पत्रकारिता के नैतिक आचारण के विरूद्ध हैं. जिस दिन वाराणसी में नरेन्द्र मोदी ने नामांकन किया, उस दिन प्रधानमंत्री का बयान आ रहा था कि नरेन्द्र मोदी की लहर मीडिया ने पैदा की है. देश दुनिया का तजुर्बा रखने वाले प्रधानमंत्री को ये अनुभव है कि किस तरह से मीडिया के जरिये लहर पैदा करने की ताकत विकिसत कर ली गई हैं.

वाराणसी में नामांकन के दिन तो लहर की भाषा सुनामी के रूप में प्रचारित होने लगी थी. कोई भी एक भीड़ को जन सैलाब लिख दें, बोल दें, लहर को सुनामी कहने लगे तो लिखने व बोलने वाले का क्या कोई बिगाड़ सकता है? इस पूरे प्रसंग में पहला तो यह समझने की कोशिश की जा सकती है कि लहर का यह सिद्धांत कैसे सूत्रबद्ध हुआ है. 2014 का चुनाव देश का पहला ऐसा चुनाव है, जिस समय सूचना टेक्नोलॉजी का उच्चतम मात्र में विस्तार हुआ है. आंकड़ा यह कहता है कि रेडियो को सुनने वाले 500 लाख लोगों तक पहुंचने में 38 वर्ष लगे तो देखने वालों तक पहुंचने के लिए टेलीविजन को 13 वर्ष लगे और इंटरनेट को 4 वर्ष लगे. लेकिन फेसबुक ने नौ महीने से कम समय में 1000 लाख लोगों तक अपनी पहुंच बना ली. इसी तरह की नई तकनीक ही चुनाव का मुख्य औजार है. लहर सिद्धांत का एक और पहलू है जो ज्यादा दिलचस्प और गौरतलब हैं. वह कि जिसके पक्ष में लहर पैदा किया जाता है, उस पक्ष के विरोधी भी उस लहर में बहने लगते हैं. विरोध में दो तरह की श्रेणी हो सकती है. एक तो यह कि वह किसी ऐसी लहर की आड़ लेने का इंतजार करता है. दूसरा उसके पास खुद के खड़े होने की ताकत नहीं होती है तो वह अपना गुस्सा व्यक्त करने लगता है लेकिन वह भी यह मान लेता है कि लोग लहर में बह रहे हैं. अजीब है यह लहर का संचार सिद्धांत. मुरली मनोहर जोशी भी कह रहे हैं कि मोदी की लहर नहीं है, भाजपा की लहर है. वे लहर में अपनी पार्टी को घुसा रहे हैं. जबकि यह लहर सिद्धांत ‘मोदी’ के लिए बना है.

रविवार डॉट काम से साभार

अनिल चमड़िया

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें