नयी दिल्ली : इस महीने की 31 तारीख को चंद्रमा का एक अनूठा रूप धरती के लोगों को देखने को मिलेगा, जिसे खगोल वैज्ञानिक अंग्रेजी में ‘सुपर ब्लू मून’ की संज्ञा दे रहे हैं. जनकारों की मानें तो ‘ग्रेगोरियन कैलेंडर के एक ही महीने में जब दो बार पूर्णिमा पड़े तो सुपर ब्लू मून होने की संभावना बढ जाती है. पूर्ण चंद्रग्रहण, सुपर मून और ब्लू मून समेत तीन खगोलीय घटनाओं को समन्वित रूप से ‘सुपर ब्लू मून’ कहा जाता है.’ अपनी कक्षा में चक्कर लगाते हुए एक समय ऐसा आता है जब पूर्णिमा के दिन चंद्रमा धरती के सबसे नजदीक होता है. ऐसे में चांद का आकार बड़ा और रंग काफी चमकदार नजर आता है. उस दौरान चंद्रमा के बड़े आकार के कारण उसे ‘सुपर मून’ कहा जाता है.
ग्रेगोरियन कैलेंडर के एक ही महीने में दूसरी बार ‘सुपर मून’ पड़े तो उसे ‘ब्लू मून’ कहा जाता है. हालांकि इसका संबंध चंद्रमा के रंग से कतई नहीं लगाया जाना चाहिए. दरअसल, पाश्चात्य देशों में ‘ब्लू’ को विशिष्टता का पर्याय माना गया है. चांद के विशिष्ट रूप के कारण ही उसे यहां ‘ब्लू’ कहा जाता है. ब्लू मून के दिन चंद्र ग्रहण भी हो तो इसे ‘सुपर ब्लू मून ग्रहण’ कहा जाता है. भारतीय समय के अनुसार 31 जनवरी को छह बजकर 22 मिनट से सात बजकर 38 मिनट के बीच धरती इस खगोलीय घटना का गवाह बनेगी जिसका आनंद लोग ले सकेंगे. यह इस साल का यानी 2018 का पहला ग्रहण होगा. इसका संयोग दुर्लभ होता है और कई वर्षों के बाद यह घटनाक्रम देखने को मिलता है.
नंगी आंखों से अंदाजा लगा पाना कठिन
खगोलिय घटना देखने की चाहत रखने वालों के लिए यह दिन बेहद खास होता है क्योंकि उन्हें चांद के खास स्वरूप को देखने की उत्सुकता हमेशा रहती है. जानकारों की मानें तो ‘सुपर मून के दिन चंद्रमा सामान्य से 14 प्रतिशत बड़ा और 30 प्रतिशत अधिक चमकदार नजर आयेगा. हालांकि, नंगी आंखों से इस अंतर का अंदाजा लगा पाना कठिन है.
यह भी जानें
खगोल वैज्ञानिकों की मानें तो यह एक सामान्य खगोलीय घटना है. पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए चंद्रमा अपना एक चक्कर 27.3 दिन में पूरा करता है. यहां चर्चा कर दें कि दो क्रमागत पूर्णिमाओं के बीच 29.5 दिनों का अंतर होता है और दो पूर्णिमाओं के बीच यह अंतर होने का कारण चंद्रमा की कक्षा का अंडाकार या दीर्घ-वृत्ताकार होना है. यदि गौर करें तो एक महीने में 28, 30 या फिर 31 दिन होते हैं. ऐसे में एक ही महीने में दो बार पूर्णिमा होने की संभावना भी कम ही होती है. इसलिए सुपर मून भी कई वर्षों के बाद आकाश में नजर आता है.
ऐसा नजर आएगा चांद
इस घटनाक्रम की एक विशेषता यह भी होगी कि चंद्रग्रहण के बावजूद चांद पूरी तरह काला नजर आने के बजाए तांबे के रंग जैसा दिखायी पड़ेगा. जानकारों के अनुसार इसमें धरती के उस पारदर्शी वातावरण की भूमिका होती है. चंद्रग्रहण के दौरान सूर्य और चांद के बीच में धरती के होने से चांद पर प्रकाश नहीं पहुंच पाता. इस दौरान सूर्य के प्रकाश में मौजूद विभिन्न रंग इस पारदर्शी वातावरण में बिखर जाते हैं, जबकि लाल रंग पूरी तरह बिखर पाने में समर्थ नहीं होता और चांद तक पहुंच जाता है. ब्लू मून के दौरान इसी लाल रंग के कारण चांद का रंग तांबे जैसा यानी नारंगी नजर आता है.