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Friday, March 29, 2024

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महिला अधिकारों के नाम रहा वर्ष 2017, ट्रिपल तलाक को बताया गया असंवैधानिक

नयी दिल्ली : तीन तलाक को समाप्त करने और नाबालिग पत्नी के साथ यौन संबंध को अपराध की श्रेणी में रखने के अहम फैसले सुनाने वाले उच्चतम न्यायालय के नेतृत्व में देश की अदालतों ने महिलाओं के खिलाफ अपराध एवं पुरानी प्रथाओं के विरुद्ध कड़ाई से निपटते हुए लैंगिक न्याय की लड़ाई में वर्ष 2017 […]


नयी दिल्ली :
तीन तलाक को समाप्त करने और नाबालिग पत्नी के साथ यौन संबंध को अपराध की श्रेणी में रखने के अहम फैसले सुनाने वाले उच्चतम न्यायालय के नेतृत्व में देश की अदालतों ने महिलाओं के खिलाफ अपराध एवं पुरानी प्रथाओं के विरुद्ध कड़ाई से निपटते हुए लैंगिक न्याय की लड़ाई में वर्ष 2017 में कई महत्वपूर्ण फैसले सुनाए. महिलाओं के खिलाफ अपराध करने वालों को कड़ा संदेश देते हुए शीर्ष अदालत ने 16 दिसंबर 2012 के सामूहिक बलात्कार एवं हत्या मामले के सभी चार दोषियों को मौत की सजा सुनाई.

उच्चतम न्यायालय के अलावा देश की अन्य अदालतों ने भी महिलाओं के खिलाफ अपराधों के मामलों में कड़े फैसले सुनाये. इनमें से सबसे सनसनीखेज मामला हरियाणा के सिरसा में महिलाओं के उत्पीड़न का था. इस संबंध में पंचकूला की एक अदालत ने डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह को अपनी अनुयायियों के बलात्कार का दोषी ठहराते हुए दो मामलों में 20 साल कारावास की सजा सुनाई.

इसी प्रकार का एक मामला राष्ट्रीय राजधानी में सामने आया जिसमें दिल्ली उच्च न्यायालय ने साल के अंत में एक अन्य फर्जी आध्यात्मिक नेता वीरेंद्र देव दीक्षित के आश्रमों से नाबालिग लड़कियों और महिलाओं को बचाया. इसके साथ ही महिलाओं ने धर्म से लेकर धार्मिक अनुष्ठानों तक के मामलों में समानता के अधिकार और भागीदारी के लिए अपनी लड़ाई जारी रखी जो सबरीमाला मंदिर में मासिक धर्म के समय महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध और समुदाय के बाहर विवाह करने वाली पारसी महिलाओं को टावर ऑफ साइलेंस और अंतिम संस्कार के दौरान भाग लेने के अधिकार की मांग संबंधी मामलों में दिखाई दी.
सबरीमाला और पारसी मामलों में शीर्ष अदालत का प्रगतिशील रख चिकित्सीय गर्भ समापन संबंधी मामलों में भी देखने को मिला, लेकिन 25 वर्षीय हादिया के विवाह को अमान्य करार देने का केरल उच्च न्यायालय का फैसला विवादों में रहा. हादिया ने एक मुस्लिम व्यक्ति से विवाह से पहले धर्म परिवर्तन कर लिया था. इस मामले को अदालत ने लव जिहाद करार दिया. यह मामला अंतत: उच्चतम न्यायालय पहुंचा जिसने हादिया को आगे की पढ़ाई के लिए कॉलेज जाने की अनुमति दी जबकि उसने न्यायालय से अपील की थी, उसे पति के साथ रहने की अनुमति दी जाये.
न्यायाधीशों के सामने उस समय मुश्किल परिस्थितियां आयीं जब उससे 20 सप्ताह से अधिक भ्रूण वाले मामलों में विभिन्न चिकित्सकीय आधारों पर गर्भपात की अनुमति का अनुरोध किया गया. न्यायालय ने मानसिक रूप से अक्षम एक बलात्कार पीड़िता के मामले समेत इस प्रकार के सभी मामलों में चिकित्सकों की राय लेते हुए उदारवादी कदम उठाया और अधिकतर मामलों में गर्भपात की अनुमति दी. गर्भपात के लिए संरक्षकों की मंजूरी का प्रश्न भी अदालत के सामने आया जिसमें ना में फैसला सुनाते हुए अदालत ने कहा कि महिलाओं की निजी स्वायत्ता के मौलिक विचार का सम्मान किया जाना चाहिए. शीर्ष अदालत ने इस तरह के मामलों को देखते हुये चिकित्सीय गर्भ समापन कानून में निर्धारित 20 सप्ताह की अवधि में बदलाव का भी सुझाव दिया.
देश की अन्य अदालतों ने भी तेजाब फेंककर किए गए हमलों, बलात्कार, झूठी शान के लिए की गयी हत्या और समुदाय के खिलाफ विवाह करने वाली महिलाओं की रक्षा करने के संबंध में भी सक्रिय भूमिका निभाई. केरल में एर्नाकुलम की एक अदालत ने एक प्रवासी श्रमिक को एक महिला के घर घुसकर उसकी हत्या करने के मामले में मृत्युदंड सुनाया. इसी प्रकार, तमिलनाडु के त्रिपुर में एक अदालत ने 22 वर्षीय एक दलित व्यक्ति की झूठी शान की खातिर हत्या के मामले में हाल में छह मुजरिमों को मृत्युदंड दिया. पुणे की एक अदालत ने भी महाराष्ट्र के कोपार्डी गांव में एक नाबालिग के बलात्कार एवं हत्या के मामले में तीन दोषियों को मृत्युदंड की सजा सुनाई. दिल्ली की एक अदालत ने 81 वर्षीय एक विधवा की यहां उसके आवास में बलात्कार एवं हत्या के मामले में एक युवा घरेलू सहायक को मृत्यु होने तक आजीवन कारावास की सजा सुनाई.
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