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मुंबई ब्लास्ट की पूरी कहानी: आइएसआइ की ट्रेनिंग, दुबई से हुई थी फंडिंग, पढ़ें खास रिपोर्ट

मुंबई : 12 मार्च, 1993 को मुंबई में हुए सीरियल बम विस्फोट की पूरी साजिश दाउद इब्राहिम ने रची थी. इसके लिए दुबई से फंडिंग की गयी थी और जिन लोगों ने इसे अंजाम दिया था, उन्हें पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ ने धमाकों की ट्रेनिंग दी थी. अबू सलेम ने दौसा के साथ मिल […]

मुंबई : 12 मार्च, 1993 को मुंबई में हुए सीरियल बम विस्फोट की पूरी साजिश दाउद इब्राहिम ने रची थी. इसके लिए दुबई से फंडिंग की गयी थी और जिन लोगों ने इसे अंजाम दिया था, उन्हें पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ ने धमाकों की ट्रेनिंग दी थी. अबू सलेम ने दौसा के साथ मिल कर आरडीएक्स की सप्लाई की थी, जबकि फंडिंग और पैसे का लेन-देन याकूब मेमन के जरिये हुआ था. 1984 में यूपी के आजमगढ़ से काम की तलाश में मुंबई आये अबू सलेम ने 1986 में अंधेरी के एक शॉपिंग सेंटर में इलेक्ट्रॉनिक्स की दुकान खोली, जहां उसकी जान-पहचान अजीज से हुई, जो स्मगलिंग के धंधे में था. 1992 में अजीज गोल्ड और सिल्वर स्मगलिंग के धंधे में सलेम को भी ले आया.

छह दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद ध्वस्त होने के बाद मुंबई में पहले से माहौल तनावपूर्ण था इसी क्रम में टाइगर मेमन ने पाकिस्तान और दुबई के अपने संपर्कों से मिलकर धमाके की साजिश रची. इसमें पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ का उसे साथ मिला. फिर अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम, टाइगर मेमन, मुस्तफा दौसा ने विस्फोट की योजना बनायी. इस साजिश में उसने अपने भाई याकूब मेमन को भी शामिल किया. दिसंबर, 1992 के आखिरी सप्ताह में अजीज, अबू सलेम, मेंहदी हसन व कुछ अन्य लोगों को भरूच के नजदीक एक मारुति वैन सौंपी गयी. वैन में पीछे नीचे की ओर कोई लकड़ी का बॉक्स रखा हुआ था, जिसमें एके 56 थे. मारुति वैन लेकर सभी पहले अंधेरी स्थित दुकान और फिर बांद्रा में संजय दत्त के बंगले पहुंचे. यहां संजय दत्त ने तीन एके-56 अपने पास रख लीं, जो बाद में जैबूनिशा को दे दिया गया. बाकी हथियार अजीज ने बांटे.

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इतनी बड़ी साजिश को अंजाम देने के लिए टाईगर मेमन के सीए भाई याकूब मेमन ने पैसे का हिसाब-किताब किया. मेमन के एचएसबीसी बैंक के खाते में दुबई के ब्रिटिश बैंक से 61,700 अमेरिकी डॉलर भेजे गये. याकूब ने 21 लाख 90 हजार रुपये समीर हिंगोरा और हनीफ कडावाला को साजिश में शामिल होने वाले दूसरे सदस्यों के बीच बांटने के लिए दिये. फिर याकूब ने 15 लोगों को ट्रेनिंग के लिए पाकिस्तान भेजा. सभी को विस्फोटकों में टाईमर लगाने, हथगोले फेंकने और दंगों के दौरान एके-47 राइफलें चलाने की ट्रेनिंग पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ने दी. हवाई जहाज के टिकटों का इंतजाम ईस्ट वेस्ट ट्रेवल्स नाम की एजेंसी चलाने वाले अलताफ अली ने किया था. याकूब ने अपने ड्राइवर रफीक माडी के जरिये हथगोलों व हथियार से भरे दो सूटकेस अमजद मेहरबक्श और अलताफ अली तक पहुंचवाया. दुबई से आये पैसे से ही धमाकों में इस्तेमाल किये जाने वाले वाहनों की खरीददारी की गयी. अबू सलेम और मुस्तफा दौसा ने आरडीएक्स मुंबई पहुंचाये. इसके बाद तय तारीख को मुंबई के 12 अलग-अलग जगहों पर कई वाहनों को खड़ा कर उनमें बम लगा दिये गये.
धमाकों के बाद याकूब नौ मार्च, 1993 को सपरिवार दुबई चला गया, जबकि धमाकों के चंद घंटों पहले ही टाईगर मेमन भी दुबई के लिए निकल गया. सलेम लखनऊ चला गया, जहां गोमती नगर इलाके में किराये का घर लेकर रहने लगा.
उज्ज्वल निकम की मेहनत: 628 को उम्रकैद, 37 को फांसी दिलायी
24 साल लंबे चले इस केस में सभी दोषियों को सजा दिलाने में सरकारी वकील उज्ज्वल निकम का बड़ा योगदान रहा. निकम के दमदार तर्कों और कोर्ट के सामने पेश साक्ष्यों से मामले के सभी दोषियों को एक-एक कर सजा मिलती गयी. 62 साल के उज्ज्वल निकम को आतंकवाद संबंधी मामलों का मास्टर माना जाता है, निकम के बारे में कहा जाता है कि वह जिस केस को हाथ में ले लें उसमें गुनहगार सजा से नहीं बच सकता. तीस साल के कॅरियर में निकम 628 गुनहगारों को उम्रकैद और 37 को फांसी दिलवा चुके हैं.

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