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ठहरा हुआ उत्तर और कुलांचे भरता दक्षिण

शिप्रा शुक्ला तमिलनाडु से विजयलक्ष्मी बहुत उत्साहित थी अपनी आगरा की यात्रा को लेकर. वे पहली बार प्रेम के प्रतीक ताजमहल को देखने के लिए अपनी दोनों बेटियों और अपने व्यस्त ऑथार्ेपेडिक सर्जन पति के साथ हफ्ते भर की छुट्टी पर जा रही थी. वे और उनका परिवार कोयम्बटूर से चार घंटे की उड़ान के […]

शिप्रा शुक्ला तमिलनाडु से

विजयलक्ष्मी बहुत उत्साहित थी अपनी आगरा की यात्रा को लेकर. वे पहली बार प्रेम के प्रतीक ताजमहल को देखने के लिए अपनी दोनों बेटियों और अपने व्यस्त ऑथार्ेपेडिक सर्जन पति के साथ हफ्ते भर की छुट्टी पर जा रही थी. वे और उनका परिवार कोयम्बटूर से चार घंटे की उड़ान के बाद दिल्ली पहुंचे और वहाँ से टैक्सी से आगरा. दो दिन आगरा प्रवास और फिर जयपुर और आस-पास की जगहों पर घूमने का कार्यक्र म था.

उत्तर भारत की ठण्ड से जूझने का पूरा इंतजाम था उनके पास. जैसे-जैसे उनकी यात्रा आगे बढ़ी, उनका उत्साह धीमा पड़ता चला गया. वे विश्वास ही नहीं कर पा रही थींं कि दिल्ली के अत्याधुनिक एयरपोर्ट टी3 पर उतरने के दो घंटे के बाद उनकी टैक्सी गायों के झुण्ड के बीच फंसी हुई थी. जिस आगरा को देखने का सपना वे काफी दिन से संजोये थी वहाँ चारों और कूडे के ढेर, गायें, और सूअर दिखाई दे रहे थे. उनकी ज्यादातर यात्रा गायों, छेड़छाड़ और पैसा ऐठनेवालों वालों से बचने में गुजर गई. उनका कहना है कि उन्हें लगा कि वे किसी अजनबी देश में पहुँच गई थी.

जी हाँ, यह अनुभव अकेले विजयलक्ष्मी का ही नहीं उत्तर भारत और दक्षिण भारत की फिज़ा में हम अक्सर एक फर्कमहसूस करते हैं. क्या कारण है कि एक ही देश का हिस्सा होकर भी दक्षिण भारत और उत्तर भारत अक्सर हमें दो अलग तरीकों का अनुभव करातें है. यह सच है कि दक्षिण में भी देश के बाकी स्थानों की तरह बिजली पानी और दूसरी मूलभूत समस्या? लोगों को परेशान करती है पर फिर भी दक्षिण के ये राज्य अपेक्षाकृत रूप से सुरक्षित और साफमाने जाते है.

पब्लिक अफेयर सेंटर की एक रपट के मुताबिक 2009-2010 में दक्षिण भारतीय राज्यों में गरीबी दर 19 प्रतिशत थी जबकि उत्तर भारत में यह 38 थी. स्वास्थ्य में भी यही स्थित है, प्रति स्त्री प्रजनन की राष्ट्रीय दर 2.4 है, उत्तर भारत के चार प्रमुख राज्यों उत्तरप्रदेश, राजस्थान, बिहार और मध्यप्रदेश में यह दर 3.6 का है तो दक्षिण भारतीय राज्यों में यह 1.7 से 1.9 के बीच. ये आंकडे़ बताते हंै कि चाहे शिक्षा का सवाल हो या फिर स्वास्थ्य या दूसरी मूलभूत चीज़ो का, दक्षिण भारतीय राज्यों ने तेज़ी से विकास किया है. आज देश के आधे से ज्यादा तकनीकी संस्थान दक्षिण में हैं.

इस तस्वीर का एक और गौरतलब पहलू यह है कि ये दक्षिण भारतीय राज्य आज़ादी के समय उत्तर भारत के हिंदी भाषी राज्यों की तुलना में काफी पिछडे़ हुए थे और वहाँ की ग्रामीण गरीबी दर राष्ट्रीय दर 55 प्रतिशत से अधिक करीब 66 प्रतिशत थी. दक्षिण भारत के बहुत सारे लोग रोज़गार की तलाश में पूरे देश में घूमते थे. पर आज तस्वीर बदल चुकी है और पूरे भारत के लोग दक्षिण के शहरों में नौकरियां करते मिल जायेगें. यह दक्षिण भारत और उत्तर भारत के बीच सबसे बडा रोल रिवर्सल है.

ऐसे में सवाल उठता है कि वे कौन से पहलू थे जिन पर अमल करके दक्षिण भारतीय राज्यों में प्रगति हुई और वे दूसरे प्रदेशों से आगे निकल गए. विशेषज्ञों का मानना है कि सवाल दक्षिण और उत्तर का नहीं, बडे और छोटे राज्यों का है. आम तौर पर छोटे राज्यों ने बड़े राज्यों की तुलना में बेहतर उन्नति की है, महाराष्ट्र को छोड़कर जिसकी प्रगति का मुख्य श्रेय मुम्बई को जाता है. इस बात की पुष्टि इस तथ्य से हो सकती है कि दक्षिण में भी केरल की प्रगति आंध्रप्रदेश की तुलना में कहीं बेहतर है. जब बात विकास की होती है तो आकार से फर्क पड़ता है.

ध्यान दें कि उच्च आमदनी दर वाले राज्यो में गोवा, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली और सिक्किम सबसे ऊपर हैं. जबकि बिहार, उप्र, मप्र और राजस्थान सबसे नीचे हैं. आकार में छोटे होने के साथ ही दक्षिण के राज्यों की आबादी की दर (केरल को छोड़कर) बाकी राज्यों से काफी कम है और यह भी एक कारण है उनके बेहतर विकास का. केरल में चूंकि काफी बडे़ पैमाने पर शिक्षा के क्षेत्र में काम हुआ था, इसलिए वहाँ की विकास दर उसकी बढ़ी आबादी से प्रभावित नहीं होता. अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज़ ने अपनी किताब इंडिया-एन अनसर्टेन ग्लोरी में लिखा है कि यदि हम बीमारू (बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान और उत्तरप्रदेश) राज्यों और दक्षिण भारत के चारों राज्यों तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश में तुलना करें तो बीमारू में लगभग 45 करोड़ लोग रहते हैं जबकि चारो दक्षिण भारतीय राज्यों में 25 करोड़ जो कि लगभग आधा है.

कुछ समाजशास्त्री मानते हंै पिछली शताब्दियों में हुए अफगान आक्र मण, अंग्रेज़ो के आगमन और गमन, विभाजन का सारा कहर उत्तर भारत पर टूटा, जबकि दक्षिण भारत आमतौर पर इन गतिविधियों और राजनीतिक हलचल से कमोवेश अछूता था. इसके अलावा दक्षिण के सभी राज्य समुद्री तटीय हैं और उन्हें ट्रेड, फिशिंग आदि की बेहतर सुविधा है, जबकि बीमारू राज्य शुद्ध भू-राज्य हैं. साथ ही मध्यभारत में कोई भी बड़ा मेट्रो नहीं विकसित हुआ यह भी वहाँ के विकास में एक रोड़ा माना जाता है. दक्षिण में चेन्नई, हैदराबाद और बंगलूरू आईटी हब बन कर उभरे तो लगभग पूरे केरल का शहरीकरण हो गया है.

वैसे इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता है कि कोई भी राज्य खुद से विकसित नहीं हो जाता. वहाँ की सरकार और उसे चलाने वालों का योगदान बेहद जरूरी है. समाजविद मानते हैं कि दक्षिण के राज्यों में शिक्षा में बेहतरी ने उसके विकास की नींव रखी. चूंकि जनता अपेक्षाकृत ज्यादा जागरूक थी, उसने अपने नेताओं से विकास और स्थानीय समस्याओं में ज्यादा भागीदारी की उम्मीद रखी और मांग और आपूर्ति के नियम के चलते स्थानीय नेताओं को अपने राज्यों के विकास में बेहतर रोल निभाना पड़ा. जिसका प्रभाव प्रदेशों के विकास पर पड़ा. ऐसा नहीं है कि दक्षिण के राज्यों में रामराज्य है, और यहाँ पर कोई समस्या नहीं है, बस वे बेहतर प्रदर्शन कर रहे हंै.

दक्षिण में भी, एक और स्थानीय दल जहां जातीय आंकड़ों और मुफ्त के पंखे-लैपटॉप दिलाकर जनता को लुभाने की कोशिश करते हैं, वहीं दूसरी ओर वे राष्ट्रीय दलों से गठजोड़ करके केंद्र की राजनीति में प्रदेश को बेहतर स्थान दिलाने का लॉलीपॉप जनता को थमाते है. जाति और भाषा के सवाल पर राजनीति करनेवालों ने यहां भी बिसात फैला रखी है. चूंकि लोकतंत्रजनशक्ति का दूसरा रूप है इसलिए उम्मीद है की जागरूक जनता जनार्दन इन प्रलोभनों के पीछे का सच देख सकेगी.

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