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‘पीरियड्‌स’ के बारे में जागरूकता लड़कों एवं पुरुषों की समान भागीदारी के बिना अधूरी

पिछले दिनों प्रभात खबर डॉट कॉम ने फेसबुक लाइव के जरिये ‘पीरियड्‌स’ के बारे में आम लोगों खासकर लड़कों की राय जाननी चाही थी. हमने यह जानने का प्रयास किया था कि एक सहज प्राकृतिक क्रिया के बारे में उनकी सोच क्या और कैसी है. दरअसल हमारा उद्देश्य ‘पीरियड्‌स’ के बारे में लोगों को जागरूक […]

पिछले दिनों प्रभात खबर डॉट कॉम ने फेसबुक लाइव के जरिये ‘पीरियड्‌स’ के बारे में आम लोगों खासकर लड़कों की राय जाननी चाही थी. हमने यह जानने का प्रयास किया था कि एक सहज प्राकृतिक क्रिया के बारे में उनकी सोच क्या और कैसी है. दरअसल हमारा उद्देश्य ‘पीरियड्‌स’ के बारे में लोगों को जागरूक करना है, ताकि एक लड़की को किसी तरह की शारीरिक और मानसिक परेशानी ना हो. हमने ‘पीरियड्‌स’ के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए कई स्टोरी प्रकाशित की, इस क्रम में हमें यह ज्ञात हुआ कि आज भी हमारे समाज में कई ‘टैबू’ हैं, जिनके कारण लड़कियों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है. लोग इस बारे में बात नहीं करते, जिसके कारण कई बार घर के बाहर मसलन स्कूलों में लड़कियों को शर्मिंदा होना पड़ता है.

हालांकि परिस्थितियां काफी बदलीं हैं और लड़के इस बारे में बात करने को तैयार हैं और वे यह जान गये हैं कि यह एक प्राकृतिक क्रिया है, इसमें छिपाने या ना बताने जैसा कुछ नहीं है. फिर भी अभी इसपर काफी कुछ किया जाना शेष है, क्योंकि जब प्रभात खबर डॉट कॉम इस मुद्दे को फेसबुक लाइव पर लेकर आया था, तो कई लोगों ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि और भी कई मुद्दे हैं जिसपर बात होनी चाहिए, यह कोई चर्चा का विषय नहीं है. इसपर लड़कों से बात किये जाने का कोई मतलब नहीं है. लेकिन कल पूरे विश्व में world menstruation hygiene day मनाया गया. इस डे को मनाने की शुरुआत वर्ष 2014 में जर्मनी के एक एनजीओ ने की थी. आज इस दिवस का महत्व पूरा विश्व महसूस कर रहा है. जानकारी के अभाव में किस तरह लड़कियां गंभीर बीमारी की शिकार हो जाती हैं, इसपर ध्यान देने की जरूरत है. कल पूरे विश्व में world menstruation hygiene day मनाया गया.

‘पीरियड्‌स’ को लेकर लोगों में जागरूकता लाने के लिए कई संस्थाएं काम कर रहीं हैं. इसी क्रम में गुड़गांव की एक शिक्षिका भी सामने आयीं हैं जिन्होंने यह तय किया है कि वे लड़कों से इस बारे में बात करके उन्हें शिक्षित करेंगी. इनकी स्टोरी न्यूज एजेंसी भाषा ने जारी की है. गुड़गांव की शिक्षिका मनीषा गुप्ता ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए बताया कि वह रोज की तरह स्कूल में पढाने आयीं, लेकिन अचानक उनका ध्यान स्कूल के उन छात्रों की ओर गया जो एक दूसरे को इशारे कर रहे थे और कोहनी मार कर कानाफूसी कर रहे थे. स्कूल की घंटी बजते ही लड़कों ने जोर से कहा ‘‘पीरियड’ और दबी हुई मुस्कान के साथ एक दूसरे को शरारत भरी निगाहों से देखा. बस, उसी समय मनीषा ने सोच लिया कि वह अपनी कक्षा में छात्रों से मासिक धर्म पर खुलकर बात करेंगी.

रांची के छात्रों ने कहा ‘पीरियड्‌स’ के बारे में लोगों को एजुकेट किया जाना चाहिए

मनीषा ने कहा, ‘‘जब मैंने किशोरवय में आने के विषय पर बात करनी शुरू की तो लड़के इस विषय को लेकर उत्साहित एवं दिलचस्पी लेते प्रतीत हो रहे थे. जब उन्होंने किशोरवय में प्रवेश कर रहे लड़कों में होने वाले शारीरिक बदलाव की महत्ता पर चर्चा करना आरंभ किया तो मैं उनके अजीब से भावों को देख सकती थी.’ मनीषा जानती हैं कि 11 वर्षीय स्कूल छात्रा की स्कर्ट पर जब खून का धब्बा लग जाता है तो वह किस प्रकार अपनी कक्षा के लड़कों के मजाक का पात्र बन जाती है.
उन्होंने कहा, ‘‘मैंने उन्हें बताया कि जिस लड़की को मासिक धर्म होता है, वहीं एक स्वस्थ पत्नी बन सकती है.’ पूरी दुनिया आज जब चौथा मासिक धर्म स्वच्छता दिवस मना रही है और इस विषय से जुड़ी मानसिकता को बदलने और मासिक धर्म स्वच्छता के बारे में जागरुकता पैदा करने के लिए देशभर में मुहिम चलायी जा रही है तो ऐसे में कार्यकर्ताओं का कहना है कि लड़कों एवं पुरुषों की समान भागीदारी के बिना यह मुहिम अधूरी है.
स्त्री रोग विशेषज्ञ कार्यकर्ता सुरभि सिंह ने कहा, ‘‘पुरुष स्कूल, घर या किसी भी अन्य स्थान पर लड़कियों एवं महिलाओं के आसपास रहते हैं और समाज का अभिन्न अंग हैं. इस प्राकृतिक प्रक्रिया को लेकर वे भी समान रुप से अज्ञानी एवं जिज्ञासु है.’ मासिक धर्म की बात करने को लेकर असंवेदनशीलता या जागरुकता की कमी के कारण लड़कियां और यहां तक कि अधिक उम्र की महिलाएं भी घबरा जाती हैं और उनके मासिक चक्रों को लेकर शर्मिंदा होती हैं.

‘पीरियड्‌स’ womenhood की पहचान है, शर्म का कारण नहीं

सिंह एवं मनीषा ने कहा कि लड़कों के लिए यौन शिक्षा कार्यशालाएं शीघ्र शुरु करके उन्हें संवेदनशील बनाना चाहिए जिससे मासिक चक्र के बारे में उनकी गलत धारणाएं दूर हो सकती हैं. इससे लड़कियों में भी आत्मविश्वास पैदा करने में मदद मिलेगी. उन्होंने कहा कि अब भी मासिक धर्म का विषय स्कूल पाठ्यक्रम में पहली बार 10वीं में शुरू किया जाता है जबकि कई लड़कियों को मासिक धर्म 11 वर्ष की आयु में ही शुरू हो जाता है. सिंह ने कहा कि घरों में भी लड़कों को इस विषय पर बातचीत से अलग नहीं रखना चाहिए. अब समय आ गया है कि लड़के भी मुंह दबाकर हंसे बिना ‘‘पीरियड’ शब्द कहें. इसके लिए लड़कों, पुरुषों, लड़कियों, महिलाओं सभी को योगदान देना होगा.

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