इंदौर: बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन ने अभिनय की दुनिया से संन्यास की किसी योजना से आज साफ इंकार कर दिया. हर रोज अदाकारी की नयी चुनौतियों का सामने करने को उत्सुक ‘बिग बी’ को लगता है कि अगर वह अभिनय छोड़ देंगे, तो शायद बीमार पड़ जायेंगे.
अमिताभ, इंदौर मैनेजमेंट एसोसिएशन के 23 वें अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन अधिवेशन के उद्घाटन सत्र में ‘लाइफ टाइम एक्सिलैंस अवॉर्ड 2014’ ग्रहण करने के बाद श्रोताओं के सवालों के जवाब दे रहे थे.
‘बिग बी’ ने एक सवाल पर कहा, ‘नब्बे के दशक में मुझे मेरे परिजनों और कुछ अन्य करीबी लोगों ने कहा कि मैं बहुत काम कर चुका हूं और मुझे थोड़ा अवकाश लेना चाहिये. इस सलाह पर मैंने तीन.चार साल तक विश्राम करते हुए फिल्मों में काम नहीं किया. लेकिन बाद में मुझे महसूस हुआ कि यह मेरी जिंदगी का सबसे बुरा फैसला था.’ बॉलीवुड के महानायक ने एक सवाल पर गर्दिश के उस दौर को भी याद किया, जब उनकी कम्पनी एबीसीएल बदहाल हो चुकी थी और वह हर रोज उन लोगों के तगादे झेल रहे थे जिन्होंने उन्हें यह कम्पनी शुरु करने के लिये रकम उधार दी थी.
अमिताभ ने यादों की गलियों में कदम रखते हुए कहा, ‘मैं उस दौर में एक सुबह फिल्मकार यश चोपड़ा के घर पहुंचा और उनसे कहा कि मेरे पास कोई काम नहीं है और मेरे बैंक खातों में नकदी खत्म हो चुकी है. तब उन्होंने मुझे एक फिल्म में काम करने की पेशकश की और मैंने उनके साथ काम करना शुरु किया.’ उन्होंने कहा, ‘मुझे उस दौर में कौन बनेगा करोड़पति नाम के टीवी शो की मेजबानी का मौका भी मिला. इसके बाद मैं अपने प्रयासों से सारी उधारी चुकाने में कामयाब रहा.’71 वर्षीय अभिनेता ने कहा, ‘आज मैं यह सोचकर अच्छा महसूस करता हूं कि मुझे परेशानियों के दौर से गुजरना पड़ा.
इन परेशानियों ने मुझे प्रबंधन के कई सबक सिखाये.’ अमिताभ ने एक सवाल पर कहा, ‘जब भारत को विकासशील मुल्क या तीसरी दुनिया का देश कहा जाता है, तो मुझे इस संबोधन से घृणा होती है. मैं मानता हूं कि भारत में अपनी युवा शक्ति के बूते विकसित और पहली दुनिया का मुल्क बनने की पूरी ताकत है.’ उन्होंने अपने पिता और हिन्दी के मशहूर कवि हरिवंशराय बच्चन और माता तेजी बच्चन को भी शिद्दत से याद किया. अमिताभ ने कहा कि वह पूर्व और पश्चिम की संस्कृतियों के मिले-जुले माहौल में बड़े हुए और इससे उन्हें जीवन को समझने में खासी मदद मिली.
‘बिग बी’ ने बताया, ‘बचपन में मुझे सिनेमाघर में कोई फिल्म देखने की अनुमति तब ही मिलती थी, जब मेरे माता-पिता पहले खुद यह फिल्म देख लेते थे. वे तय करते थे कि कोई फिल्म मेरे देखने योग्य है या नहीं.’ उन्होंने कहा कि गुजरे बरसों में हिन्दी सिनेमा ने काफी तरक्की की है और अब यह वैश्विक स्तर पर पहचाना जाने लगा है.