मुम्बई : गुजरे जमाने की अभिनेत्री आशा पारेख को खुशी है कि फिल्मोद्योग ने तकनीकी दृष्टि से तरक्की की है लेकिन उन्हें वर्तमान गीतों के बोलों से निराशा हुई है.आशा पारेख ने कहा, ‘‘आज फिल्मोद्योग जिस तरह काम कर रहा है, वह निश्चित रुप से भिन्न है. तकनीकी दृष्टि से हमने तरक्की की है. लेकिन गानों के बोल अच्छे नहीं हैं. हमारे जमाने में गानों के बोल सुंदर होते थे. ’’ उन्होंने कहा, ‘‘नृत्य आज आधुनिक हो गए हैं. मैं आशा करती हूं कि फिल्मों में लोक संगीत और क्लासिकल नृत्य होंगे. आज के लोगों को भारत और उसकी परंपरा को नहीं भूलना चाहिए.’’ इकहत्तर वर्षीय अभिनेत्री के हाथ के छाप वाले एक टाईल का आज अनावरण किया गया. इसे बाद में बांद्रा में भ्रमणस्थल ‘वाक ऑफ द स्टार्स’ पर लगाया जाएगा.
आशा पारेख ने काह, ‘‘यह मेरे लिए एक सम्मान है. इस बात ने मेरे मन को छू लिया और मैं सहयोग के लिए सभी की आभारी हूं. ’’ वर्ष 1952 में ‘आसमान’ फिल्म में बाल कलाकार के रुप में फिल्मी दुनिया में अपनी यात्र शुरु करने वाली आशा पारेख ने ‘दिल देके देखो’, ‘तीसरी मंजिल’, ‘कारवां’, ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’ और ‘कटी पतंग’ जैसी कई अनोखी फिल्में की.