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टैलेंट की नहीं अच्छे दर्शकों की कमी

मंजोत से उर्मिला कोरी की खास मुलाकात.. फिल्म ‘ओए लकी लकी ओए’ में युवा लकी का किरदार निभा कर फिल्मफेयर का सर्वश्रेष्ठ नायक (क्रिटिक्स) का पुरस्कार जीतनेवाले मंजोत सिंह अब तक ‘उडान’, ‘स्टूडेंट ऑफ द इयर’ और हालिया रिलीज फिल्म ‘फुकरे’ का हिस्सा रह चुके हैं. 20 वर्षीय मंजोत खुद को इंडस्ट्री के पहले सरदार […]

मंजोत से उर्मिला कोरी की खास मुलाकात..

फिल्म ओए लकी लकी ओएमें युवा लकी का किरदार निभा कर फिल्मफेयर का सर्वश्रेष्ठ नायक (क्रिटिक्स) का पुरस्कार जीतनेवाले मंजोत सिंह अब तक उडान’, ‘स्टूडेंट ऑफ द इयरऔर हालिया रिलीज फिल्म फुकरेका हिस्सा रह चुके हैं. 20 वर्षीय मंजोत खुद को इंडस्ट्री के पहले सरदार हीरो के रूप में देखना चाहते हैं. मंजोत से उर्मिला कोरी की खास मुलाकात..

फुकरेमें कोईभी नामचीन चेहरा नहीं था. ऐसे में क्या आपको फिल्म की सफलता पर यकीन था?

फिल्म की स्क्रिप्ट अच्छी थी, हम जानते थे कि अगर एक बार दर्शक इस फिल्म को देख लेंगे तो उन्हें जरूर पसंद आयेगी. लेकिन इतना अच्छा रिस्पांस मिलेगा, इसकी उम्मीद नहीं थी. मौजूदा दौर में इंडस्ट्री में टैलेंट की कमी नहीं है, लेकिन हां अच्छे दर्शकों की कमी जरूर है.

आपके लुक को देख कर लगता नहीं कि आप फिल्मों में एक ही तरह के किरदारों में टाइपकास्ट हो सकते हैं?

हां, मुझे पता है, लेकिन एक्टर के तौर पर मेरी यही कोशिश होगी कि मैं टाइपकास्ट न होऊं. सही मौकों को चुनूं, जहां मुझे कुछ अलग करने का मौका मिले. मुझे अपने सिख होने पर गर्व है और अब तक मुझे जो भी किरदार ऑफर हुएहैं, वह मेरे सिख होने की वजह से हैं. मैं जल्द ही फिल्म जीरोलाइनमें बिल्कुल अलग अंदाज में नजर आऊंगा. इस फिल्म में मेरा किरदार सीरियस है. मैं बॉलीवुड में पहला सरदार हीरो बनना चाहता हूं.

जीरोलाइनक्या है?

जीरोलाइनगंगन पुरी की किताब ब्लैक नाइट जर्नी टू वाघापर आधारित फिल्म है. यह भारत और पाक के रिश्तों पर आधारित फिल्म है. इसमें क्रिकेट को दोनों देशों के बीच जोड.नेवाले एक कारगर धागे के तौर पर दिखाया गया है. इस फिल्म में मैं एक विद्यार्थी अमर सिंह की भूमिका में हूं, जिसे ब्रेन ट्यूमर है और वह इस बीमारी की लास्ट स्टेज पर है. यह फिल्म सितंबर तक रिलीज होगी. इस फिल्म में मेरा मुख्य किरदार है.

यह आपकी पहली सीरियस फिल्म है. शूटिंग का अनुभव कैसा रहा?

बहुत अच्छा रहा. बाघा बॉर्डर पर इस फिल्म की शूटिंग हुईहै. साथ ही इस फिल्म में मेरे पापा भी एक्टिंग कर रहे हैं, इसलिएयह अनुभव और भी यादगार बन गया. मुझे याद है ओए लकी लकी ओएकी शूटिंग के वक्त मेरे पापा मेरे साथ होते थे, तो मैं उन्हें वैनिटी वैैन में भेज देता था, क्योंकि उनके सामने मैं नर्वस हो जाता था. फिर भी वह छुपछुपाकर मुझे एक्टिंग करते देखते थे. उनके साथ एक्टिंग का अनुभव बहुत ही अलग रहा.

आपको कब लगा कि आप एक्टिंग कर सकते हैं?

अचानक ही. मेरे किसी दोस्त ने कहा कि दिल्ली में ओए लकी लकी ओएका ऑडिशन चल रहा है, तो मुझे लगा चलो दे आते हैं. मुंबई आना होता तो शायद कभी न आता ऑडिशन देने. कमाल की बात यह है कि जब मैंने अपनी मां को बताया कि मैं ऑडिशन देने जा रहा हूं, तो उन्होंने मुझे कहा कि पागल हो गया है क्या! अपनी शक्ल आईने में देखी है. घर पर मेहमान आते हैं तो तू छुप जाता है. तू ऑडिशन देगा! मैंने कहा हां मैं दूंगा, क्योंकि ऑडिशन कोई भी दे सकता है.फुकरेमें कोईभी नामचीन चेहरा नहीं था. ऐसे में क्या आपको फिल्म की सफलता पर यकीन था?

फिल्म की स्क्रिप्ट अच्छी थी, हम जानते थे कि अगर एक बार दर्शक इस फिल्म को देख लेंगे तो उन्हें जरूर पसंद आयेगी. लेकिन इतना अच्छा रिस्पांस मिलेगा, इसकी उम्मीद नहीं थी. मौजूदा दौर में इंडस्ट्री में टैलेंट की कमी नहीं है, लेकिन हां अच्छे दर्शकों की कमी जरूर है.

आपके लुक को देख कर लगता नहीं कि आप फिल्मों में एक ही तरह के किरदारों में टाइपकास्ट हो सकते हैं?

हां, मुझे पता है, लेकिन एक्टर के तौर पर मेरी यही कोशिश होगी कि मैं टाइपकास्ट न होऊं. सही मौकों को चुनूं, जहां मुझे कुछ अलग करने का मौका मिले. मुझे अपने सिख होने पर गर्व है और अब तक मुझे जो भी किरदार ऑफर हुएहैं, वह मेरे सिख होने की वजह से हैं. मैं जल्द ही फिल्म जीरोलाइनमें बिल्कुल अलग अंदाज में नजर आऊंगा. इस फिल्म में मेरा किरदार सीरियस है. मैं बॉलीवुड में पहला सरदार हीरो बनना चाहता हूं.

जीरोलाइनक्या है?

जीरोलाइनगंगन पुरी की किताब ब्लैक नाइट जर्नी टू वाघापर आधारित फिल्म है. यह भारत और पाक के रिश्तों पर आधारित फिल्म है. इसमें क्रिकेट को दोनों देशों के बीच जोड.नेवाले एक कारगर धागे के तौर पर दिखाया गया है. इस फिल्म में मैं एक विद्यार्थी अमर सिंह की भूमिका में हूं, जिसे ब्रेन ट्यूमर है और वह इस बीमारी की लास्ट स्टेज पर है. यह फिल्म सितंबर तक रिलीज होगी. इस फिल्म में मेरा मुख्य किरदार है.

यह आपकी पहली सीरियस फिल्म है. शूटिंग का अनुभव कैसा रहा?

बहुत अच्छा रहा. बाघा बॉर्डर पर इस फिल्म की शूटिंग हुई है. साथ ही इस फिल्म में मेरे पापा भी एक्टिंग कर रहे हैं, इसलिएयह अनुभव और भी यादगार बन गया. मुझे याद है ओए लकी लकी ओएकी शूटिंग के वक्त मेरे पापा मेरे साथ होते थे, तो मैं उन्हें वैनिटी वैन में भेज देता था, क्योंकि उनके सामने मैं नर्वस हो जाता था. फिर भी वह छुपछुपाकर मुझे एक्टिंग करते देखते थे. उनके साथ एक्टिंग का अनुभव बहुत ही अलग रहा.

आपको कब लगा कि आप एक्टिंग कर सकते हैं?

अचानक ही. मेरे किसी दोस्त ने कहा कि दिल्ली में ओए लकी लकी ओएका ऑडिशन चल रहा है, तो मुझे लगा चलो दे आते हैं. मुंबई आना होता तो शायद कभी न आता ऑडिशन देने. कमाल की बात यह है कि जब मैंने अपनी मां को बताया कि मैं ऑडिशन देने जा रहा हूं, तो उन्होंने मुझे कहा कि पागल हो गया है क्या! अपनी शक्ल आईने में देखी है. घर पर मेहमान आते हैं तो तू छुप जाता है. तू ऑडिशन देगा! मैंने कहा हां मैं दूंगा, क्योंकि ऑडिशन कोई भी दे सकता है.

सत्य ढूंढ़ने परमजबूर हुए दर्शक

आ नंद गांधी शुरुआती दौर में टीवी और रंगमंच से जुडे. रहे. शायद यही वजह है कि उन्होंने लोगों को नजदीक से समझने की कोशिश की. उनकी फिल्म शिप ऑफ थीसियसको लेकर उनसे हुई बातचीत..

जो कहना चाहता था कह सका

मैं इस बात से बेहद खुश हूं कि मेरी फिल्म शिप ऑफ थीसियसको लोगों ने समझा, वरना फिल्म का जो विषय था, उसे लोगों तक पहुंचाना काफी मुश्किल था. मेरा अब हौसला बढ़ा है. किरन राव को दिल से धन्यवाद कहना चाहूंगा. उनकी वजह से फिल्म व्यापक रूप से लोगों तक पहुंची. मेरा मानना है कि फि ल्म ऐसा माध्यम है, जिसके जरिये फिल्ममेकर समाज से संवाद स्थापित कर पाने में सक्षम होता है और मैं इसी विचार से फिल्म मेकिंग में आया हूं. मेरी फिल्मों का भी यही मकसद है.

कुछ यूं जेहन में आया यह विषय

फिल्म की कहानी काविषय मेरे अपने जीवन का हिस्सा है. मैंने भी आप लोगों की तरह जिंदगी जी है, बस मैंने अपना नजरिया अलग रखा और मैंने महसूस किया कि दुनिया में जो चीज हम देखते हैं, सिर्फ वही नहीं होती. पहली कहानी में जैसा आपने देखा होगा कि एक अंधा व्यक्ति भी बिना आंखों के तसवीर बना रहा है. दूसरी कहानी में आपने एक साधु की जिंदगी को करीब से जानने की कोशिश की होगी. कितने लोग हैं आज की दुनिया में जो ऐसे हैं, जो पशु हिंसा के खिलाफ हैं, लेकिन शांति से अपनी लड.ाई लड. रहे हैं. मेरी कहानियों में एक दूसरे से ही द्वंद्व हैं. साधु बीमार है, लेकिन वह दवाई नहीं लेता, चूंकि उस दवाई में भी पशु अंश है. वह मरने के लिए तैयार है, लेकिन दवाई लेने के लिए नहीं. जिंदगी में हम कई बार जान-बूझ कर भी गलत रास्ता इख्तियार कर लेते हैं. और चाह कर भी हम कई बार सही रास्ता नहीं अपना पाते. लेकिन यहां मेरी कहानियां जीवन दर्शन के साथ-साथ कई सच्चाइयों का भी सामना कराती हैं. तीसरी कहानी एक शेयर ब्रोकर की है. उसे अपनी जिंदगी से बस चंद लम्हे मिले हैं, लेकिन उसके सामने किडनी रैकेट की खबर का खुलासा होता है और वह पहुंच जाता है उस व्यक्ति के पास जिससे उसे किडनी मिली है. ये कहानियां आपको जीवन दर्शन की फिल्में लग सकती हैं, लेकिन ये जिंदगी की हकीकत हैं.

सच कहने की कोशिश

मेरा मानना है कि वर्तमान में जो दौर चल रहा है, इसमें केवल फिल्में ही एकमात्र माध्यम हैं, जो आपको सच कहने का मौका देती हैं. हां, यह सच है कि ऐसी फिल्में कम हैं, जिनमें जिंदगी की जटिलताओं और खंघालने और उनके जवाब देने की कोशिश की गयी हो. जबकि सिनेमा चाहे तो इस माध्यम से दर्शकों के सामने कई प्रश्नों को खड.ा कर सकता है. जैसे ओह माय गॉडका लोगों पर काफी असर हुआ. लोगों में अंधविश्‍वास की मात्रा कम हुई है. पूरी तरह तो नहीं, लेकिन फिल्म ने अपना कमाल जरूर दिखाया. मुझे लगता है कि सिनेमा ही एकमात्र ऐसा माध्यम है, जो किसी व्यक्ति को व्यक्तिगत रूप से अंदर से झकझोर सकता है. लेकिन मुश्किल यह है कि इसका सही उपयोग नहीं हो पाता. दर्शन की बात तो दूर की कौड़ी है. इस फिल्म के जरिये मैंने कोशिश की है कि दर्शकों का मनोरंजन करते हुए उन्हें सत्य को ढूंढ.ने पर मजबूर करूं.

अफसोस नहीं कि सितारा विहीन है फिल्म

इस फिल्म को लोकप्रियता मिल रही है. धीरे-धीरे यह कहानी खुद में स्टार बन रही है और खुश हूं कि इसमें कोई स्टार नहीं, वरना, दर्शक मेरी कहानी पर ध्यान नहीं देते. लेकिन हां, इतना जरूर कहूंगा कि सभी सितारों ने फिल्म की खूब तारीफ की है. हालांकि यह सच है कि इस तरह की सितारा विहीन और सोच प्रधान फिल्म बनाना आसान काम नहीं था. फिल्म को बनने में चार साल लग गये. वह भी तब, जब हमारी फिल्म के हीरो सोहम शाह ने खुद फिल्म को फाइनेंस करने का बीड.ा उठाया. लेकिन फिल्म बनने के बाद कई फिल्मोत्सव में गयी, वहां इसे सराहना मिली और अब तो हिंदी सिनेमा के भी सभी कलाकारों को फिल्म पसंद आयी है. अब यह मिथक टूट चुका है कि छोटी और ऑफबीट फिल्मों को पहचान नहीं मिल पाती.

सिनेमा में हो रहे हैं बदलाव

सिनेमा में जादुई असर होता है. आप हॉलीवुड सुपरस्टार जॉर्ज क्लूनी का उदाहरण लें, जो फिल्मों की शूटिंग के बाद का समय विभित्र प्रकार के सोशल कैंपेन में देते हैं. मैं भी इसी तरह अपनी फिल्मों की कैंपेनिंग करना चाहता हूं. मैं झकझोर कर रख देनेवाली फिल्में ही बनाता रहूंगा और मैं ऐसी फिल्मों से खुश हूं.आ नंद गांधी शुरुआती दौर में टीवी और रंगमंच से जुडे. रहे. शायद यही वजह है कि उन्होंने लोगों को नजदीक से समझने की कोशिश की. उनकी फिल्म शिप ऑफ थीसियसको लेकर उनसे हुई बातचीत..

जो कहना चाहता था कह सका

मैं इस बात से बेहद खुश हूं कि मेरी फिल्म शिप ऑफ थीसियसको लोगों ने समझा, वरना फिल्म का जो विषय था, उसे लोगों तक पहुंचाना काफी मुश्किल था. मेरा अब हौसला बढ़ा है. किरन राव को दिल से धन्यवाद कहना चाहूंगा. उनकी वजह से फिल्म व्यापक रूप से लोगों तक पहुंची. मेरा मानना है कि फि ल्म ऐसा माध्यम है, जिसके जरिये फिल्ममेकर समाज से संवाद स्थापित कर पाने में सक्षम होता है और मैं इसी विचार से फिल्म मेकिंग में आया हूं. मेरी फिल्मों का भी यही मकसद है.

कुछ यूं जेहन में आया यह विषय

फिल्म की कहानी काविषय मेरे अपने जीवन का हिस्सा है. मैंने भी आप लोगों की तरह जिंदगी जी है, बस मैंने अपना नजरिया अलग रखा और मैंने महसूस किया कि दुनिया में जो चीज हम देखते हैं, सिर्फ वही नहीं होती. पहली कहानी में जैसा आपने देखा होगा कि एक अंधा व्यक्ति भी बिना आंखों के तसवीर बना रहा है. दूसरी कहानी में आपने एक साधु की जिंदगी को करीब से जानने की कोशिश की होगी. कितने लोग हैं आज की दुनिया में जो ऐसे हैं, जो पशु हिंसा के खिलाफ हैं, लेकिन शांति से अपनी लड.ाई लड. रहे हैं. मेरी कहानियों में एक दूसरे से ही द्वंद्व हैं. साधु बीमार है, लेकिन वह दवाई नहीं लेता, चूंकि उस दवाई में भी पशु अंश है. वह मरने के लिए तैयार है, लेकिन दवाई लेने के लिए नहीं. जिंदगी में हम कई बार जान-बूझ कर भी गलत रास्ता इख्तियार कर लेते हैं. और चाह कर भी हम कई बार सही रास्ता नहीं अपना पाते. लेकिन यहां मेरी कहानियां जीवन दर्शन के साथ-साथ कई सच्चाइयों का भी सामना कराती हैं. तीसरी कहानी एक शेयर ब्रोकर की है. उसे अपनी जिंदगी से बस चंद लम्हे मिले हैं, लेकिन उसके सामने किडनी रैकेट की खबर का खुलासा होता है और वह पहुंच जाता है उस व्यक्ति के पास जिससे उसे किडनी मिली है. ये कहानियां आपको जीवन दर्शन की फिल्में लग सकती हैं, लेकिन ये जिंदगी की हकीकत हैं.

सच कहने की कोशिश

मेरा मानना है कि वर्तमान में जो दौर चल रहा है, इसमें केवल फिल्में ही एकमात्र माध्यम हैं, जो आपको सच कहने का मौका देती हैं. हां, यह सच है कि ऐसी फिल्में कम हैं, जिनमें जिंदगी की जटिलताओं और खंघालने और उनके जवाब देने की कोशिश की गयी हो. जबकि सिनेमा चाहे तो इस माध्यम से दर्शकों के सामने कई प्रश्नों को खड कर सकता है. जैसे ओह माय गॉडका लोगों पर काफी असर हुआ. लोगों में अंधविश्‍वास की मात्रा कम हुई है. पूरी तरह तो नहीं, लेकिन फिल्म ने अपना कमाल जरूर दिखाया. मुझे लगता है कि सिनेमा ही एकमात्र ऐसा माध्यम है, जो किसी व्यक्ति को व्यक्तिगत रूप से अंदर से झकझोर सकता है. लेकिन मुश्किल यह है कि इसका सही उपयोग नहीं हो पाता. दर्शन की बात तो दूर की कौड़ी है. इस फिल्म के जरिये मैंने कोशिश की है कि दर्शकों का मनोरंजन करते हुए उन्हें सत्य को ढूंढ.ने पर मजबूर करूं.

अफसोस नहीं कि सितारा विहीन है फिल्म

इस फिल्म को लोकप्रियता मिल रही है. धीरे-धीरे यह कहानी खुद में स्टार बन रही है और खुश हूं कि इसमें कोई स्टार नहीं, वरना, दर्शक मेरी कहानी पर ध्यान नहीं देते. लेकिन हां, इतना जरूर कहूंगा कि सभी सितारों ने फिल्म की खूब तारीफ की है. हालांकि यह सच है कि इस तरह की सितारा विहीन और सोच प्रधान फिल्म बनाना आसान काम नहीं था. फिल्म को बनने में चार साल लग गये. वह भी तब, जब हमारी फिल्म के हीरो सोहम शाह ने खुद फिल्म को फाइनेंस करने का बीड़ा उठाया. लेकिन फिल्म बनने के बाद कई फिल्मोत्सव में गयी, वहां इसे सराहना मिली और अब तो हिंदी सिनेमा के भी सभी कलाकारों को फिल्म पसंद आयी है. अब यह मिथक टूट चुका है कि छोटी और ऑफबीट फिल्मों को पहचान नहीं मिल पाती.

सिनेमा में हो रहे हैं बदलाव

सिनेमा में जादुई असर होता है. आप हॉलीवुड सुपरस्टार जॉर्ज क्लूनी का उदाहरण लें, जो फिल्मों की शूटिंग के बाद का समय विभित्र प्रकार के सोशल कैंपेन में देते हैं. मैं भी इसी तरह अपनी फिल्मों की कैंपेनिंग करना चाहता हूं. मैं झकझोर कर रख देनेवाली फिल्में ही बनाता रहूंगा और मैं ऐसी फिल्मों से खुश हूं.

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