मिथिलेश झा @ रांची
दुनिया का खूबसूरती से परिचय करवाना चाहता हूं. वो करना चाहता हूं, जो आज तक कभी नहीं हुआ. मैं चीजों को उस नजरिये से देखना और दिखाना चाहता हूं, जिस नजरिये से किसी ने अब तक नहीं देखा. आज फिल्म निर्माण के क्षेत्र में ढेर सारी चुनौतियां हैं. एक दशक पहले की तुलना में. विज्ञान और तकनीक जैसे-जैसे प्रगति के पथ पर अग्रसर हो रहे हैं, इस क्षेत्र की चुनौतियां भी उतनी ही तेजी से बढ़ती जा रही हैं. बचपन से ही मैं प्राकृतिक कला का चितेरा रहा हूं. तब हम प्रकृति को, इंसान को और जानवरों को कागज पर उकेरते थे. लोगों से तारीफ की उम्मीद करते थे और बेहतर चित्रकला के लिए परिवार और रिश्तेदारों के साथ-साथ गुरुजनों से तारीफ मिलती भी थी. इन सब चीजों से मेरा हौसला बढ़ा. अब मैं फिल्म मेकिंग की दुनिया में कुछ अनूठा करना चाहता हूं.
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यह कहना है रांची में जन्मे और पले-बढ़े कृपा रंजन प्रसाद का. कृपा रंजन इन दिनों अमेरिका में फिल्में बना रहे हैं. फिल्म तकनीक का ज्ञान हासिल करने के लिए वहां गये हैं. बचपन से ही कला प्रेमी रहे कृपा रंजन कहते हैं कि उन्होंने कई पत्र-पत्रिकाओं के लिए लेखन कार्य किया है.

रांची एक्सप्रेस, आज, द न्यू रिपब्लिक, युगश्री में उन्होंने आदिवासी संस्कृति, कला और थियेटर पर एक क्रिटिक की हैसियत से अपनी लेखनी चलायी है. वह कहते हैं कि उनकी लेखनी का एकमात्र उद्देश्य यह था कि दुनिया भर के लोगों को झारखंड और आदिवासियों की कला और संस्कृति से परिचित कराया जा सके.

रांची विश्वविद्यालय से पढ़ाई के दौरान ही कृपा रंजन प्रसाद थियेटर ग्रुप युवा रंगमंच से जुड़ गये. इस मंच के बैनर तले उन्होंने राष्ट्रीय स्तर के 30 से ज्यादा नाटकों में काम किया. थियेटर को सुदूर और आदिवासी बहुल पिछड़े इलाकों में पहुंचाया, जहां शिक्षा और मनोरंजन के इस साधन के बारे में बहुत कम जानकारी थी. इसके बाद मारवाड़ी कॉलेज में उन्होंने ड्रामाटिक सोसाइटी की स्थापना की और उसके बाद उनके जीवन की दिशा ही बदल गयी.

स्व बीएम शाह और सर रतन थियाम जैसे देश और दुनिया के कई जाने-माने रंगमंच के कलाकारों से उनका परिचय हुआ. इन दोनों ने उनकी प्रतिभा को निखारा. इस दौरान कृपा रंजन ने थियेटर ट्रेनिंग के अलावा योगा क्लास, आदिवासी कला और संस्कृति, पेंटिंग, नुक्कड़ नाटक भी करते रहे. इतना ही नहीं, नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा, नयी दिल्ली के कई वर्कशॉप में भी भाग लिया और नाटक की बारीकियों की जानकारी हासिल की.
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जीटीवी के लिए उन्होंने कई कार्यक्रमों की पैकेजिंग की है, जिसके लिए उन्हें तारीफें तो मिली हीं, आधा दर्जन से ज्यादा पुरस्कार भी मिले. हाल ही में झारखंड में आयोजित पहले इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल अवॉर्ड्स में उनकी दो फिल्में ‘एज ए वूमन’ और ‘डेथ बिफोर बोर्न’ की स्क्रीनिंग हुई.

कृपा रंजन ऑल इंडिया थियेटर कॉम्पिटीशन में प्रथम पुरस्कार, ऑल इंडिया ड्रम्सैंडआर्ट कॉम्पिटीशन में तृतीय पुरस्कार, मैनहट्टन स्पीच कॉम्पिटीशन में प्रथम पुरस्कार, सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए जी टेलीफिल्म की ओर से ई-सोप के अलावा फॉरन सर्विस इंस्टीट्यूट यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका के लिए डॉक्युमेंट्री बनाने के लिए पुरस्कार जीत चुके हैं.

पेरिस समिट 2018 के लिए ऑडियो विजुअल प्रेजेंटेशन के लिए भी कृपा रंजन को सम्मान मिला. उन्होंने टीवी चैनल के लिए हंसते-हंसाते कॉमेडी शो का निर्माण किया, टीवी चैनलों के लिए दो हजार से ज्यादा प्रोमोशनल फिल्म बनाये.

रांची के कृपा रंजन यहीं नहीं रुके. उन्होंने ‘पर्सपायर टू इंस्पायर’, ‘माइसेल्फ’, ‘टू रांग फीट इन अगली शूज’, ‘क्रेजी ग्लू’, ‘डेथ बिफोर बोर्न’ और ‘नॉट टू फॉरगिव यू’ जैसी शॉर्ट फिल्में बनायीं.

श्री लाल कृष्ण आडवाणी, फॉर्मर सीइओ ऑफ ZEE डॉ सुभाष चंद्र गोयल, ‘ऐज ए वूमन’, ‘टर्मरिक ए मिराकल स्पाइस’, ‘सिट टू बी फिट’ जैसी डॉक्युमेंट्री भी बनायी, जिसे काफी प्रशंसा मिली.
