नयीदिल्ली : रेल बजट को आम बजट में मिलाने से नकदी की तंगी का सामना कर रही भारतीय रेल को 10,000 करोड़ रुपए की बचत होगी क्योंकि तब उसे लाभांश का भुगतान नहीं करनापड़ेगा. रेल बजट को अलग से पेश करने की नौ दशक से भी अधिक पुरानी परंपरा अगले वित्त वर्ष से खत्म की जा सकती है.
रेल बजट को केंद्र सरकार के सामान्य बजट में मिलाने के तौर तरीके तय करने के लिए गठित संयुक्त समिति ने वित्त मंत्रालय को अपनी रपट दे दी है. इसमें कई सुधार और बदलाव सुझाए गए हैं जिनमें रेलवे की ओर से लाभांश के भुगतान को खत्म करने की सिफारिश भी है. पर रेलवे को सामान्य बजट से मदद (जीबीएस) मिलती रहेगी.
रेलवे सरकार को हर साल करीब 10,000 करोड़ रुपए का लाभांश चुकाती है और उसे आम बजट से 40,000 करोड़ रुपए की मदद मिलती है.
सिफारिशों के अनुसार सामान्य बजट में वित्त मंत्री रेलवे के योजना और गैर योजना खर्च का अलग परिशिष्ट में ब्योरा देंगे. सूत्रों के अनुसार इन सिफारिशों को मंत्रिमंडल के निर्णय के लिए प्रस्तुत किया जाएगा. उनके अनुसार समिति की रपट 31 अगस्त तक प्रस्तुत की जानी थी पर कुछ अपरिहार्य कारणों से इसमें देर हुई और यह आठ सितंबर को मिली.
रेल मंत्रालय रेल बजट को सामान्य बजट में मिलाने के बारे में अपनी सहमति दे चुका है. अब इस पर निर्णय वित्त मंत्रालय और कैबिनेट को करना है. नीति आयोग के सदस्य विवेक देबराय ने ‘रेल बजट से छुटकारा’ शीर्षक पर अपनी एक रपट में रेल बजट अलग से पेश करने की 92 वर्ष पुरानी परंपरा को खत्म कर इसे सामान्य बजट में मिलाने की सिफारिश की थी.
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