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मोदी सरकार के दो साल : मुद्रास्फीति पर अंकुश के बावजूद दालें, चीनी के भावों में उछाल

नयी दिल्ली : मोदी सरकार के पिछले दो साल के कार्यकाल के दौरान थोक और खुदरा मुद्रास्फीति में गिरावट के बावजूद खाद्य पदार्थों, खासकर दाल और चीनी जैसे कई जिंसों के भावों में उछाल आया है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल और अन्य जिंसों के दामों में गिरावट के साथ साथ सरकार के राजकोषीय अनुशासन […]

नयी दिल्ली : मोदी सरकार के पिछले दो साल के कार्यकाल के दौरान थोक और खुदरा मुद्रास्फीति में गिरावट के बावजूद खाद्य पदार्थों, खासकर दाल और चीनी जैसे कई जिंसों के भावों में उछाल आया है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल और अन्य जिंसों के दामों में गिरावट के साथ साथ सरकार के राजकोषीय अनुशासन और रिजर्व बैंक की कठोर नीति के चलते मुद्रास्फीति कुल मिलाकर काबू में चल रही है.लेकिन दो साल से वर्षा की कमी का खाद्य बाजार, खासकर दाल दलहनों, चीनी और कुछ अन्य जिंसों की तेजी से आम आदमी पर असर की चिंता बराबर बनी हुई है. वैसे इन दो वर्षों में दूध व खाद्य तेलों में सीमित घटबढ़ ही रही.

पिछले साल मई के मुकाबले इस साल मई में दाल अरहर 38 प्रतिशत महंगी है. मल्का मसूर पिछले साल के मुकाबले इस मई में तो सस्ती हुई है लेकिन मई 2014 के मुकाबले 21 प्रतिशत महंगी है. चना दाल का भाव 18 प्रतिशत चढ़ गया. चना दाल मई 2014 में 46 रुपये किलो से बढ़कर इस मई में 78 रुपये किलो पर पहुंच गयी. उड़द दाल 170 रुपये किलो की उंचाई पर है जबकि अरहर दाल कुछ महीने पहले 200 रुपये किलो से ऊपर पहुंच गयी थी. जिंसों के ये दाम एक सामान्य दुकान की खुदरा ब्रिकी पर आधारित हैं.

चार-पांच लोगों के सामान्य परिवार में आटा, दाल, चावल, चाय, चीनी, तेल, हल्दी, मिर्च, साबुन और दंतमंजन जैसी जरुरी वस्तुओं की मासिक खरीदारी का बिल दो साल पहले जहां दो से ढाई हजार रुपये रहता था वहीं अब यह तीन हजार रुपये के पार निकल जाता है. खुदरा बाजार में धनिया 200 ग्राम का पैकेट इन दो सालों में उठापटक के बीच 35 से 45 रुपये हो गया. हल्दी 35 से 38 रुपये और मिर्च का पैकेट 35 से 45 रुपये के दायरे में रहा. मिल्कफूड का देशी घी 310 से 330 रुपये किलो रहा. अन्य ब्रांडों के दाम ऊंचे रहे.

धारा रिफाइंड तेल पिछले दो साल में 120-125 रुपये प्रति लीटर के दायरे में रहा. सरसों तेल की बोतल 98 से 105 रुपये रही. टाटा नमक 15 रुपये से बढ़कर 16 रुपये पर पहुंचा है. चायपत्ती 320 से 345 रुपये किलो के दायरे में रही. दूध के दाम में ज्यादा उठापटक नहीं हुई है. पिछले एक साल में विभिन्न ब्रांडों के दूध के दाम 38 से 48 रुपये किलो पर बरकरार है.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन :राजग: सरकार ने 26 मई 2014 को केंद्र की सत्ता संभाली थी. इन दो सालों में थोक मूल्य सूचकांक :डब्ल्यूपीआई: आधारित मुद्रास्फीति लगातार गिरती हुई नवंबर 2014 में शून्य और उसके बाद शून्य से नीचे चली गयी. लेकिन अप्रैल 2016 में यह शून्य से ऊपर 0.34 प्रतिशत पर आ गयी. उपभोक्ता मूल्य सूचकांक :सीपीआई: आधारित मुद्रास्फीति मई 2014 में 8.28 प्रतिशत से घटती हुई मार्च 2016 में 4.83 प्रतिशत तक नीचे आयी. लेकिन अप्रैल 2016 में इसकी चाल बदल गयी और बढ़कर 5.39 प्रतिशत हो गयी.

थोक और खुदरा बाजार में आमतौर पर दाम में भारी अंतर की शिकायत रहती है. यही वजह है कि थोक मुद्रास्फीति जहां शून्य से नीचे चल रही थी वहीं खुदरा मुद्रास्फीति पांच प्रतिशत से ऊपर है. मई 2012 में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति 10.36 प्रतिशत की ऊंचाई पर थी जो कि तब से गिरती हुई अप्रैल 2016 में 5.39 प्रतिशत रह गयी.

सरकार ने वैश्विक बाजारों में नरमी के कारण घरेलू मांग पर असर से निपटने की चुनौतियों के बीच राजकोषीय मजबूती के रास्ते के नहीं छोड़ा है और 2016-17 में राजकोषीय घाटा जीडीपी के 3.5 तक सीमित रखने का संकल्प किया है जो 2015-16 में 3.9 प्रतिशत, 2014-15 में चार प्रतिशत और 2013-14 में 4.5 प्रतिशत था. रिजर्व बैंक ने मंहगाई के खिलाफ कड़ा रुख अपनाते हुए अपनी नीतिगत ब्याज दर रेपो में जनवरी 2015 से अब तक कुल मिला कर 1.5 प्रतिशत की वृद्धि की है और यह 6.5 प्रतिशत पर है.

दिल्ली के पॉश इलाके में रहने वाले सरकारी अधिकारी आरसी नौटियाल खाद्य पदार्थों के दाम बढ़ने के लिये बढ़ते शहरीकरण को जिम्मेदार ठहराते हैं. उन्होंने कहा, ‘‘आज कोई खेती की तरफ नहीं जाना चाहता है. किसान बनना किसी को स्वीकार नहीं. सरकार को भी पैदावार बढ़ाने के लिये हर साल न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाना पड़ता है. इससे भी दाम बढ़ते हैं. सरकार ने दालों की पैदावार बढ़ाने के लिये समर्थन मूल्य बढ़ाने सहित कई कदम उठाये हैं.

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