नयी दिल्ली : सरकार ने देश में व्यापार की राह और आसान करने के उपायों को आगे बढाते हुए व्यवसायिक विवादों के तेज निपटारे की व्यवस्था के लिए आज दो अध्यादेशों को मंजूरी दी. आधिकारिक सूत्रों के अनुसार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पंचनिर्णय एवं सुलह अधिनियम में संशोधन और वाणिज्यिक अदालतों, वाणिज्यिक प्रभाग और उच्च न्यायायालयों के वाणिज्यिक अपीलीय प्रभाग विधेयक, 2015 के कार्यान्वयन के लिए अध्यादेशों को मंजूरी दे दी. यहां विधेयक संसदीय स्थायी समिति के पास लंबित है. मंत्रिमंडल ने पंच निर्णय अधिनियम में संशोधन के लिए पिछले साल दिसंबर में एक अध्यादेश को मंजूरी दी थी लेकिन उसे कभी भी राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए नहीं भेजा गया.
व्यवसायिक विवादों के तेज निपटारे के लिए मंत्रिमंडल ने पिछले साल अगस्त में पंचों के लिए निर्णय करने की एक समयसीमा करने के उद्देश्य से पंच निर्णय अधिनियम में संशोधन के लिए एक विधेयक को मंजूरी दी थी. विधेयक संसद में पेश नहीं किया जा सका. पंचनिर्णय एवं सुलह अधिनियम, 1996 में प्रस्तावित संशोधनों के तहत किसी पंच को 18 महीने के अंदर किसी मामले का निपटारा करना होगा. सूत्रों ने कहा कि हालांकि 12 महीने पूरे होने के बाद कुछ प्रतिबंध लग जाएंगे ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि मामला लंबित ना रहे.
पिछले साल दिसंबर में मंत्रिमंडल द्वारा मंजूर किए गए शुरुआती अध्यादेश में नौ महीने की समय सीमा रखी गयी थी. मंत्रियों के बीच चर्चाओं के बाद इसके स्वरुप में बदलाव किया गया है. सरकार बेहतर विदेशी निवेश आकर्षित करना चाहती है और इस कारण इस कानून में संशोधन जल्द करने के लिए यह अध्यादेश लाने का निर्णय किया गया है. कुछ विदेशी कंपनियां कथित रुप से लंबी कानूनी प्रक्रियाओं के कारण भारत में व्यापार के लिए आने से झिझकती हैं. कानून में एक अन्य संशोधन से किसी पंचों के शुल्क पर एक सीमा लगेगी. पंचों को अब मामला हाथ में लेने से पहले हितों का टकराव की किसी स्थिति की जानकारी देनी होगी.
प्रधानमंत्री भारत में व्यापार की राह असान करने के उपायों पर जोर देते रहे हैं. विधि आयोग ने पिछले साल सौंपी गयी अपनी रिपोर्ट में पंचनिर्णय कानून में संशोधन का भी समर्थन किया था ताकि सिंगापुर और लंदन के बाद भारत को अंतरराष्ट्रीय पंचनिर्णय का एक पसंदीदा केंद्र बनाने में मदद मिले. संसदीय मामलों से जुडी मंत्रिमंडल समिति ने आज भी बैठक की. समिति ने संसद का शीतकालीन अधिवेशन बुलाने का निर्णय 26 अक्तूबर को करने का निश्चय किया है. सत्र 19 नवंबर के बाद बुलाया जा सकता है. इन अध्यादेशों के जारी होने के बाद इन्हें संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान मंजूरी के लिए पेश किया जाएगा.
अध्यादेशों के लिए 42 दिनों छह हफ्तों के भीतर संसद की मंजूरी लेनी अनिवार्य होगी नहीं तो अध्यादेश की मियाद चली जाएगी. वाणिज्यिक अदालतों और उच्च न्यायालयों के तहत अपीलीय प्रभागों से संबंधित विधेयक पर कानून एवं कार्मिक मामलों के मंत्रालय से संबंधित स्थानीय समिति अपनी रपट जुलाई में देने वाली थी पर उसका अवधि बढा कर 30 अगस्त कर दी गयी थी. समिति ने इसके लिए और 30 नवंबर तक का समय मांगा है. सरकार को अब संबंधित कानून पर फैसला करना है ताकि दिल्ली उच्च न्यायालय अपने पास से हजारों मामले राजधानी की जिला अदालतों में हस्तांतरित कर सकेगा.
इनमें से अधिकतर मामले संपत्ति विवाद से जुडे हैं. प्रस्तावित नये कानून के तहत दीवानी अदालतों का दो करोड रुपये तक के विवादों पर सुनवाई का अधिकार होगा जो अभी 20 लाख रुपये तक है. दिल्ली उच्च न्यायालय (संशोधन) विधेयक, 2015 को राष्ट्रपति से मंजूरी मिल चुकी है लेकिन भी यह प्रभावी नहीं हो सका है. विधेयक का निरीक्षण करने वाली संसदीय समिति के सामने रखे गये एक आकलन के अनुसार ऐसे 12,000 से अधिक मामले हैं जो निचली अदालतों में हस्तांतरित किए जा सकेंगे.
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