फर्जी निवेश योजनाओं की ठगी का हम बार-बार शिकार क्यों होते हैंहो जायें सतर्क, अगर.. कोई जमा योजना सामान्य से बहुत ज्यादा सुनिश्चित रिटर्न की पेशकश करे.
कोई योजना अगर एजेंटों को बहुत ज्यादा कमीशन और अन्य प्रलोभन दे रही हो.
पैसा जमा करानेवाली कंपनी का बहुत जल्दी और बहुत तेजी से प्रसार हो रहा हो.
कंपनी और उसके प्रवर्तकों की विश्वसनीयता के बारे में पहले से कोई जानकारी न हो.
कंपनी बहुत ज्यादा विज्ञापन कर रही हो और अपने प्रचार के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपना रही हो.
कंपनी के कारोबार का मॉडल आपको समझ में न आ रहो या फिर विश्वास करने के काबिल न लग रहा हो.
कंपनी बड़ी-बड़ी रकम का लेन-देन नकद के रूप में कर रही हो.
कोई जमा योजना अगर आपको दो और लोगों को जोड़ने को कह रही हो.
कंपनी का सेबी, आरबीआइ या राज्य सरकार के द्वारा नियमन न हो रहा हो.
‘सारधा’ जैसी श्रृंखला धन (चेन-मनी) योजनाएं पूरे देश में फल-फूल रही हैं. इस तरह से अब तक निवेशकों के अनगिनत करोड़ रुपये हवा हो चुके हैं. इन योजनाओं के कितने रूप हो सकते हैं, इसके बारे में बड़ा से बड़ा विशेषज्ञ भी नहीं बता सकता. लोग एक तरह की योजनाओं से सचेत होते हैं, तो धोखेबाज ठगी की कोई नयी तरकीब ढूंढ़ लेते हैं. यह ठगी कभी चिट फंड, कभी पेड़ लगाने, कभी आवासीय योजनाओं, तो कभी सोने में निवेश के नाम पर होती है. ये तो चंद उदाहरण हैं, फरजी योजनाओं के रूप अनगिनत हैं. हां, इनमें एक बात साझा है, सभी सामान्य से बहुत ज्यादा रिटर्न का वादा करती हैं.
जब आंखों पर लालच का परदा पड़ जाता है, तो अनुभवी निवेशक भी बचकाना गलतियां कर बैठते हैं. हम आये दिन घपलेबाजों द्वारा निवेशकों के करोड़ों रुपये लेकर चंपत हो जाने की खबरें पढ़ते हैं. ये बहुत छोटी अवधि में पैसा दुगुना-तिगुना होने का सब्जबाग दिखाते हैं. इसमें अच्छे खासे लोग भी फंस जाते हैं. 2010 में मुंबई में ‘सिटी लिमोजिन’ नामक योजना का घपला सामने आया. इसमें धोखाधड़ी के शिकार लोगों में आयकर, रिजर्व बैंक और पुलिस से जुड़े कर्मी भी शामिल थे. हाल में, पश्चिम बंगाल और उसके पड़ोसी राज्यों में सारधा समूह ने लोगों से कम से कम 17 हजार करोड़ की उगाही कर घपला किया.
2000 के दशक में, दक्षिण भारत में, ऊंचे रिटर्न का वादा करनेवाली कई वित्तीय व आभूषण कंपनियां एकाएक बंद हो गयीं. 90 के दशक के शुरुआती वर्षो में कृषि आधारित (एग्रो) और पौधरोपण (प्लांटेशन) कंपनियों ने 18-30 फीसदी रिटर्न का वादा किया, पर उन्होंने मूल भी चुकता नहीं किया. इसी दौरान जेवीजी, कुबेर आदि के घोटाले सामने आये. 80 के दशक में बंगाल में ‘संचयिता इंवेस्टमेंट्स’ के बंद होने पर निवेशकों को करोड़ों का चूना लगा था.
इस तरह के घोटाले सरकारें चाहें तो रोक सकती हैं. लेकिन इसके उलट घोटालेबाजों को राजनीतिक संरक्षण मिलता है. सारधा समूह के बंगाल के सत्तारूढ़ दल के साथ रिश्ते सामने आ चुके हैं. जापान लाइफ और स्पीक एशिया के फरजीवाड़े में भी कुछ बड़े नेताओं का नाम आया था. रियल स्टेट कारोबार के नाम पर जनता से पैसा उगाहनेवाली रोज वैली की भी पहुंच बहुत ऊपर तक है. वह एक आइपीएल टीम की प्रायोजक भी है. संदिग्ध कंपनियां राजनीतिक साठ-गांठ से फलती-फूलती हैं. हर बार जब कोई घोटाला सामने आता है, घोटालेबाजों पर नकेल कसने की बात की जाती है, पर होता कुछ नहीं है. इसलिए धोखाधड़ी से बचने का एकमात्र तरीका यह है कि हम खुद सतर्क बनें. अगर आपको किसी स्कीम का दावा बढ़ा-चढ़ा हुआ लगे, तो संदेह जरूर करें.
लाइलाज मर्ज लालच
वित्तीय धोखाधड़ी के मामले में इतिहास बार-बार खुद को क्यों दोहराता है? पहली वजह है, लालच. गैर पंजीकृत निवेश योजनाएं बहुत ऊंचे रिटर्न का वादा करती हैं. दूसरा, इन फरजी योजनाओं के एजेंटों को बहुत मोटा कमीशन मिलता है, जो 30 फीसदी तक हो सकता है. वहीं पंजीकृत जमा योजनाओं में कमीशन अधिकतम तीन फीसदी तक होता है. इसके अलावा, प्रदर्शन बोनस के रूप में विदेश यात्र जैसे लुभावने वादे किये जाते हैं. एजेंट जिस स्कीम के लिए काम करते हैं, उसकी कानूनी वैधता के बारे में खुद नहीं जानते.
अक्सर लोग कंपनी के बजाय एजेंट पर भरोसा कर निवेश करते हैं. कुछ योजनाएं मल्टी-लेवल मार्केटिंग (एक के जरिये दूसरे को जोड़ने की प्रक्रिया) का इस्तेमाल करती हैं. जानकारी बताते हैं कि युग्मक (बाइनेरी) योजनाएं सबसे खतरनाक होती हैं. यानी जिन योजनाओं में आपको दो और लोगों को जोड़ना होता है, उनमें सबसे ज्यादा जोखिम होता है. भले ही इन योजनाओं में किसी उत्पाद की मार्केटिंग शामिल हो. तीसरा, निवेशकों को प्रभावित करने के लिए ऐसे विज्ञापन दिये जाते हैं, जो दिखाते हैं कि फलां योजना के साथ बड़ी-बड़ी हस्तियां जुड़ी हुई हैं. ऐसी योजनाओं के प्रवर्तक इस बात का खास ख्याल रखते हैं कि शुरुआती निवेशकों को वादे के मुताबिक रिटर्न मिल जाये. इससे लोगों के बीच बहुत तेजी से योजना के पक्ष में बात फैलती है.
कैसे बचें
संदिग्ध योजनाओं और नियमन संबंधी खामियों की भरमार है, ऐसे में आप फरजीवाड़े का शिकार होने से कैसे बचें? सबसे पहली बात यह कि अगर आपको किसी योजना का रिटर्न विश्वास के काबिल न लगे, तो आप उसे फरजी मान कर चलें. ऐसी किसी योजना में पैसा न लगायें, जो नियमन के अधीन नहीं हो. कोई जमा योजना चुनते समय देखें कि वह किस नियामक के दायरे में आयेगी- भारतीय रिजर्व बैंक, सेबी या राज्य सरकार. अगर योजना किसी के दायरे में नहीं है, तो उससे दूर रहें.
अगर किसी योजना का रिटर्न बैंक एफडी वगैरह से ज्यादा है, तो आपको जानना चाहिए कि यह रिटर्न कहां से आयेगा. उसकी क्रेडिट रेटिंग, पिछला वित्तीय रिकॉर्ड और उसकी विश्वसनीयता से जुड़े अन्य पहलू देखें. आप नियामक की वेबसाइट पर जाकर जमा योजना चलानेवाली कंपनी या समूह के बारे में पूरी छानबीन कर सकते हैं. कई कंपनियां रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज (आरओसी) से मिले रजिस्ट्रेशन नंबर को अपनी विश्वसीयता के सबूत के रूप में प्रचारित करती हैं, लेकिन यह सरासर धोखा है. जब तक कोई कंपनी रिजर्व बैंक, सेबी या राज्य सरकार के नियमन में नहीं आती हो, उसके आरओसी के रजिस्ट्रेश का कोई अर्थ नहीं है.
फर्जीयोजनाएं कैसे नियमन से बच निकलती हैं
अधिकतर फरजी योजनाएं जांच-पड़ताल से इसलिए बच निकलती हैं, क्योंकि इन्हें जो समूह चलाते हैं, वे न तो बैंक होते हैं, न गैर बैंकिंग फाइनेंस कंपनियां और न ही सार्वजनिक रूप से सूचीबद्ध कंपनियां. यानी उन पर किसी वित्तीय नियामक की नजर नहीं होती. इस खामी को दूर करने के लिए, पौधरोपण और वक्ती शेयर बेचने जैसी योजनाओं को ‘सामूहिक निवेश योजना’ (सीआइएस) माना गया और इसे सेबी के नियमन में लाया गया (धारा 11एए, सेबी अधिनियम, 1992).
गौर करने की बात है कि सिर्फ एक कंपनी ने सीआइएस के तहत पंजीकरण कराया और उसने भी कोई योजना शुरू नहीं की. कंपनियों के प्रवर्तक इस प्रावधान के तहत कई छूटों का फायदा उठाते हैं. सेबी को सीआइएस से जुड़ी 660 शिकायतें मिल चुकी हैं. आप ‘आलू बांड’ का उदाहरण लीजिए. इसमें खरीदार एक निश्चित अवधि के लिए आलू खरीदने के वास्ते हर माह भुगतान का करार करते हैं. यह वस्तुओं की बिक्री की श्रेणी में आता है, जो सेबी के नियमों के दायरे में नहीं है.
इस बांड का आकर्षण यह होता है कि अगर खरीदार करार को रद्द करता है, तो उससे लिया गया पैसा 12 से 24 फीसदी ब्याज के साथ लौटाया जाता है. इसी तरह, संपत्ति, सागौन पौधरोपण, जमीन-जायदाद के मालिकाने के वक्ती शेयर बेचनेवाली योजनाओं में भी करार से निकलने मोटे ब्याज का प्रावधान होता है.
कहां है सुरक्षा
छोटी बचत के लिए डाक घर और बैंकों की योजनाएं सबसे अच्छी हैं. यहां जोखिम न के बराबर है. डाकघर में आवर्ती जमा (आरडी), एनएससी, बचत खाता, मासिक आय खाता, मियादी जमा, वरिष्ठ नागरिक बचत योजना, पीपीएफ जैसे कई विकल्प उपलब्ध हैं. अगर बैंक के जरिये छोटी बचत करनी है, तो सबसे अच्छे विकल्प सरकारी बैंक हैं. क्योंकि ये सबसे ज्यादा सुरक्षित हैं और इनमें निजी बैंकों के मुकाबले ज्यादा छोटी रकम जमा की जा सकती है.
अगर निजी बैंक में पैसा जमा करना है, तो किसी जाने-माने बड़े बैंक को ही चुनें. सहकारी बैंकों से दूर रहना बेहतर है, क्योंकि इनके संचालन में राजनीतिक दखलअंदाजी और गड़बड़ी की शिकायतें अक्सर सामने आती रहती हैं. इसलिए सहकारी बैंकों के डूबने का खतरा ज्यादा होता है.
Disclaimer: शेयर बाजार से संबंधित किसी भी खरीद-बिक्री के लिए प्रभात खबर कोई सुझाव नहीं देता. हम बाजार से जुड़े विश्लेषण मार्केट एक्सपर्ट्स और ब्रोकिंग कंपनियों के हवाले से प्रकाशित करते हैं. लेकिन प्रमाणित विशेषज्ञों से परामर्श के बाद ही बाजार से जुड़े निर्णय करें.