नयी दिल्ली : प्राकृतिक गैस मूल्य के नये फार्मूला की आलोचना करते हुए दुनिया के प्रमुख ऊर्जा विशेषज्ञ फेरेइदुन फेशारकी ने आज कहा कि सिर्फ बाजार मूल्य की गारंटी व स्थिर नीतिगत व्यवस्था से ही इस क्षेत्र में बडी वैश्विक कंपनियों से निवेश आएगा. फेशारकी ओपेक के प्रमुख देश सउदी अरब सहित विभिन्न देशों को ऊर्जा नीति पर सलाह देते हैं. उन्होंने कहा, ‘भारत में गैस का मूल्य निकालने के लिए अमेरिका, कनाडा व रुस के औसत मूल्य का इस्तेमाल करना कुछ उसी तरह से है जैसे आप सैन फ्रांसिस्को में घर खरीदना चाहते हैं और उसे दिल्ली में घर की कीमत से संबद्ध करना चाहते हैं.
फेशारकी ने पीटीआई से साक्षात्कार में कहा, ‘अमेरिका गैस अधिशेष वाला देश है जो तरलीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी) का निर्यात करता है. कनाडा भी गैस अधिशेष वाला देश है. रुस में भी यही स्थिति है. ऐसे में उनके मूल्य के औसत के आधार पर भारत में कीमत तय करने का कोई औचित्य नहीं है.’ उन्होंने कहा कि अमेरिका में 3-4 डालर प्रति एमएमबीटीयू की कीमत से पता चलता है कि वहां गैस का अधिशेष है. जैसे ही वहां निर्यात की अनुमति दी जाएगी, गैस महंगी हो जाएगी. इसी तरह रुस में उतनी गैस उड जाती है जितना भारत का सालाना उत्पादन है.
वहां भी कीमत बाजार परिदृश्य को नहीं बताती. फेशारकी ने कहा कि इसी तरह तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान-भारत (तापी) पाइपलाइन के जरिये भारतीय सीमा पर गैस की लागत 10 से 11 डालर प्रति इकाई बैठेगी. इसके अलावा इस गैस के परिवहन में आने वाली कठिनाइयों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. साथ ही गैस का परिवहन ऐसे इलाकों से होना है, जहां गैस पाइपलाइन को उडाया जा सकता है. उन्होंने कहा कि बाजार मूल्य के साथ स्थिर नियामकीय व्यवस्था नहीं होने पर कोई कंपनी भारत में निवेश नहीं करेगी.
बेशक भारत कितने ही नेल्प दौर लेकर आ जाए. गैस का नया दाम 4.2 डालर प्रति एमएमबीटीयू से 33 प्रतिशत अधिक है. हालांकि पूर्ववर्ती संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार द्वारा तय 8.4 डालर प्रति इकाई के मूल्य से यह कम है. नया मूल्य पश्चिमी अपतटीय गैस क्षेत्र के 5.71 डालर प्रति इकाई व केयर्न द्वारा राजस्थान ब्लाक के लिए ली जाने वाली 8 डालर प्रति इकाई की कीमत से कम है.
उन्होंने कहा, ‘आप इस फार्मूला को लेकर आए हैं और कोई यहां निवेश नहीं कर रहा है. सरकार ऐसा कुछ नहीं करना चाहती जिससे यह लगे कि रिलायंस इंडस्टरीज को तनिक भी फायदा पहुंचाया जा रहा है.’ उन्होंने कहा, ‘यहां सवाल रिलायंस का नहीं है. बल्कि सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों ओएनजीसी व जीपीएससी का है जो गैस संसाधन पर बैठी हैं लेकिन लाभकारी मूल्य नहीं मिलने की वजह से उसका विकास नहीं कर रही हैं.’
Disclaimer: शेयर बाजार से संबंधित किसी भी खरीद-बिक्री के लिए प्रभात खबर कोई सुझाव नहीं देता. हम बाजार से जुड़े विश्लेषण मार्केट एक्सपर्ट्स और ब्रोकिंग कंपनियों के हवाले से प्रकाशित करते हैं. लेकिन प्रमाणित विशेषज्ञों से परामर्श के बाद ही बाजार से जुड़े निर्णय करें.