नयी दिल्ली : भारत सरकार 2007 में शुरू हुई दुनिया के सबसे बड़े रक्षा सौदा को अंतिम रूप देने में जुट गयी है. 126 फ्रेंच रफेल फाइटर प्लेन की खरीद के लिए निगोशिएशन कमेटी (सीएनसी) 17 से 19 जुलाई तक बेंगलुरु में डसॉल्ट एविएशन के नेतृत्व में आयी फ्रेंच कंपनियों से बातचीत करने जा रही है. बैठक में रक्षा मंत्रालय, भारतीय वायुसेना, रक्षा और अनुसंधान संगठन (डीआरडीओ) और हिंदुस्तान एयरोनॉटिकल्स लिमिटेड (एचएएल) के अधिकारी भी होंगे.
बीस अरब डॉलर (करीब 1,201.40 अरब रुपये. बुधवार को एक डॉलर की कीमत 60.07 रुपये के आधार पर) के इस जटिल सौदे के लिए भारत ने अपनी तैयारियां पूरी कर ली है. तीन महीने में शेष प्रक्रिया पूरी हो जायेगी. इसके बाद इसे सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति को मंजूरी के लिए भेजा जायेगा. कैबिनेट की सहमति के बाद इस सौदे को अंतिम रूप दिया जायेगा. सौदे के 36-48 महीने के भीतर भारतीय वायुसेना को 18 लड़ाकू विमान मिल जायेंगे. शेष 108 विमान तकनीक हस्तांतरण के जरिये सात साल के दौरान एचएएल भारत में बनायेगा.
मीडियम मल्टी रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) का दुनिया का सबसे बड़ा ऑर्डर लेने की होड़ में ब्रिटेन, अमेरिका, जर्मनी और स्वीडन जैसे देश शामिल थे. ऑर्डर मिलने की उम्मीद में विभिन्न देशों के राजनयिक अब भी लॉबिंग कर रहे हैं. पिछले दिनों ब्रिटेन के विदेश सचिव विलियम हेग ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के दौरान यूरोफाइटर टाइफून की वकालत की.
जर्मनी, स्पेन और इटली जैसे देश भी चाहते हैं कि भारत टाइफून को अपने बेड़े में शामिल करे.फाइटर स्क्वाड्रन की कमी से जूझ रही वायुसेना में 44 की जगह सिर्फ 34 स्क्वाड्रन बचे हैं. इसलिए मोदी सरकार इस सौदे को जल्द से जल्द अंतिम रूप दे देना चाहती है. अमेरिका की इस उम्मीद के बीच कि ओबामा से मुलाकात के दौरान मोदी का मन बदलेगा, रक्षा मंत्रालय ने स्पष्ट कर दिया है कि फैसला नहीं बदलेगा. या तो विमान सौदे पर हस्ताक्षर होगा या विमान खरीद प्रक्रिया रद्द कर फिर से टेंडर जारी होगी.
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