कुडनकुलम परमाणु संयंत्र के विरोध में आंदोलन के दौरान सरकार ने इसके पीछे विदेशी ताकतों का हाथ बताया था. एनजीओ के संबंध में एक खुफिया रिपोर्ट ने देश में चल रहे एनजीओ की भूमिका पर सवाल खड़े किये हैं, तो एनजीओ और सामाजिक कार्यकर्ताओं की त्योरियां चढ़ गयी हैं.
नयी दिल्ली : गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) संबंधी खुफिया विभाग की रिपोर्ट सामने आने के बाद एनजीओ की भूमिका पर सवाल खड़े हो गये हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि कई एनजीओ विदेशी पैसे का इस्तेमाल देश में विकास विरोधी माहौल बनाने में कर रहे हैं. ग्रीनपीस जैसी संस्था का जिक्र करते हुए कहा गया है कि ये भारत में परमाणु बिजली घरों के निर्माण में रुकावट डालने के लिए विदेशी पैसे का प्रयोग कर रही है. ओडि़शा में पोस्को परियोजना के विरोध में भी विदेशी पैसे का प्रयोग एनजीओ कर रहे हैं.
पिछले कुछ सालों में देश में एनजीओ की संख्या तेजी से बढ़ी है. जिस देश में 943 लोगों के लिए एक पुलिसकर्मी और 1,700 लोगों पर एक डॉक्टर है, वहां 600 लोगों पर एक एनजीओ मौजूद है. एक अनुमान के मुताबिक, मौजूदा समय में देश में 20 लाख एनजीओ हैं. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सीबीआइ एनजीओ की बढ़ती संख्या की जांच कर रही है.
विकास में बाधक तमिलनाडु के कुडनकुलम परमाणु परियोजना का विरोध कर रहे संगठनों को विदेशी मदद की बात सरकार ने कही थी और जांच के आदेश दिये थे. कुछ समय पहले दिल्ली हाइकोर्ट ने कहा था कि देश में 90 फीसदी एनजीओ फर्जी हैं और इनका मकसद सिर्फ पैसा कमाना है. यही नहीं, कई एनजीओ अपने फंड और खर्च संबंधी दस्तावेज आयकर विभाग को नहीं सौंपते. सीबीआइ ने भी सुप्रीम कोर्ट में यह बात कही है. गृह मंत्रालय के मुताबिक, 2013 में विभिन्न एनजीओ को विदेशों से 12,500 करोड़ रुपये का अनुदान मिला.
केंद्र और राज्य सरकारों से इन्हें औसतन एक हजार करोड़ रुपये का अनुदान मिल रहा है. केवल दो फीसदी एनजीओ ही सरकार को विदेशों से मिलनेवाले धन का ब्योरा देते हैं. जबकि नियमत: एनजीओ को विदेशी सहायता लेने के लिए विदेशी सहायता नियामक कानून के तहत गृह मंत्रालय से अनुमति लेना जरूरी है. साथ ही उन्हें यह भी बताना जरूरी है कि इसका प्रयोग किस सामाजिक कार्य में किया जायेगा.
* एनजीओ के पक्ष में दलील
सामाजिक कार्यकर्ता प्रफुल्ल बिदवई कहते हैं कि विकास के नाम पर विस्थापन और पर्यावरण को नुकसान पहुंचानेवालों के खिलाफ आवाज उठानेवालों को परेशान करने के लिए आइबी ने यह रिपोर्ट तैयार की है. कुछ एनजीओ की भूमिका को आधार बना कर सभी को गलत ढंग से पेश नहीं किया जा सकता. सरकार सामाजिक आंदोलनों को एनजीओ की साख पर सवाल खड़े कर खत्म करने के लिए नये तरीके आजमाने की कोशिश कर रही है. अगर सरकार विरोधी आवाज को दबाने के लिए यह रिपोर्ट पेश की गयी है, तो यह गंभीर चुनौती है. सरकार इसमें सफल हो गयी, तो इसका फायदा कॉरपोरेट घरानों को मिलेगा. हमारी मांग है कि गलत ढंग से काम करनेवाले एनजीओ पर सरकार सख्त कदम उठाये, लेकिन सभी संगठनों पर नकेल कसना लोकतंत्र के खिलाफ है.
* कहां-कहां से आता है पैसा
अधिकांश अनुदान अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी, नीदरलैंड, नार्वे, स्वीडन, फिनलैंड और डेनमार्क जैसे देशों से आते हैं. वर्ष 2013 में सबसे अधिक विदेशी अनुदान दिल्ली को मिला. तमिलनाडु दूसरे स्थान पर रहा. अमेरिका ने वर्ष 2013 में सबसे अधिक 4,050 करोड़ रुपये दिये. ब्रिटेन से 2011-12 में 1,219 करोड़, जर्मनी से 1,096 करोड़, इटली से 528.88 करोड़ रुपये मिले.
खुफिया ब्यूरो सरकार की भाषा बोलता है. प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने सबसे पहले कहा था कि परमाणु संयंत्र का विरोध करनेवाले राष्ट्रविरोधी हैं. अब सरकारी तंत्र उनकी भाषा बोल रहा है. सच्चाई इससे कोसों दूर है.
कोलिन गोंजाल्विस, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील और संविधान विशेषज्ञ
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