-इंटरनेट डेस्क-
नयी दिल्ली : गुरुवार को इंफोसिस में नये दौर की शुरुआत हो गयी. विशाल सिक्का इंफोसिस के सीइओ-एमडी बनाये गये. यह पहली बार है कि इंफोसिस की बागडोर उसके संस्थापक सदस्यों में से किसी को नहीं सौंपी गई है. सिक्का इंफोसिस के सह-संस्थापकों की जमात से बाहर के पहले व्यक्ति होंगे जो बेंगलूर की इस कंपनी का नेतृत्व करेंगे. 33 वर्षों के इतिहास में इसे बड़े बदलाव के रूप में देखा जा रहा है. सिक्काइंफोसिसमें अपना सिक्का जमाने वाले हैं. अब यह देखना है कि इसमें वह कितने कामयाब होते हैं.
1981 में इंफोसिस की स्थापना के बाद, अब तक ऐसी परंपरा रही है कि कंपनी के सह-संस्थापकों को ही सीइओ-एमडी बनाया जाता रहा है. विशाल सिक्का को नया सीइओ बनाया जाना, इंफोसिस में पुराने युग की समाप्ति और नये युग की शुरुआत मानी जा रही है.

इंफोसिस के सह-संस्थापक एन-नारायण मूर्ति रिटायरमेंट से लौटकर पांच वर्षों तक कंपनी की बागडोर संभाली. वह शनिवार को अपने पद से इस्तीफा देने वाले हैं. मूर्ति ने इंपनी को काफी समय दिया, काफी ऊंचाईयों पर लेकर गये, लेकिन ऐसा क्या हो गया कि उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ रहा है. दरअसल इंफोसिस में अब तक जो परंपरा रही थी कि जो इंपनी में सह-संस्थापक रहे हैं,उन्हें ही बड़े पदों पर रखा जाता रहा है. मूर्ति ने तो अपने ही बेटे रोहन मूर्ति को अपने सहायक के तौर पर नियुक्ति कर दी. मूर्ति को कंपनी में बड़े बदलाव के लिए पुन: वापस लाया गया था.
* क्याइंफोसिसमें चमकेंगे सिक्का

विशाल सिक्का ने एमएस यूनिवर्सिटी, बड़ौदा से कंप्यूटर इंजीनियरिंग की पढाई की और स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से कंप्यूटर साइंस में पीएचडी किया. सिक्का इससे पहले जर्मनी की कंपनी सैप के निदेशक मंडल के कार्यकारी सदस्य थे और उन पर हर तरह के उत्पादों की जिम्मेदारी थी जिनमें पारंपरिक से लेकर क्लाउड ऐप्लिकेशन, प्रौद्योगिकी, हाना जैसे प्लैटफार्म, ऐनेलिटिक्स, मोबाइल और मिडलवेयर शामिल हैं. उन्होंने अपनी मेहनत से कंपनी का शेयर बढ़ाया. अब इंफोसिस में पुराने दौर को पीछे छोड़ते हुए विशाल कंपनी को आगे ले जाने में कितने कामयाब हो पाते हैं.
* मूर्ति युग का अंत

नारायणमूर्तिइंफोसिस के संस्थापक सदस्य रहे हैं. उन्होंने कंपनी को अपने हाथों इस मुकाम तक पहुंचाया है.मूर्तिकंपनी के हर उतार-चढ़ाव को करीब से देखा है. उन्होंने 2006 में पहली दफा कंपनी के सारे कार्यभार से इस्तीफा दे दिया था,लेकिन उन्हें आग्रह कर के फिर से कंपनी में लाया गया. कंपनी में उनकी उपयोगिता का आलम यह रहा था कि लोगों का कहना था कि मूर्ति के बिना इंफोसिस की कामना ही नहीं की जा सकती है.
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