बीजिंग : चीन और जापान के बीच के मतभेदों के बीच भारत आर्थिक और प्रौद्योगिकी संबंधी फायदे उठा रहा है हालांकि चीन-भारत संबंध पर किसी प्रकार के नकारात्मक प्रभाव से बचने के लिए उसे तोक्यो के साथ करीबी रक्षा संबंध विकसित करने में संयमित रहने को कहा गया था.
इस वर्ष मई में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तोक्यो यात्रा पर प्रतिक्रिया देते हुए ‘शंघाई सेन्टर फॉर इंटरनेशनल स्टडीज’ में ‘इंस्टीट्यूट ऑफ साउथ एशिया और सेन्ट्रल एशिया स्टडीज’ के निदेशक वांग देहुआ ने कहा कि चीन को घेरने के लिए जापान भारत के साथ अपने संबंधों को मजबूत करना चाहता है जबकि भारत चीन और जापान के बीच के सीमा विवाद का फायदा आर्थिक और प्रौद्योगिकी संबंधी लाभ लेने के लिए उठा रहा है.
सरकारी अखबार ‘ग्लोबल टाइम्स’ को वांग ने कहा है कि अभी तक नई दिल्ली तोक्यो के साथ अपने रक्षा और सुरक्षा संबंधों में संयम बरत रहा है क्योंकि यह स्पष्ट है कि किसी भी निकट संबंध का प्रतिकूल प्रभाव बीजिंग के साथ उसके रिश्ते पर पड़ेगा.
मनमोहन सिंह की तोक्यो यात्रा और भारत की ‘पूर्वोन्नमुखी नीति’ के विषय पर आज अखबार में ‘खतरा या मौका ?’ शीर्षक से एक लेख प्रकाशित हुआ. भारत की ‘पूर्वोन्नमुखी नीति’ का लक्ष्य जापान और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के साथ बेहतर संबंध विकसित करना है.
वांग का कहना है कि जापान के साथ संबंधों के विकास की कोशिश भारत की ‘पूर्वोन्नमुखी नीति’ का हिस्सा है. वांग का कहना है, ‘‘भारत की ‘पूर्वोन्नमुखी नीति’ को प्रकृति दोहरी है.. जिसका एक लक्ष्य है रक्षा और सुरक्षा के क्षेत्र में चीन को घेरना और दूसरा लक्ष्य है आर्थिक और वाणिज्यिक स्तर पर द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करना.’’