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मलेशियाई लापता विमान:ब्लैकबाक्स का पता लगाने में स्वदेशी जीपीएस की उपयोगिता पर संदेह

नयी दिल्ली : स्वदेशी ‘जीपीएस’ प्रणाली तैयार करने की योजना के तहत भारत की सात नौवहन उपग्रहों को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित करने की योजना है जिससे शांति एवं युद्धकाल में स्थिति के सटीक विवरण देने के साथ भारत की सीमा से 1500 किलोमीटर तक के क्षेत्र में नजर रखने में मदद मिलेगी हालांकि विशेषज्ञ मलेशिया […]

नयी दिल्ली : स्वदेशी ‘जीपीएस’ प्रणाली तैयार करने की योजना के तहत भारत की सात नौवहन उपग्रहों को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित करने की योजना है जिससे शांति एवं युद्धकाल में स्थिति के सटीक विवरण देने के साथ भारत की सीमा से 1500 किलोमीटर तक के क्षेत्र में नजर रखने में मदद मिलेगी हालांकि विशेषज्ञ मलेशिया के लापता विमान एमएच 370 के ब्लैकबाक्स का पता लगाने में इसकी उपयोगिता के बारे में आश्वस्त नहीं हैं.

जाने माने वैज्ञानिक प्रो. यशपाल ने कहा, ‘‘पीएसएलवी से प्रक्षेपित नौवहन उपग्रह देश के स्वदेशी ‘ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम’ (जीपीएस) को तैयार करने में मील का पत्थर है. लेकिन यह समुद्र के तल तक पहुंच कर मलेशिया के लापता विमान एमएच 370 के ब्लैक बाक्स का पता लगा पायेगा या नहीं कहना कठिन है .. क्योंकि इसका सीधा ताल्लुक नहीं है. लेकिन इसे सिरे से खारिज भी नहीं किया जा सकता.’’ उन्होंने कहा कि वस्तु घने जंगल में छिपी है, तो उससे निकलने वाली तरंगों के माध्यम से इसका पता लगाया जा सकता है. यह पूछे जाने पर कि भारत की निर्भरता अमेरिकी ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम पर रही है ऐसे में क्या युद्ध के समय में स्वदेशी जीपीएस कारगर हो पायेगा, प्रो. यशपाल ने कहा कि युद्ध के समय क्षेत्र का जीपीएस डाटा पेश करने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है. ऐसे में स्थितियों का सटीक विश्लेषण करने में यह कारगर साबित हो सकता है.

प्रो यशपाल ने कहा कि युद्ध के समय विरोधी पक्ष का सटीक आकलन करने में यह कारगर हो सकता है. ऐसी खबरें थीं कि अमेरिकी जीपीएएस पर निर्भरता के कारण कारगिल युद्ध के दौरान सेना को क्षेत्र का जीपीएस डाटा नहीं मिल पाया था. भारत ने पिछले सप्ताह पीएसएलवी.सी24 के जरिये अपने दूसरे नौवहन उपग्रह आईआरएनएसएस 1बी को प्रक्षेपित किया था जो अंतरिक्ष में देश की अपनी स्वतंत्र क्षेत्रीय नौवहन प्रणाली स्थापित करने के महत्वाकांक्षी कार्यक्रम को साकार करने की दिशा में एक और कदम है. यह उपग्रह 1432 किलोग्राम वजन का है. यह भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली (आईआरएनएसएस) का अंग बनेगा. आईआरएनएसएस अमेरिका की ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम के समकक्ष है.

भारत के 1420 करोड रुपये के आईआरएनएसएस कार्यक्रम के तहत आईआरएनएसएस 1बी इस तरह की योजना बनाये गये सात नौवहन उपग्रहों में से दूसरा है. आईआरएनएसएस 1ए इस प्रणाली का पहला उपग्रह है जिसे पिछले साल जुलाई में प्रक्षेपित किया गया और उसने काम भी करना शुरु कर दिया है. भारत को उम्मीद है कि वह 2015 तक सातों नौवहन उपग्रह प्रक्षेपित कर देगा. आईआरएनएसएस से क्षेत्रीय, हवाई एवं समुद्री नौवहन, आपदा प्रबंधन, वाहनों का पता लगाने, बेडों का प्रबंधन, मोबाइल फोनों का समन्वय, नक्शा बनाने आदि में मदद मिलेगी.

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