वाशिंगटन:काबुल में भारतीय दूतावास पर 2008 में हुए भीषण आतंकवादी हमले को पाकिस्तानी आइएसआइ ने मंजूरी दी थी और इसके आकाओं ने निगरानी की थी. काबुल पर लिखी गयी एक नयी किताब में यह दावा किया गया है. सात जुलाई 2008 को काबुल में भारतीय दूतावास पर हुए आत्मघाती कार बम हमले में 58 लोग मारे गये थे जिनमें दो शीर्ष भारतीय अधिकारी भी शामिल थे. हमले में 140 से अधिक लोग घायल हुए थे.
वरिष्ठ पत्रकार कारलौटे गौल ने अपनी नयी किताब (गलत दुश्मन) अफगानिस्तान में अमेरिका 2001-2004 ’ में यह खुलासा किया है जो अगले माह बाजार में आ रही है. गौल ने लिखा है कि फोन काल्स को बीच में पकड़ते हुए अग्रिम खुफिया सूचनाएं हासिल करने वाला तत्कालीन बुश प्रशासन घातक हमले को नहीं रोक सका. गौल 9/ 11 के आतंकी हमले के बाद काबुल में जमीनी स्तर पर काम करने वाली एकमात्र पश्चिमी महिला पत्रकार थीं जिन्होंने दस सालों तक अफपाक संघर्ष को कवर किया. किताब में लिखा गया है कि काबुल में भारतीय दूतावास पर हमले से ‘इस हमले की साजिश और इसे अंजाम देने में आइएसआइ की संलिप्तता के स्पष्ट सबूत सामने आते हैं.’
बाकायदा बनी थी योजना
किताब में कहा गया है, ‘अमेरिकी और अफगान निगरानी तंत्र ने पाकिस्तान में आइएसआइ अधिकारियों के फोन काल्स को पकडा और बमबारी से पहले काबुल में उग्रवादियों के साथ हमले की योजना बनाते हुए सुना. उस समय, काल्स की निगरानी कर रहे खुफिया अधिकारियों को यह पता नहीं था कि किस चीज की योजना बनायी गयी है लेकिन आतंकवादी हमले को आगे बढ़ाने में एक उच्च स्तर के अधिकारी की संलिप्तता स्पष्ट थी.’ गौल ने लिखा है, ‘ सबूत इतने पुख्ता थे कि बुश प्रशासन ने सीआइए के उप प्रमुख स्टीफन केप्स को पाकिस्तानियों को डांटने के लिए इसलामाबाद रवाना कर दिया. हालांकि केप्स के पहुंचने से पहले ही हमला हो गया.’
निगरानी में कराया हमला
गौल ने आगे लिखा है,‘ जिस नंबर पर इस अफगानी ने फोन किया था वह पेशावर में एक उच्च स्तर के आइएसआइ अधिकारी का था. दूतावास पर की गयी बमबारी आइएसआइ एजेंटों ने अपने स्तर पर कार्रवाई नहीं की थी. इसे उनकी निगरानी में इसे अंजाम दिया गया.’